ख़बरगली@साहित्य डेस्क
छत्तीसगढ़, भारत के मध्य स्थित एक ऐसा राज्य है जो प्राकृतिक संसाधनों लौह, कोल , हीरे व वन्यजीवों की विविधता के खजाने से भरपूर है, तथा इसे मध्य भारत का फेफड़ा भी कहा जाता है परंतु यहाँ के सामान्य नागरिकों को आज भी अन्य राज्यों में श्रमिक की भूमिका में पाया जा रहा है। इस खूबसूरत धरातल पर बसे लोग, अपनी खुद की भूमि पर श्रमिक के रूप में क्यों बने हुए हैं? इसका एक सशक्त उदाहरण है हसदेव जंगल के पेड़ों के कटाव और कोल खदानों से उत्पन्न समस्याओं के फलस्वरूप श्रमिक बनते आदिवासियों की स्तिथियों का होना।
हसदेव जंगल: स्थानीय लोगों की दु:खद स्तिथि
हसदेव जंगल के पेड़ों के कटावे ने स्थानीय आदिवासी समुदायों को उनकी आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक धरोहर से दूर कर दिया है। बाहरी उद्यमियों ने इसे अनैतिक तरीकों जैसे फ़र्ज़ी ग्राम सभाओं से प्राप्त किया है, जिससे स्थानीय नागरिकों को मजबूरन श्रमिक बनना पड़ा है। हसदेव जंगल के पेड़ों के कटावे और कोल खदानों की समस्याएं निर्दिष्ट रूप से केवल स्थानीय आदिवासी समुदायों से जुड़ी हुई हैं, यह एक दुर्भाग्यपूर्ण और असत्य धारणा है। यह कहना कि इससे केवल स्थानीय आदिवासियों की गरिमा और आत्मनिर्भरता पर ही प्रभाव हो रहा है, यह राज्य के चोरी होते संसाधनों ,समृद्धि और गरिमा को अनदेखा करना है।
पूरे राज्य की गरिमा पर प्रभाव
जब बाहरी लोगों द्वारा थानीय लोगों को उनकी धरती से बेख़ौफ़ भगाया जा रहा है, तो इसका प्रभाव पूरे राज्य की गरिमा पर पड़ता है। यह निश्चित रूप से उन सभी वर्गों को प्रभावित कर रहा है जो इस राज्य की समृद्धि की दिशा में काम कर रहे हैं, चाहे वे मध्यम वर्ग हो , युवा हों, बेरोज़गारी के शिकार हों या उद्यमियों के रूप में काम कर रहे हों। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है की जिन संसाधनों का छत्तीसगढ़ के विकास के लिए उपयोग नहीं हो पा रहा हो उसका देश के विकास में होगा यह शतुर्मग धारणा है।
सामूहिक प्रयास की आवश्यकता
इस समस्या का समाधान सिर्फ स्थानीय आदिवासियों को नहीं, बल्कि राज्य की समृद्धि के सभी समर्थकों को साथ मिलकर करना होगा। आदिवासी तो राज्य के संसाधनों के लिए वर्षों से अकेला लड़ ही रहा , अब हमें एक सामूहिक प्रयास के रूप में हसदेव जंगल की रक्षा करने और उसकी समस्याओं को समाधान करने की दिशा में एकत्र होने की आवश्यकता है, ताकि हम सभी मिलकर एक समृद्ध और न्यायपूर्ण छत्तीसगढ़ की ऊँचाइयों को छू सकें तथा लोगों को समझा सकें की छत्तीसगढ़ के किसी भी हिस्से का शोषण आपका खुद का व्यक्तिगत शोषण है जिसने छत्तीसगढ़ को सम्भावित उच्च क्वालिटी सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य और रोज़गार से वंचित कर रखा है जबकि एक विदेशी टुरिस्ट जान पॉवल के अनुसार छत्तीसगढ़ जैसा राज्य अगर यूरोप में होता तो शायद सबसे विकसित और समृद्ध राज्य होता।
छत्तीसगढ़ के लोगों को अपनी गरिमा के अनुसार खुद को विकसित करने की आवश्यकता है और बाहरी शोषण से अपने निवासियों और आदिवासियों बचाना अब प्राथमिकता होना चाहिए।
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