जनकवि केदार सिंह परिहार का निधन

People's poet Kedar Singh Parihar passed away, the poet who created the fragrance of Chhattisgarh's soil and the simplicity of folk life in his words, Chhattisgarh, Khabargali

रायपुर (खबरगली) छत्तीसगढ़ की माटी की खुशबू और लोकजीवन की सादगी को अपने शब्दों में गढ़ने वाले जनकवि केदार सिंह परिहार नहीं रहे। रविवार सुबह उनका निधन हो गया। उनकी प्रसिद्ध पंक्ति “छत्तीसगढ़ ल छांव करे बर, मंय छानही बन जातेंव” आज भी घर-घर में गूंजती है। उनके निधन से न केवल परिवार, बल्कि साहित्य, संस्कृति और समाज सभी ने अपूरणीय क्षति झेली है।

शोक में डूबा छत्तीसगढ़

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि, “अइसन अंतस के गीत लिखइया, प्रसिद्ध कवि अउ गीतकार केदार सिंह परिहार जी के अवसान ले साहित्य जगत सुन्ना होगे हे। भगवान मेर प्रार्थना करत हंव के दिवंगत आत्मा ला अपन श्री चरण मा ठउर देवय।” वहीं, उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने लिखा, “छत्तीसगढ़ की आत्मा को अपने शब्दों में पिरोने वाले लोक गायक एवं वरिष्ठ नेता केदार सिंह परिहार जी का जाना हम सबके लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने भावनात्मक गीतों के जरिए प्रदेशवासियों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी।”

कवि केदार सिंह परिहार का जीवन परिचय

केदार सिंह परिहार का जन्म 7 मार्च 1952 को मुंगेली जिले के पलानसरी गांव में हुआ था। वे भागवत सिंह परिहार और अंबिका देवी परिहार के पुत्र थे। शिक्षा पूरी करने के बाद वे रचनात्मक जीवन की ओर अग्रसर हुए। साल 1972 में लिखी उनकी रचना “छत्तीसगढ़ ल छांव करे बर…” लोकगीत की तरह प्रदेश की धड़कनों में बस गई। उन्होंने अपने जीवन में 400 से अधिक गीत और कविताओं की रचना की। इसके अलावा उन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्मों “किसान-मितान” और “इही हे राम कहानी” के लिए गीत लिखकर सिनेमा जगत में भी अमिट छाप छोड़ी।

साहित्य से समाज और राजनीति तक

केदार सिंह परिहार सिर्फ साहित्य तक सीमित नहीं रहे, बल्कि समाज और राजनीति में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। वे ग्राम पंचायत टिंगीपुर के दो बार सरपंच चुने गए। इसके अलावा, मुंगेली कृषि उपज मंडी बोर्ड के अध्यक्ष और मध्यप्रदेश मंडी बोर्ड के सदस्य भी रहे। छत्तीसगढ़ी भाषा को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने राजभाषा आयोग के सदस्य के रूप में व्याकरण निर्माण में अहम योगदान दिया।परिहार जी की रचनाएं छत्तीसगढ़ की माटी, मेहनतकश लोगों और लोकजीवन की सादगी से गहराई से जुड़ी रहीं। उनके गीत आज भी ग्रामीण अंचल में गूंजते हैं और लोगों को अपनी जड़ों की याद दिलाते हैं। उनका जाना छत्तीसगढ़ की लोकधड़कनों से एक स्वर के टूटने जैसा है, लेकिन उनकी रचनाएं उन्हें हमेशा जीवित रखेंगी।

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