पहली बार सीआरपीएफ ‘कोबरा’ कमांडो का हिस्सा बनीं 34 महिला जवान

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नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में मोर्चा संभालेंगी लेडी कोबरा कमांडो

नई दिल्ली (khabargali) सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो दस्ते को विश्व के सर्वश्रेष्ठ बलों में शामिल किया गया है। यह दस्ता कई मायनों में अमेरिका के मरीन कमांडो को भी पीछे छोड़ देता है। अब सीआरपीएफ ने एक नया इतिहास रच दिया है। कोबरा दस्ते में अब महिला जवानों को शामिल किया जा रहा है। सीआरपीएफ की छह महिला बटालियनों में से 34 कार्मिक, कोबरा इकाई का हिस्सा बन गई हैं। ये छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में मोर्चा संभालेंगी। इन्हें तीन माह का कठोर प्रशिक्षण दिया जाएगा। इनके अलावा 200 और महिला जवानों ने भी इस यूनिट में शामिल होने के लिए अपने नाम दिए हैं।

दस्ते की यह है खासियत

विशिष्ट फोर्स कोबरा यानी ‘कमांडो बटालियन फॉर रिसोल्यूट एक्शन’ दस्ते की खासियत है कि इसके कमांडो जंगल में बिना किसी मदद के 11 दिनों तक लड़ सकते हैं। इसके कमांडो 23 किलो वजन के साथ 11 रातों तक गहन जंगल से गुजरने में समर्थ हैं। यही वजह है कि कोबरा कमांडो को दुनिया के विभिन्न सुरक्षा बलों के मुकाबले विशिष्ट दर्जा हासिल है। इस विशिष्ट फोर्स से अनेक कमांडो एसपीजी और जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा में तैनात होते रहते हैं। महिला कमांडो की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद इन्हें माओवादी क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा।

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वाहिनी ने 34 वर्ष पूरे कर लिए

सीआरपीएफ डीजी डॉ. एपी माहेश्वरी के अनुसार, इन महिला जवानों ने न केवल भारत में, बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न शांति अभियानों में भाग लेकर विदेशी धरती पर भी अपना लोहा मनवाया है। सीआरपीएफ की 88वीं महिला वाहिनी का गठन 1986 में किया गया था। आज राष्ट्र सेवा में इस वाहिनी ने 34 वर्ष पूरे कर लिए हैं। फिलहाल सीआरपीएफ के पास 246 बटालियन हैं. इनमें 208 एग्जिक्यूटिव, छह महिला, 15 आरएएफ, 10 कोबरा, पांच सिग्नल, एक स्पेशल ड्यूटी ग्रुप और एक पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप शामिल हैं।

सात बहादुर महिला योद्धा शहीद हो चुकी हैं

सात बहादुर शेरनियों ने कर्तव्य की वेदी पर सर्वोच्च बलिदान देकर खुद को अमर कर लिया है। बटालियन की महिला योद्धाओं ने वीरता के कई रिकॉर्ड बनाए हैं। अनेक वीरता पदकों के अलावा इन्हें शांतिकाल का सर्वोच्च वीरता पदक ‘अशोक चक्र’ भी प्रदान किया गया है।

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 अमेरिकन मरीन कमांडो से आगे हैं

कोबरा कमांडो के बारे में कहा जाता है कि ये कुछ बातों में अमेरिकन मरीन कमांडो से आगे हैं। पांच साल पहले गणतंत्र दिवस की परेड में ये कमांडो पहली बार नजर आए थे। इस खास इकाई का गठन बिल्कुल वैसे ही किया गया है, जिस आधार पर अमेरिकी कमांडो तैयार किए जाते हैं। कोबरा की ट्रेनिंग से लेकर उनके ऑपरेशन को अंजाम देने के तरीकों तक, बहुत कुछ यूएस मरीन कमांडो से मिलता है। खासतौर पर घने जंगलों में नक्सली और आतंकियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए इस विशिष्ट फोर्स को खास तरह की ट्रेनिंग दी गई है।

अत्याधुनिक हथियारों से लैस रहते हैं

जवानों को पर्सनल आर्मर सिस्टम, ग्राउंड ट्रूप्स हेलमेट, यूएस के एम 1 हेलमेट और जर्मन आर्मी के स्टेहेलम हेलमेट मुहैया कराए जाते हैं। ये कमांडो इस्राइल निर्मित एमटीएआर व एक्स 95 राइफल जैसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस रहते हैं। कमांडो के पास जीपीएस के अलावा रात को देखने के लिए चश्मा होता है। कोबरा कमांडो जैमर और बुलेट प्रूफ तकनीक से लैस रहते हैं। महिला कमांडो को ट्रेनिंग के दौरान विशेष हथियार चलाना, सामरिक योजना बनाना, फील्ड क्रॉफ्टस, विस्फोटकों की पहचान और जंगल में जीवित रहने की कला सिखाई जाएगी। कोबरा कमांडो की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद सभी को उनके पुरुष काउंटरपार्ट के साथ लेफ्ट विंग एक्ट्रिमज्म क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा।