रहबरों ! निजी अस्पतालों के नरपिशाचों का उपचार करो

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कोरोना ईलाज के भारी बिल और प्रशासन की नजरअंदाजी पर 'कुमार जगदलवी' की तीखी टिप्पणी

Khabargali(फीचर डेस्क)

कोरोना महामारी को देश के सभी राज्यों के हर शहर और महानगर के निजी अस्पताल, सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के नरपिशाच डायरेक्टरों - प्रबंधकों ने खुली लूट का अवसर मान लिया है। कोरोना संक्रमित अति क्रिटिकल मरीजों के लिए राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने अधिकतम 18,000₹ का प्रतिदिन का शुल्क तय कर रखा है। बावजूद इसके इन्हीं निजी अस्पतालों में 5 से 10 दिन तक ईलाज के बाद 5 से 10 लाख रुपये के बिल परिजनों से वसूल लिया जा रहा है। आप कहेंगे उन अस्पतालों के नाम बताओ। तो मेरा जवाब है ए टू जेड। आप शहर के किसी भी निजी अस्पतालों में कोरोना का ईलाज करा रहे या करा चुके मरीजों के परिजनों से बात कर लें। उनके बिल चेक कर लें। जवाब मिल जाएगा। राजधानी रायपुर के कई समाचार पत्रों ने इन नरपिशाचों द्वारा वसूली गई बिलों के तस्वीर के साथ मय प्रमाण समाचारों को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया है। सरकार द्वारा नियुक्त किए गए कोरोना नोडल अधिकारियों की संजीदगी तो देखिए। जब उनसे समाचार पत्रों के संवाददाता ने सवाल किया तो कुछ ने कहा - हाँ शिकायत मिली हैं। हमनें उन पर गम्भीर कार्रवाई करते हुए एक लाख, 1,00000 ₹ तक बिल कम करवाए हैं। कई ने तो शिकायत मिलने पर शिकायत कर्ता परिजनों को सीएचएमओ के पास जाने को कह कर अपनी कारवाई पूरी कर दी है।

सवाल उठता है कि जब शासन ने कोरोना ईलाज का चिकित्सकीय, हॉस्पिटलिटी से लेकर वेंटिलेटर तक अधिकतम 18 हजार ₹ प्रति दिन तय कर रखा है तो बिल अधिकतम 2 लाख होनी चाहिए। 5 से 10 लाख का बिल 5 से 10 दिन का कैसे? एक तरफ इन्हीं निजी अस्पतालों की लापरवाहियों से देश भर में कई अस्पतालों व सुपर स्पेशलिटी की तमगा लगाए नर्सिंग होम्स में आगजनी, आक्सीजन की कमी की वजह से सैकड़ों कोरोना मरीज जान गंवा चुके हैं। और तो और एक तरह दुर्घटना के शिकार मरीजों के परिजन अपने मरीज की स्थिति जानने के लिए बदहवास फिर रहे थे। जबकि अस्पताल प्रबंधन शिकार हो चके मरीज के परिजन को बॉडी दिखाने से पहले हादसे के पहले की गई तीमारदारी का बिल जमा करने को कह रहे थे।

अब मेरा सवाल सीधे प्रदेश के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्रियों से है। क्या उन तक ये समाचार नहीं पहुंच रहे हैं। यदि पहुंच रहे हैं तो आंख और कान बंद क्यों? हाथ कारवाई के लिए आर्डर क्यों नहीं लिख रहे? जुबान इन निजी अस्पतालों के डॉयरेक्टरों और प्रबंधन को क्यों नहीं हिदायत दे रही कि नरपिशाचों लूट बंद करो वर्ना गर्दन नाप देंगे। लाइसेंस अथवा निजी अस्पताल संचालन के लिए जिस तरह के भी प्राधिकार दिए गए हैं, उन्हें रद्द कर दिया जाएगा। तय दर से एक रुपये भी अधिक वसूली का प्रमाण मिलने पर डायरेक्टर व प्रबंधक को सीधे जेल शिफ्ट कर दिया जाएगा।

परन्तु देखने में यही आ रहा सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्री (गैर भाजपा) वाले केंद्र सरकार पर कभी ऑक्सीजन, कभी वैक्सीन तो कभी रेमेडीसीवीर के दर को लेकर एक दूसरे को नीचा दिखाकर राजनीति में दिल्ली -दिल्ली , स्टेट-स्टेट खेलने में लगे हुए हैं। भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्री आंकड़े दबाने और निजी अस्पतालों की मनमानी पर मौनी बाबा बन चुके हैं। एक तरफ़ देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में महामारी की तमाम सूचनाओं के बावजूद रैली और जन सभाओं में लाखों की भीड़ दिखा शक्ति प्रदर्शन कर कोरोना बांट रहे हैं। और अब आक्सीजन की कमी को लेकर राजनीति।

जिलों के कलेक्टर जिन्हें प्रशासनिक शक्ति के तौर पर सीधी कार्रवाई करने अधिकार एक मुख्यमंत्री से भी ज्यादा प्राप्त है। उनकी ख़ामोशी भी हैरत पैदा कर रही है। अब वक्त आ गया है कि कोरोना काल में मानव सेवा के लिए मिशाल पेश कर रहे सामाजिक संगठन निजी अस्पतालों के लिए भी आवाज़ बुलंद करें। (नोट : निजी अस्पताल के लूट के शिकार परिजनों से आग्रह है कि वे इस लेख के समर्थन में अपने बिल का स्क्रीन शॉट लगाकर। इस लेख को फारवर्ड करें। ताकि सरकारों में जनता के प्रति जरा भी हमदर्दी हो तो वे निजी अस्पतालों के नरपिशाचों पर कार्रवाई करने बाध्य हो।)

- कुमार जगदलवी,  संपर्क:7999515385

(नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं)