35 वां नेत्रदान पखवाड़ा शुरु, इस बार की थीम है- “हॉस्पिटल कॉनियल रिट्रेवल प्रोग्राम”

Eye donation, khabargali

प्रदेश में राज्यभर के अस्पतालों में गत वर्ष 2019-20 में सिर्फ 362 नेत्रदान हुए थे

रायपुर (khabargali) वैश्विक महामारी कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए इस बार 35वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा सोशल डिसटेंसिंग का पालन करते हुए मनाया जाएगा । 25 अगस्त से 8 सितंबर तक जिला व ब्लॉक स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों में नेत्रदान के प्रति जागरुक किया जाएगा। इस वर्ष राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा-2020 का थीम – “हॉस्पिटल कॉनियल रिट्रेवल प्रोग्राम” पर आधारित है। जिला अस्पताल में 25 अगस्त को सीएमएचओ डॉ. मीरा बघेल, सिविल सर्जन डॉ रवि तिवारी सहित ब्लॉक स्तर के नेत्र रोग अधिकारी इस बार शाम 3 से 4 बजे के बीच वेबीनार के माध्यम से इस पखवाड़े का शुभारंभ करेंगे। देखने का अधिकार मानव के मूल अधिकारों में से एक है। अत: यह आवश्यक है कि कोई भी व्यक्ति अनावश्यक दृष्टिहीन न होने पाए और यदि है तो दृष्टिहीन न रहने पाए। इसी उद्देश्य को लेकर दृष्टिविहीनता कार्यक्रम के तहत बच्चों तथा प्रजनन आयु समूह में आंखें की कार्निया, पुतली से नेत्रहीनता की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा प्रति वर्ष मनाया जाता है।

जिला अंधत्व नियंत्रण समिति के नोडल अधिकारी डॉ. निधी ग्वारे ने बताया कार्नियल अन्धेपन की समस्याओं को दूर करने के लिए हॉस्पिटल कॉनियल रिट्रेबल प्रोग्राम के अंतर्गत ऐसे मरीज जिनका अस्पताल में मृत्यु होने पर परिजनों को नेत्र दान के लिए प्रेरित किया जाता है। ऐसे मृत शरीर जिनकी उम्र 5 वर्ष से अधिक और 60 वर्ष से कम की अवस्था में मृत्यु होने पर 4-6 घंटे के भीतर कॉनियल निकालने की प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए। वहीं 24 घंटे के भीतर जरुरतमंद को ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। केवल ऐसे मृत शरीर से ही नेत्रदान लिया जा सकता हैं जिन्हें गंभीर बीमारी कैंसर, हेपेटाइटीस व एचआईवी एड्स जैसी रोग से ग्रसित नहीं होनी चाहिए।

राष्ट्रीय अंधत्वव नियंत्रण के राज्य कार्यक्रम अधिकारी डॉ. सुभाष मिश्रा ने बताया, कार्नियल अन्धेपन के बचाव व अच्छी दृष्टि के लिए आंखों की देखभाल बहुत जरूरी है। यह पाया गया है कि छोटे बच्चे अक्सर कार्नियल नेत्रहीनता के शिकार होते है। कार्नियल नेत्रहीनता का उपचार केवल किसी व्यक्ति की मृत्यु होने के बाद उसकी आंख के कॉर्निया को खराब कार्निया वाले मरीज की आंख में लगा देने से हो सकता है और उसकी आंख की रोशनी वापस लाई जा सकती है। उसका अंधापन दूर किया जा सकता है। इसे नेत्र प्रत्यारोपण भी कहते है। उन्होंने बताया नेत्रदान सिर्फ मरणोपरांत ही किया जाता है। किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु होने पर परिवार शोकाकुल होता है ऐसी मुश्किल घड़ी में नेत्रदान करना जटिल होता है। ऐसे में समाज के लोग, समाज सेवी, अन्य प्रतिनिधि अहम भूमिका निभा सकते है।

डॉ. मिश्रा ने बताया ने प्रदेश में राज्यभर के अस्पतालों में गत वर्ष 2019-20 में 362 नेत्रदान हुए थे। वहीं वर्ष 2018-19 में 360 और वर्ष 2017-18 में 378 नेत्रदान प्राप्त हुए थे। वर्तमान में हम देश में सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्रों में काम करने वाले नेत्र बैंक के प्रयासों से सालाना 60000 से 65000 आँखों का संग्रह नेत्रदान के जरिए प्राप्त हो रहे हैं।

डॉ मिश्रा ने बताया देश में राष्ट्रीय सर्वेक्षण अंधत्व वर्ष 2015-19 की रिपोर्ट के अनुसार देश में अंधेपन के कुल मामलों में कॉर्नियल ब्लाइंडनेस की समस्या लगभग 7.9% बढ़ी है। रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि हर साल लगभग 20,000 नए अंधेपन के मामलों में वृद्वि होती है। देश में प्रति वर्ष लगभग 2 लाख कार्निया की जरूरत होती है। जबकि जागरूकता की वजह से नेत्रदान में अभी भी प्रगति हो रही है लेकिन यह अपर्याप्त है । बड़े शहरों और कस्बों में कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के इलाज की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यह सुविधा मेडिकल कॉलेज में आई बैंक द्वारा दी जाती है। कॉर्निया के अंधेपन के रोकथाम के लिए नेत्र प्रत्यारोपण के साथ-साथ कॉर्निया से होने वाले नुकसान को बचाया जाना जरूरी है। इसके लिए छह वर्ष से कम आयु के बच्चों को विटामिन ए पिलाना अतिआवश्यक है। सभी बच्चों का पूर्ण टीकाकरण कराया जाना आवश्यक है। आंखों को चोट लगने से बचाया जाए और बच्चों को नुकीली वस्तु से न खेलने दें। आंख में संक्रमण होने पर इसका जल्द उपचार कराने के साथ नेत्र चिकित्सक की सलाह लें। यदि ऑखों में कुछ पड़ जाए तो आंख को मलें नही केवल साफ पानी से धोएं, फायदा न होनें पर नेत्र चिकित्सक से जांच करवाएं।

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