मरहीमाता दर्शन को जाने वाले श्रद्धालुओं की धूप तले बिगड़ रही तबियत..यात्रियों के तकलीफों से रेलवे को कोई सरोकार नहीँ

Marhi Mata Temple, Aradhana Shakti Peeth, Gorela-Pendra-Marwahi of Chhattisgarh, between Khongsara and Khodri railway station on Bilaspur-Katni rail route, train accident, tribal, news,khabargali

आराधना शक्ति पीठ मरही माता मंदिर की जानें क्यों है अलौकिक प्रसिद्धि

भनवारटंक (khabargali) यदि आप भनवारटंक की मरही माता का दर्शन करने आएंगे तो रेलवे की उपेक्षा पूर्ण रवैए को देख आपकी रुह कांप सकती है। लेकिन रेलवे है कि सुविधाओं की बहाली का राग अलापता दिखाई दे रहा है।

कोरोना काल के बाद बिना किसी घोषणा के रेलवे ने परंपरागत रूप से पैसेंजर हाल्ट स्टेशनों पर पैसेंजर ट्रेनों का स्टॉपेज बंद कर दिया। सुविधाएं छीन ली गई। लोगों ने आंदोलन किया। हो हल्ला होते देख रेलवे ने बताया कि अब एक निर्धारित आय होने के बाद ही संबंधित स्टेशनों में संबंधित ट्रेनों के स्टॉपेज की सुविधा दी जाएगी। बंद स्टेशन सांसद की पहल पर विशेष रूप से पुनः ऐसे शुरु किए जा रहे हों जैसे चुनावी वादे निभाए जा रहे हों।

रेलवे का विशुद्ध यह व्यवसायिक नजरिया रोजाना बिलासपुर कटनी रेल लाइन पर 70 किलोमीटर दूर स्थित भनवारटंक पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं है। यहां मरही माता का राज्यव्यापी प्रतिष्ठित होता पुराना मंदिर है। जहां पर लोग अपनी मनोकामना को लेकर बड़ी संख्या में विभिन्न साधनों से पहुंचते हैं। जिनमें सबसे बड़ा सस्ता सुलभ साधन ट्रेन है। समीपस्थ दक्षिण पूर्व मध्य रेल के जोनल मुख्यालय से आने वाले बिलासपुर कटनी और शहडोल मेमू ट्रेन इस स्टेशन में आती हैं। जिनमें खासकर संडे को हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।

मंदिर में देवी का दर्शन करने के बाद इन दोनों ट्रेनों की भीड़ बिलासपुर वापसी के लिए शहडोल से आने वाली मेमू ट्रेन में सवार होने के लिए उमड़ पड़ती है। मतलब 2 ट्रेनों की भीड़ एकमात्र ट्रेन में सवार होने के लिए मशक्कत करती नजर आती है। जिसकी वजह से सभी यात्रियों को बैठने की जगह नहीं मिल पाती है और बिलासपुर तक खड़े-खड़े यात्रा करनी पड़ती है। इससे भी बड़ी परेशानी यह है कि इतने वर्षों के बाद भी इस स्टेशन के प्लेटफार्म क्रमांक 1 और 2 में ट्रेन की रैक के हिसाब से पर्याप्त लंबाई का शेड तक नहीं बनाया गया है। इतना ही नहीं कटनी तरफ से आने वाली ट्रेनों में सवार होने के लिए प्लेटफार्म तक नहीं है। लिहाजा इन दिनों तब तपती चिलचिलाती धूप चले बड़ी संख्या में श्रद्धालु छोटे बच्चों और शिशुओं और बुजुर्गों के साथ घंटों ट्रेन का इंतजार करते इस स्टेशन पर दिखाई दे जाते हैं। यहां से रेलवे को अच्छी खासी आय हो रही है। लेकिन धूप से बचने के लिए शेड प्लेटफार्म नहीं है। निर्माण कार्य कछुआ चाल से हो रहा है।

रेलवे की इस उपेक्षा पूर्ण और लापरवाही भरे रवैये के कारण इन दिनों श्रद्धालुओं की तबीयत खराब हो जा रही है रही है। ऐन यात्रा के बीच भनवारटंक स्टेशन पर यदि किसी की तबीयत इस वजह से बिगड़ जाती है तो समय पर डाक्टर तलाशना भी असंभव हो जाता है। दक्षिण पूर्वी मध्य रेलवे बिलासपुर के अधिकारियों को अपना ऐसा व्यवसाय रवैया और स्टेशन पर चल रही कछुआ चाल की गति को छोड़ते हुए तत्काल व्यवस्था सुधारने का उपक्रम करना चाहिए।

भक्तों की लगती है भीड़  मरही माता मंदिर में

 छत्तीसगढ़ के गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिले में बिलासपुर-कटनी रेल मार्ग पर खोंगसरा और खोडरी रेलवे स्टेशन के बीच स्थित एक छोटा सा भनवारटंक रेलवे स्टेशन है जिस पर प्रकृति ने दोनो हाथों से सुंदरता बांटी है जो अकल्पनीय है। वृक्षों के कारण सघन वन है। स्टेशन के रेलवे ट्रेक के किनारे ही मरही माता मंदिर है। मरही माता मंदिर की आराधना शक्ति पीठ के रूप में होती है।माता के मंदिर के सामने शंकर भगवान और भैरव बाबा का मूर्ति बना हुआ है और माता के मंदिर के सभी जगहों पर नारियल बंधे दिखाई देता है | वर्तमान में यह मंदिर भव्य रूप धारण कर चुका है ।श्रद्धालुओं की आस्था गहरी होने के कारण मंदिर में सदैव भीड़ लगी रहती है। जहां चैत्र व शारदीय नवरात्रि पर दर्शनार्थियों की भारी भीड़ उमड़ती है। यहां श्रद्धालु नारियल बांध कर मनौती मांगते हैं और पूरी होने पर दर्शन करने पहुंचते हैं। यहां मध्य प्रदेश सहित काफी दूर- दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां से गुजरने वाली ट्रेनों की रफ्तार भी धीमी पड़ जाती है।

मरही माता देवी मंदिर का है अनोखा इतिहास 

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 इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं जिसमें यह बताया जाता हैं कि मरही माता कहां से आयी कैसे प्रकट हुई कई लोगों का मानना हैं कि इस मंदिर के पास जो नीम का पेड़ है मां मरही माता उसी पेड़ से प्रकट होकर लोगो को अपने दर्शन दिये थे । स्थापित माता के आसपास के पेड़ों पर उस समय यहां रहने वाली आदिवासी जनजाति चुनरी व नारियल बांध कर रखती थी | जब दुर्घटना के कारण यहां लोगो कि आवाजाही  बढ़ी तब लोगो ने इन आदिवासियों से पूछा की आप पेड़ो पर एैसे चुनरी नारियल बांधकर क्‍यों रखते हैं तब जवाब में उन्‍होनें कहा कि यह उनकी आराध्‍य देवी मरही माता का स्थापित स्‍थान हैं और वे उनकी पुजा करते हैं और तब से ही यहां श्रद्धालुओं का आना-जाना बढ़ गया । 1980 के पहले इस पवित्र स्थान के बारे में किसी को पता नहीं था और जब इसके पास 1982-1984 में नर्मदा एक्‍सप्रेस की दुर्घटना एक मालगाड़ी के साथ हुई थी तब यह जगह प्रकाश मे आई थी।

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ट्रेन हादसे के बाद स्थापित किया गया मंदिर

बताया जाता है कि 1984 में इंदौर-बिलासपुर नर्मदा एक्सप्रेस रेल हादसा हुआ था। इसके बाद रेलवे और वन विभाग कर्मचारियों ने मरही माता का छोटे से मंदिर का निर्माण कराया गया। मान्यता यह भी है कि मरही माता के आशीर्वाद से ही बिलासपुर-कटनी रेल रूट पर जंगली और पहाड़ी क्षेत्र भनवारटंक में हादसों से रक्षा होती है।

ट्रेनों के पहिये तक थम जाते हैं

वैसे तो यह मंदिर साल के 365 दिन श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है, लेकिन नवरात्रि पर यहां विशेष आयोजन होता है। लोग पूरे साल अपनी मन्नतों का नारियल बांधते हैं और पूरा होने पर यहां पूजन के लिए आते हैं। खास बात यह है कि मां के मंदिर के सामने से निकलने के दौरान ट्रेनों के पहिये तक थम जाते हैं।

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