दुष्यंत " बेबाक " की बेबाक गजलें

Dushyant "Babak"

मुझे जलने दो..

किसी की आग में जलता हूँ मैं,  तो मुझे जलने दो,
कोई दमकता है मेरी लौ में,      तो मुझे जलने दो ..
मेरी आँख से निकले अश्कों का न हिसाब करना,
इनमे कोई पलता है तो उसे पलने दो..
 मुझे जलने दो..
अपनी ख़ुशी कैसी ख़ुशी,ग़म कैसे पराये
कोई मुस्कुराये मेरे दर्द से तो खुशियाँ लेने दो.. मुझे जलने दो..
खुद नूर ही हो पर्दा जिसका,उसे कौन बुझाए ,
मैं बुझता हूँ उसी नूर में तो मुझे बुझने दो
मुझे जलने दो.....


"पैरहन"

"एक पैराहन जाली सा दिखाई देता है मुझको,
बुनने वाले की किस्मत सा दिखाई देता है मुझको
तागे तागे को जोड़कर जो कोशिशें कीं हैं उसने,
सारा ताना बाना उन कोशिशों का हिसाब दिखाई देता है मुझको
 रंगों के तितर बितर होते तेवर, उसके आंसुओं से बिखरते ,
फैलते जाते हैं, उसकी आँखों में नमी का ग़ुबार दिखाई देता है मुझको
किसे ढंकने के लिए बुना है उसने ये पैराहन, मुझे या के खुदको,
आज उसके बदन का हर दाग दिखाई देता है मुझको
दिन की धूप हो या रातों की सर्दी , बारिश की बौछार हो या तपती गर्मी ,
उसके दिल में एक ही मौसम दिखाई देता है मुझको
हवाओं ने शायद जल्दी सुखा दिया इन रंगों को,
लेकिन उनमें नमी अभी भी दिखाई देती है मुझको "

" नाद "

किंचित किंचित अंश अंश , जीवन करता नाद मृदुल
केवल एक छोटी सी आशा ताल तरंग को करे चंचल
हरित पंखुड़ियों में सज धज के, मन की मछली हुई व्याकुल
धाराओं से खेल खेल के सींच रही अपना आँचल
लगन मन में, लगन लगे बस , लगन का  ना हो कोई छोर
ऋतू हो कोई भी वन नभ में, प्रतिदिन नाचे मन का मोर
शांत हुआ तो मिट जायेगा, सदा ही रहना मन व्याकुल
किंचित किंचित अंश अंश , जीवन करता नाद मृदुल !!!

- दुष्यंत " बेबाक "
dushyantd1@gmail.com