उर्मिला देवी उर्मि की लोकतंत्र के पहरेदारों पर कविता
ख़बरगली (साहित्य डेस्क)
हम तो हैं पत्रकार ! लोकतंत्र के पहरेदार ! नहीं किया करते हम शब्दों का कोई व्यापार । प्यारी हमें अपनी खुद्दारी, समझें अपने कर्तव्य अधिकार । नहीं लुभाती कभी हमें, सिक्कों की उजली चमकार । हम तो हैं पत्रकार ! लोकतंत्र के पहरेदार !! 'जहां कहीं भी दिखे बुराई, कलम हमारी करे प्रहार । नियति ने दी कलम हमें वह काम करे जो सोच विचार ।। सत्य की करती जय कार , झूठ पर करती वार हजार । हम तो हैं पत्रकार ! लोकतंत्र के पहरेदार !! नहीं चाहिए हमें औजार, और नहीं कोई हथियार । बुराई पर करने को वाऱ, कलम हमारी रहे तैयार । बच न सके हमारी नज़र से, कोई बेईमान , कोई गद्दार । हम तो हैं पत्रकार ! लोकतंत्र के पहरेदार "! मिटाकर सारी भ्रांति हम सत्य से करवाते साक्षात्कार अफ़वाहों पर विराम लगाकर "तथ्यपरक दें समाचार । हम वो सजग प्रहरी जो रहें कर्तव्य के पथ पर होशियार । हम तो हैं पत्रकार ! लोकतंत्र के पहरेदार !! जनहित में जो मिले प्रशंसा या आलोचना भी हमें स्वीकार । जन प्रतिनिधि हो या जन सामान्य सबको हम रखते खबरदार। जन -जन तक हम पहुँचाते खबरें , जिनका हो जन- सरोकार । महल हों ऊँचे शानदार या झोंपडी हो टपरीदार । सच्ची खबरों के सब हकदार सबको हमारा नमस्कार । हम तो हैं पत्रकार ! लोकतंत्र के पहरेदार !
- उर्मिला देवी उर्मि,
साहित्यकार , शिक्षाविद , समाज सेवी , रायपुर छत्तीसगढ ।
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