
लूट का लंबा असर यह हुआ कि भारत का औद्योगिक आधार नष्ट हो गया और अर्थव्यवस्था पिछड़ने की मुख्य वजह रहा
अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम ने अपनी सालाना रिपोर्ट में ब्रिटिश शासन की लूट की कहानी का किया खुलासा
लंदन (खबरगली) भारत का इतिहास बताता है कि वह प्राचीन काल से ही अपनी समृद्धि , ऐश्वर्य और संसाधनों के लिए विश्व प्रसिद्ध था। जिसे कभी सोने की चिडि़या कहा जाता था, इसीलिए इसे विभिन्न समयों में विभिन्न शक्तियों द्वारा लूटा गया है। इसे अधिकांशत: विदेशी आक्रमणों के रूप में लूटा गया है। विदेशी आक्रमणों की संख्या इतिहास में अधिक है, जिनमें मुगल साम्राज्य, पुर्तगाली, फ्रांसीसी, ब्रिटिश और अन्य शक्तियाँ शामिल हैं। भारत के धन, वैभव और समृद्धि ने महान सिकंदर के मन पर भी एक मजबूत छाप छोड़ी थी, और जब वह भारत के लिए रवाना हुआ तो उसने अपनी सेना से कहा था कि वे उस ‘सुनहरे भारत’ के लिए अपना सफर शुरू कर रहे हैं जहां अपार धन का भण्डार है, और उन्होंने जो कुछ अब तक फारस में देखा था वह भारतवर्ष के धन और ऐश्वर्य की तुलना में कुछ भी नहीं।
1780 सीई में भी, मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा बृहत्काय और दर्दनाक लूट के बावजूद भारत अभी भी तुलनात्मक रूप से समृद्ध था और औरंगजेब सभी यूरोपीय राजाओं के समान धनवान था। आम हिंदुओं ने बहुत कष्ट सहा था। उन पर अत्यधिक कर लगाया गया, उनके मंदिरों को नष्ट कर दिया गया, उनके ज्ञानवर्धक पाण्डुलिपियों को जला दिया गया, बुरी तरह से अपमानित किया गया और लाखों लोगों को मृत्यु के घाट उतार दिया गया।
मुगल साम्राज्य के समय में भारत को अक्सर लूटा गया, जबकि ब्रिटिश और अन्य यूरोपीय देशों ने भारत को अपने उद्योगी और व्यापारिक हितों के लिए लूटा। भारत के इतिहास बहुत प्राचीन हैं अलग-अलग कालखंड में कई आक्रांत भारत में आए कुछ लोग भारत धन अपने साथ अपने देश लेकर लेकिन कुछ ऐसे आकांकरी भी हैं जो आक्रांत तो कहलाए लेकिन वह भारत में ही बस गए और भारत के धन को भारत में ही खर्च किया ।
हम यहां बात करते हैं ब्रिटिश शासन की तो भारत करीब 200 साल तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। अंग्रेज व्यापारी बनकर भारत आए थे। ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत 1600 के दशक में 250 निवेशकों के साथ हुई थी। ऑक्सफैम की रिपोर्ट कहती है कि ब्रिटिश शासन ने भारत को समृद्धि को व्यवस्थित तरीके से छीन लिया।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट से हुआ खुलासा
अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम (Oxfam) ने अपनी सालाना रिपोर्ट में ब्रिटिश राज के दौरान अंग्रेजों द्वारा भारत की लूट का खुलासा किया। 2025 में, इस रिपोर्ट को जानकर भारत पर औपनिवेशिक शोषण के घाव एक बार फिर हरे हुए हैं। ऑक्सफैम की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 1765 से 1900 के बीच ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत से लगभग 650 खरब डॉलर की संपत्ति लूटी। यह आंकड़ा सिर्फ 135 साल में निकाले गए पैसों का है। इस रकम का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इससे आप पूरे लंदन में 50 पाउंड के नोटों का चार बार कारपेट बना सकते हैं। यह रकम दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी अमेरिका की जीडीपी से दोगुना से भी ज्यादा है। फोर्ब्स के मुताबिक अमेरिका की जीडीपी 30.34 खरब डॉलर की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अंग्रेजों द्वारा भारत से की गई कमाई में से ब्रिटेन के सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों की जेब में 33.8 खरब आए थे। जबकि 32 फीसदी मिडिल क्लास को मिला।
भारत से सिर्फ धन ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और प्राकृतिक संपत्ति भी लूटी गई। कोहिनूर हीरा, जो भारत की समृद्धि का प्रतीक था, 1849 में लाहौर की संधि के तहत ब्रिटेन ले जाया गया. यह अब ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है। 1857 के विद्रोह के दौरान, दिल्ली के मुगल खजाने से बेशकीमती रत्न और अन्य वस्तुएं ब्रिटेन भेज दी गईं।
जॉन न्यूसिंगर, अपनी किताब "द ब्लड नेवर ड्राइड" में लिखते हैं, "ब्रिटिश सैनिकों ने भारतीय महलों और मंदिरों को व्यवस्थित तरीके से लूटा। वहां से सोना, रत्न, और कलाकृतियां छीन ली गईं।"
1760 में ही 82 हजार लाख रुपए लेकर क्लाइव गया
सन् 1760 में जब रॉबर्ट क्लाइव भारत से वापस ब्रिटेन गया, तो उसके पास कम से कम 300,000 पाउंड की संपत्ति थी, जो आज के हिसाब से 82 हजार लाख रुपए बनते हैं। यह उस ऐतिहासिक लूट की एक छोटी सी मिसाल है, जिसे बहुत से इतिहासकार दुनिया की सबसे बड़ी लूट कहते हैं। 1757 में हुई प्लासी की लड़ाई के विजेता इस अंग्रेज सेना के अधिकारी के कारनामे, दरअसल ब्रिटिश उपनिवेश के रूप में भारत को लूटने का प्रतीक मात्र थे।
भारत में आर्थिक तबाही मचाई अंग्रेजों ने
1750 में, भारत का हिस्सा वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में 25 प्रतिशत था। 19वीं सदी के अंत तक, यह हिस्सा घटकर केवल 2 प्रतिशत रह गया। यह गिरावट प्राकृतिक नहीं थी, बल्कि ब्रिटिश नीतियों का परिणाम थी। ब्रिटिश संरक्षणवादी नीतियों ने भारतीय उद्योगों, विशेष रूप से कपड़ा उद्योग, को बर्बाद कर दिया। भारत, जो दुनिया भर में अपने उत्कृष्ट मलमल और वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध था, धीरे-धीरे इस क्षेत्र में अपनी पहचान खो बैठा। अमेरिकी इतिहासकार माइक डेविस, अपनी पुस्तक लेट विक्टोरियन होलोकॉस्ट्स में लिखते हैं, अंग्रेजों ने भारतीय वस्त्र उद्योग को पूरी तरह नष्ट कर दिया। उन्होंने भारतीय वस्त्रों पर भारी कर लगाए और ब्रिटिश उत्पादों को भारतीय बाजारों में सस्ते दामों पर बेचा। इससे लाखों कुशल कारीगर और बुनकर बेरोजगार हो गए। भारतीय इतिहासकार रोमेश चंदर दत्त, अपनी किताब द इकनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया अंडर अर्ली ब्रिटिश रूल में लिखते हैं, भारतीय निमार्ता यूरोपीय मशीनों और भाप से चलने वाले उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके। वे अपनी आमदनी, भोजन और कपड़े खो बैठे और घोर गरीबी में फंस गए।
अंग्रेजों ने भारत को लूटने के कई तरीके निकाले
भारत को लूटने के कई तरीके निकाले ब्रिटिश शासकों ने ब्रिटिश शासन ने भारत की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से लूटने के लिए कई तरीके अपनाए। इनमें सबसे प्रमुख था होम चार्जेज का सिस्टम। इसके तहत भारत का राजस्व ब्रिटेन में ब्रिटिश अधिकारियों के खर्च और पेंशन के लिए भेजा जाता था। रोमेश चंदर दत्त ने लिखा है, शासन करने वालों का मुख्य उद्देश्य इतना राजस्व जुटाना था कि प्रशासन का खर्च पूरा हो सके और एक बड़ा हिस्सा इंग्लैंड भेजा जा सके। इस नीति का सबसे क्रूर प्रभाव बंगाल में देखा गया, जहां ज्यादा कर लगाने की वजह से साल 1770 का भीषण अकाल पड़ा। इस अकाल में करीब एक करोड़ लोग मारे गए। दत्त के अनुसार, बंगाल की आधी उपजाऊ भूमि पर खेती बंद हो गई। जनसंख्या का एक-तिहाई हिस्सा समाप्त हो गया। अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक ने अनुमान लगाया है कि 1765 से 1938 के बीच ब्रिटेन ने भारत से लगभग 450 खरब डॉलर की संपत्ति लूटी। यह संपत्ति करों, जबरदस्ती निर्यात, और होम चार्जेज जैसे तरीकों से निकाली गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि डच और अंग्रेजों ने उपनिवेशों पर अपनी सत्ता मजबूत करने के लिए वहां के लोगों को नशे का आदी बनाया। अंग्रेजों ने भारत में अफीम की खेती की और इसे चीन को एक्सपोर्ट किया। रिपोर्ट में कई अध्ययनों और रिसर्च पेपर का हवाला देकर कहा गया है कि आज की मल्टीनेशनल कंपनियां उपनिवेशवाद की उपज हैं।
ब्रिटिश नीतियों ने ली 5.9 करोड़ लोगों की जान
ब्रिटिश शासन की नीतियों ने ना केवल भारत की संपत्ति को लूटा बल्कि करोड़ों लोगों की जान भी ले ली। 1891 से 1920 के बीच, ब्रिटिश नीतियों के कारण भारत में 5.9 करोड़ अतिरिक्त मौतें हुईं। सबसे दर्दनाक उदाहरण 1943 का बंगाल अकाल था, जिसमें 30 लाख से अधिक लोग मारे गए। ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की नीतियों की खासतौर पर आलोचना होती है, जिन्होंने इस संकट को और गहरा किया। मधुश्री मुखर्जी, अपनी पुस्तक चर्चिल्स सीक्रेट वॉर में लिखती हैं, चर्चिल ने बंगाल के भूखे लोगों के लिए अनाज भेजने के बजाय उसे ब्रिटिश सैनिकों और ग्रीस जैसे देशों के लिए जमा किया। चर्चिल ने अकाल की खबर सुनकर कहा था, गांधी अब तक मरे क्यों नहीं?
अर्थव्यवस्था पिछड़ने की मुख्य वजह रहा ब्रिटिश शासन
ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ शोषण आज भी भारत पर असर डाल रहा है। उत्सा पटनायक लिखती हैं, शोषण का लंबा असर यह हुआ कि भारत का औद्योगिक आधार नष्ट हो गया और उसकी अर्थव्यवस्था पिछड़ गई। वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन जैसी संस्थाओं पर भी औपनिवेशिक शोषण के ढांचे को खत्म करने में नाकाम रहने का आरोप लगाया गया है।
ऑक्सफैम की यह रिपोर्ट याद दिलाती है कि औपनिवेशिक नीतियों का आर्थिक और मानव लागत सिर्फ इतिहास का हिस्सा नहीं है। यह आज की दुनिया को भी आकार देती है। इससे मुआवजे, नियमित सुधारों, और शोषण के इस लंबे इतिहास से निपटने की मांग फिर से उठ खड़ी हुई है।
ब्रिटेन को मांगनी चाहिए माफी
रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन ने भारत को नहीं बल्कि भारत ने ब्रिटेन को दिए गए पैसे से उसका विकास किया है। इस हिसाब से तो अभी ब्रिटेन को माफी मांगनी चाहिए भारत से लेकिन इसका उल्टा वहां के लोग तो ये मानते हैं कि ब्रिटिश न होते तो भारत का विकास ही नहीं हो पाता।
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