बता रहे हैं डॉ महावीर अग्रवाल, एमबीबीएस एमडी (मेडिसिन विशेषज्ञ)
ख़बरगली (हेल्थ डेस्क)
हेपेटाइटिस को सामान्यतः लिवर या यकृत का शोथ या संक्रमण या आम बोलचाल में पीलिया भी कहते है। जो की मुख्यत: पांच प्रकार वायरस से होते है। इनमे से कुछ संक्रमण स्वतः ठीक हो जाते है और कुछ संक्रमण आगे चल कर लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर का रूप ले लेते है जो की एक जटिल तकलीफ देने वाली लंबी बीमारी का रूप ले लेती है जिसमे मरीज की जान भी जा सकती है या इसका इलाज कुशल चिकित्सक द्वारा दी गई दवाई या बताए गए रोकथाम या इससे भी ठीक ना हो तो अंतिम उपाय लिवर या यकृत प्रत्यारोपण हो सकता है।हेपेटाइटिस मुख्यतः वायरस के संक्रमण से या लंबे समय तक किसी दवाई के या अधिक शराब पीने से हो सकता हैं। और कुछ मामलों में यह ऑटोइम्यून बीमारी के प्रभाव से होता है।
हेपेटाइटिस के मुख्यत: पांच प्रकार देखने को मिलते है जो की A B C D E इन पांचों प्रकार के वायरस से मुख्यत: लीवर का संक्रमण होता है। इनमे सबसे महत्त्वपूर्ण ये होता है की किस तरह या प्रकार से व्यक्ति के शरीर में पहुंच कर लिवर को संक्रमित करते है। और सभी वायरस संक्रमण होने के बाद उनका शरीर में उत्पन्न लक्षण की अवधि एवम् इसके ठीक होने की अवधि भी अलग अलग होती है तथा सभी पांचों प्रकार के वायरस की गंभीरता से जान जाने का जोखिम और किसी किसी वायरस के संक्रमण जीवन पर्यंत लिवर प्रभावित रहता है।आज सभी प्रकार के हेपेटाइटिस या पीलिया के बारे में जानकारी प्राप्त करते है।
हेपेटाइटिस ए
यह मुख्यत: प्रदूषित जल या प्रदूषित खानें या संकर्मित मरीज के संपर्क में आने या साफ सफाई के नही होने से फैलता है। इसके अधिकतर मरीज ठीक हो जाते है या गंभीर मरीजों को अस्पताल में भर्ती भी करना पड़ सकता हैं। हेपटाइटिस A का संक्रमण एक बार हो जानें से इसके दोबारा संक्रमण की संभावना ना के बराबर होती है। हेपटाइटिस ए में मरीजों की मृत्यु भी 1 से 2 प्रतिशत मामलों में देखने में आता है। और तो और इस हेपटाइटिस का सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन भी उपलब्ध हैं। और यह हेपटाइटिस लंबे समय तक शरीर में नही रहता कई साधारण मामले में स्वतः भी ठीक हो जाता हैं।
हेपटाइटिस A के लक्षण
संक्रमित वायरस के संपर्क में आने के बाद 15 से 30 दिनों के बीच लक्षण प्रकट होते हैं। इसमें मरीजों को अत्यधिक कमजोरी लगना ठंड कपकंपी के साथ बुखार के आना खाना देखते ही अरुचि होना बारंबार उल्टी होना और पेशाब आंखो में पीलापन आना।जरूरी नहीं की सभी लक्षण एक साथ दिखे। निदान मुख्यतः लक्षणों पर आधारित होता है तथा कुशल चिकत्सक के सलाह से रक्त की जांच सोनोग्राफी हैं। इसके लिए कोई अचूक दवा नही बनी है।और इसका इलाज लक्षणों पर आधारित होता है। इलाज अधिक से अधिक जितना हो सके आराम करना अधिक से अधिक हो सके तो कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन के साथ साथ शरीर के में पानी की कमी होने से बचाना और यकृत को नुकसान पहुंचाने वाली दवाई और शराब का सेवन नहीं करना और कुशल चिकित्सक के सलाह अनुसार दवाई का सेवन करना।
हेपटाइटिस बी
हेपटाइटिस बी वायरस संक्रमण भी लिवर को प्रभावित करता है और यह संक्रमण थोड़े समय या जीवन पर्यंत भी हो सकता है। यह समान्यतः संक्रमित इंजेक्शन बिना किसी सुरक्षा के लैंगिक संसर्ग या संबंध बनाने से जिसमे कोई भी एक संक्रमित हेपटाइटिस का संक्रमित हो सकता है। संक्रमित खून चढ़ाने से या संक्रमित व्यक्ति के लार के संपर्क में आने से या गर्भवती माता से उसके बच्चे को भी हो सकता है ये संक्रमित व्यक्ति के शरीर के लार या वीर्य से भी फैल सकता है। हेपटाइटिस बी जो लंबे समय तक लिवर को संक्रमित करते रहता है। जिससे लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर की संभावना बड़ जाती हैं। इस बीमारी से 100% बचाव इसके वैक्सीन से है जो की सुरक्षित और असरकारक भी होता है। यह वैक्सीन जन्म के तुरंत बाद और बाकी कुछ सप्ताह के अंतराल में देना होता है और ये हमारे भारत सरकार द्वारा सभी नवजात शिशुओं को मुफ्त में सरकारी संस्था द्वारा लगाया भी जाता हैं।
हेपटाइटिस B के लक्षण
अधिकतर मामलों में इसके कोई लक्षण नहीं मिलते जब तक इसका रक्त में जांच ना कराए जाए। और कुछ मामलों में निम्न लक्षण दिखते है- चमड़ी और आंख और हथेली में पीलापन, पेशाब का पीला होना, अत्यधिक धका हुआ महसूस होना, मितली आना या बारंबार उल्टी होना, पेट में दर्द बना रहना, कब्ज की शिकायत होना, पेट में पानी भरना तथा शरीर अत्यधिक दुर्बल होना, कभी कभी बीमारी का विकराल होने से मल या मुंह से खून का अत्यधिक रक्त स्राव होना जिससे मरीज की जान जाने में भी जा सकता हैं।
जांच या निदान
हेपटाइटिस B का भी रक्त परीक्षण ही है। हेपटाइटिस B के लिए भी कुछ दवाएं अभी बाजार में उपलब्ध है जो किसी कुशल चिकित्सक द्वारा ही दी जा सकती हैं यह बीमारी के गति को कम कर सकती है जैसे सिरोसिस और कैंसर को रोक सकती है। और जिंदगी की अवधि को और बड़ा सकती है इसका दवाई संक्रमित व्यक्ति को जीवन भर भी लेना पड़ सकता है। और साथ में सबसे महत्त्वपूर्ण जानकारी यह है की हेपटाइटिस बी से संक्रमित व्यक्ति को 7 से 8 प्रतिशत मामलों में देखा गया है की वे एचआईवी (एड्स) से भी संकर्मित पाए जाते है जो की बिना किसी सुरक्षित लैंगिक संसर्ग से होता है।जिसके बाद उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता गिरती जाति है और वह मरीज जल्द ही मौत के मुंह में समा जाता है।
हेपटाइटिस C
यह संक्रमण भी हेपटाइटिस C वायरस के शरीर में प्रवेश से लिवर को संक्रमित करता है हेपटाइटिस C वायरस का संक्रमण मुख्यत: बिना जांच किए हुए रक्त को सामान्य व्यक्ति को चढ़ाने से संक्रमित व्यक्ति के इंजेक्शन को सामान्य व्यक्ति को लगाने से अतंतः ये संक्रमण संक्रमित खून इंजेक्शन और संक्रमित व्यक्ति से बिना सुरक्षा लैंगिक संसर्ग से फैलता है। और यह संक्रमण लिवर के सिरोसिस या कैंसर का प्रमुख कारक है।बाकी इसके लक्षण और संक्रमण की अवधि और लक्षण काफी कुछ हेपटाइटिस बी जैसा ही है। परंतु इसके इलाज की दवाइयां हेपेटाइटिस बी से अलग होती है। इसका बचाव या रोकथाम यह ही है की किसी व्यक्ति को रक्त चढ़ाने से पहले उस रक्त के नमूने की अच्छी तरह से जांच परख कर लेना की उसमें कही हेपटाइटिस का संक्रमण तो पहले से नही होना चाहिए।और एक ही इंजेक्शन को बार बार दूसरे सामान्य व्यक्ति को देने से बचना चाहिए। जो की आए दिन झोलाझाप चिकित्सक करते है।
हेपटाइटिस D
यह संक्रमण हेपटाइटिस बी से संक्रमित मरीज को साथ साथ ही होता है। इसका मुख्य कारण पहले से मौजूद हेपटाइटिस बी के वायरस में गुनात्तमक वृद्धि होने से होता है और एक ही मरीज को हेपटाइटिस बी और डी साथ में पाए जाते है और ये बहुधा कम देखने को मिलता है। इसके संक्रमण की अवधि और इसके लक्षण भी हेपटाइटिस बी के समान ही होता है। लेकिन इसके इलाज की औषधि अलग होती है। हेपटाइटिस बी सी और डी की औषधि और इसका इलाज काफी महंगा होता हैं। परंतु कई सरकारी संस्थाओं भारत सरकार द्वारा यह कम कीमत पर या मुफ्त में उपलब्ध कराया जाता है ताकि आम मरीज को इसकी सुविधा मिल सके।
हेपटाइटिस ई
यह हेपटाइटिस ई भी A के समान ही सामान्य व्यक्ति को संक्रमित करता है। साफ सफाई की कमी प्रदूषित जल प्रदूषित खाना या पीने के पानी के आसपास सेप्टिक टैंक के संपर्क में आने से या गंदी नाली के संपर्क के आने से फैलता है। इस हेपटाइटिस में इसी कारण एक साथ कई कई लोग प्रभावित या संक्रमित हो जातें हैं एक एक गांव या मोहल्ला में कई हेपटाइटिस ई के संक्रमित मरीज देखने को मिलते है। इस हेपटाइटिस के रोकथाम के लिए वैक्सीन भी उपलब्ध है लेकिन वो केवल चाइना ऐसा देश है जिसे मंजूरी मिली है। इस हेपटाइटिस बी के शरीर में प्रवेश के बाद लक्षण आने में 30 से 60 दिन तक लग सकते है। यह बीमारी शरणार्थी शिविर में या युद्ध से प्रभावित शिविर में अक्सर देखा गया है क्योंकि वहां भी प्रदूषित खाना पानी या मल मूत्र विसर्जन करने के लिए उपयुक्त जगह की कमी पाई जाती हैं वो वापस उन्ही लोगो के खाना पानी को प्रदूषित कर वृहत रूप से बीमारी फैलता है। इस हेपटाइटिस के संक्रमण से होने वाले लक्षण भी हेपटाइटिस ए जैसे ही होते है वरन इसमें मृत्यु दर हेपटाइटिस ए की अपेक्षा कुछ ज्यादा होती है। और किसी गर्भवती महिला के लिए ये बहुत ही घातक साबित होता है। हेपटाइटिस ई का संक्रमण किसी गर्भवती महिला को होने से उसे लिवर को नुकसान पहुंचाने वाली दवाइयां से बचाना चाहिए वरन कुशल चिकित्सक की निगरानी में गर्भवती महिला का इलाज करवाना ज्यादा बेहतर होगा।
अब देखा जाएं तो सभी हेपटाइटिस कारण संक्रमण ही है चाहे वो प्रदूषित भोजन पानी से हो या बिना सुरक्षा लैंगिक संसर्ग से हो या संक्रमित रक्त सूई या इंजेक्शन के लगाने से हो या अत्यधिक मात्रा मे शराब के सेवन से हो या लंबे समय तक जो दवाइयां लिवर को नुकसान पहुंचाती है उससे हो। ये सभी का रोकथाम संभव है लेकिन यह तभी संभव है जब इस हेपटाइटिस बीमारी के बारे में हम जानकारी रखते हो।
- डॉ महावीर अग्रवाल एमबीबीएस एमडी (मेडिसिन विशेषज्ञ)
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