डेस्क(khabargali)। महामारी के खिलाफ विश्व को पहला टीका एक माँ ने बनाकर दिया था। बात 1721 यानी अब से 300 साल पहले की है। ब्रिटिश माँ मैरी वोर्टले मोंटेगु नहीं चाहती थीं कि उनकी तरह उनकी बेटी के चेहरे पर भी चेचक के दाग हमेशा के लिए रह जाएं और उसकी सुंदरता खो जाए। इसलिए उन्होंने ‘वैक्सीन’ बना दी।
तब चेचक एक जानलेवा बीमारी थी और पूरी दुनिया इसकी चपेट में थी। मैरी ने अपनी तीन साल की बेटी की त्वचा पर एक बहुत छोटा-सा कट लगाया और इससे बने घाव पर बहुत थोड़ी मात्रा में चेचक का पस लगाया, ताकि उसके शरीर में इसके प्रति एंटीबॉडी बन जाए। टीकाकरण का यह तरीका मैरी ने टर्की में सीखा था। मैरी ब्रिटिश राजदूत पति के साथ टर्की गई थीं। मैरी ने देखा था कि वहां लोगों को चेचक नहीं होता। वहां की अनपढ़ और बूढ़ी ग्रीक व अर्मेनियाई माताएं अपने बच्चों को पस का ‘टीका’ लगाती हैं। मैरी ने जब यह तरीका अपने बच्चों पर आजमाया तो इसकी खबर तेजी से फैली। प्रभावित होकर ब्रिटेन के राजपरिवार के बच्चों को भी ‘टीका’ लगाया गया।
लेकिन फिर कुछ असावधानियों के कारण कई लोगों के लिए यह घातक साबित हुआ तो मैरी काे सनकी और अज्ञानी महिला घोषित कर दिया गया। लेकिन आज सभी यह मानते हैं कि अगर मैरी ने यह प्रयोग नहीं किया होता तो दुनिया को चेचक का इलाज नहीं मिल पाता। इस वाकये के 75 साल बाद 1796 में इसी तरीके के आधार पर एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया।
सुचित्रा इला: कोवैक्सीन भारत को दी पहली स्वदेशी वैक्सीन
भारत को कोराना की पहली स्वदेशी वैक्सीन देने वाली भी एक माँ हैं। भारत बायोटेक की सुचित्रा इला। वे कंपनी की जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। उनकी कंपनी ने आईसीएमआर के साथ कोवैक्सीन बनाई है। 1980- 90 के दशक में जब पति कृष्णा इला अमेरिका में पीएचडी कर रहे थे, तब सुचित्रा अकेले वहां दो बच्चाेें सहित परिवार चला रही थीं। बाद में पति-पत्नी भारत आ गए, ताकि यहां लोगों के लिए अफोर्डेबल वैक्सीन बनाई जा सके। भारत बायोटेक देश की एकमात्र कंपनी है, जिसने बीमारियों से लड़ने के लिए आधा दर्जन मॉलिक्यूल डेवलप किए हैं।
सारा गिलबर्ट: एस्ट्राजेनेका
माँ की बनाई वैक्सीन का बच्चों पर ट्रायल
सारा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की उस टीम की प्रमुख हैं जिसने वैक्सीन डेवलप की है। वे तीन जुड़वा बच्चों की माँ हैं। माँ की बनाई वैक्सीन का तीनों बच्चों ने ट्रायल करवाया है। सारा बताती हैं कि 1998 में जब तीनों बच्चों का जन्म हुआ था तब आय बहुत कम थी। बच्चों की देखरेख में मुश्किल होती थी। मैं माँ भी थी और रिसर्चर भी। दोनों काम एकसाथ करना मुश्किल था, लेकिन मैं करती रही।
कैटलिन कैरिको: मॉडर्ना
एमआरएनए का वैक्सीन में इस्तेमाल
हंगरी की इस महिला वैज्ञानिक का एमआरएनए पर किया गया शोध फाइज़र/ बायोएनटेक और मॉडर्ना की वैक्सीन के पीछे रहा है। जब एमआरएनए तकनीक को अव्यावहारिक आइडिया माना जा रहा था, तब 66 वर्षीय कैटलिन ने इसकी वकालत की और आज इस तकनीक पर विकसित ये दोनों वैक्सीन सबसे ज्यादा 95% तक असरदार पाई गई हैं। वे कहती हैं कि जो भी काम करो, पूरी नैतिकता और लगन से करो। इसी विचार और जज्बे को लेकर पली उनकी बेटी सुसान रोविंग खिलाड़ी हैं और दो ओलिम्पिक पदक जीत चुकी हैं।
ओजलेम टूरेसी: फाइजर
सबसे कम समय में बना दी वैक्सीन
जर्मन इम्यूनोलॉजिस्ट और बायोएनटेक की मुख्य चिकित्सा अधिकारी ओजलेम ने अपनी पार्टनर कंपनी फाइजर के साथ मिलकर सबसे कम समय सिर्फ 10 महीने में कोविड वैक्सीन बनाई। 2019 में कोविड वायरस फैलने की खबर आने के तीन हफ्ते बाद ही ओजलेम और उनकी रिसर्च टीम ने इसका वैक्सीन बनाने का फैसला कर लिया था। ओजलेम एक बेटी की माँ हैं।
हनेक शूटमेकर- जॉनसन
इस टीके की एक ही खुराक काफी
डच वायरोलॉजिस्ट हनेक, जॉनसन एंड जॉनसन में वायरल वैक्सीन डिस्कवरी और ट्रांसलेशन मेडिसिन डिपार्टमेंट की हैड हैं। 57 साल की इस वैज्ञानिक ने नीदरलैंड्स से कोविड वैक्सीन डेवलपमेंट के ट्रायल पर काम किया। तीन बेटों की माँ हनेक कहती हैं कि यह मुश्किल समय हमें जरूर कोई सबक सिखाएगा। ‘जॉनसन’ वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई है। इसकी खास बात यह है कि अन्य टीकों की दो खुराक के विपरीत इस टीके की एक ही खुराक देने की जरूरत होगी।
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