Gajanan Madhav Muktibodh

रायपुर (khabargali) " मैं उनकी फैंटेसी , बिम्ब या प्रतीक पर कुछ भी नहीं बोलूंगा ; मैंने उन्हें समझा ही कितना है ? जब उनकी मृत्यु हुई, मैं मात्र पंद्रह वर्ष का था । इस उम्र में मुक्तिबोध को भला कैसे समझा जा सकता है ? " यह कहने वाला ' पुत्र 'दिवाकर मुक्तिबोध जब ' मेरे पिता : गजानन माधव मुक्तिबोध ' पर बोलना प्रारंभ करता है तो अबाध बोलता है । बिना रुके , बिना झिझके।