आज के दिन ही भगवान राम ने पहली पतंग उड़ाई जो स्वर्गलोक जा पहुंची थी..

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भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी..

गंगाजी सागर में जाकर मिली थीं..

जानें मकर संक्रांति से जुड़े सभी रोचक तथ्य और जानकारी

ख़बरगली। 14 जनवरी 2021 को मकर संक्रांति का पावन पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्याताओं के अनुसार मकर संक्रांति का बहुत अधिक महत्व होता है। मकर संक्रांति का जितना अधिक धार्मिक महत्व होता है उतना ही अधिक वैज्ञानिक महत्व भी होता है। ख़बरगली आपको इससे जुड़े रोचक तथ्यों की यहाँ जानकारी दे रही है।

पूरे भारत में मनाया जाता है यह पर्व

पूरे भारत और नेपाल में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती है और खेतो में रबी की फसलें लहलहा रही होती है। खेत में सरसो के फूल मनमोहक लगते हैं। पूरे देश में इस समय ख़ुशी का माहौल होता है। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। क्षेत्रो में विविधता के कारण इस पर्व में भी विविधता है। दक्षिण भारत में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी कहा जाता है। मध्य भारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। इसे आंध्र प्रदेश में पेद्दा पांडुगा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में मकर संक्रांति, तमिलनाडु में पोंगल, असम में माघ बिहू, मध्य और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में माघ मेला, पश्चिम में मकर संक्रांति और अन्य नामों से जाना जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायण, माघी, खिचड़ी आदि नाम से भी जाना जाता है।

मकर संक्रांति क्यों कहते हैं?

मकर संक्रांति पर्व मुख्यतः सूर्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़ के दूसरे में प्रवेश करने की सूर्य की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते है, चूँकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को मकर संक्रांति कहा जाता है।

मुहूर्त का भी है महत्व

भगवान सूर्य 14 जनवरी दिन गुरुवार की सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसी के साथ मकर संक्रांति की शुरुआत हो जाएगी। वहीं, दिन भर में पुण्य काल करीब शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। महापुण्य काल सुबह में ही रहेगा। माना जाता है कि पुण्य काल में स्नान-दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

अनेक शास्त्रों में वर्णन

मकर संक्रांति पर सम्पूर्ण प्रकृति भगवान भुवनभास्कर का नमन करने लगती है। ऐसे में मनुष्य भी अपनी यथाशक्ति सूर्यदेव का अभिनंदन करके स्वयं को कृतार्थ करते है। योगी और ऋषियों ने इस दिन की महत्ता का उल्लेख अनेक शास्त्रों में किया है।

पतंग उड़ाने की परंपरा

पुराणों में उल्लेख है कि मकर संक्रांति पर पहली बार पतंग उड़ाने की परंपरा सबसे पहले भगवान श्रीराम ने शुरु की थी। इस दिन पतंग को हवा में उड़ाकर छोड़ देने से सारे क्लेश समाप्त होते है। तमिल की तन्दनानरामायण के अनुसार भगवान राम ने जो पतंग उड़ाई वह स्वर्गलोक में इंद्र के पास जा पहुंची थी।भगवान राम द्वारा शुरू की गई इसी परंपरा को आज भी निभाया जाता है।

दान का क्यों है विशेष महत्व

इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन गंगा सागर में मेला भी लगता है। मकर संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन गरीबों को यथाशक्ति दान करना चाहिए। पवित्र नदियों में स्नान करें। इसके बाद खिचड़ी का दान देना विशेष फलदायी माना गया है। इसके अलावा गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक आदि का प्रसाद बांटा जाता है।

इस पर्व का भौगोलिक विवरण

पृथ्वी साढ़े 23 डिग्री अक्ष पर झुकी हुई सूर्य की परिक्रमा करती है तब वर्ष में 4 स्थितियां ऐसी होती हैं, जब सूर्य की सीधी किरणें 21 मार्च और 23 सितंबर को विषुवत रेखा, 21 जून को कर्क रेखा और 22 दिसंबर को मकर रेखा पर पड़ती है। वास्तव में चन्द्रमा के पथ को 27 नक्षत्रों में बांटा गया है जबकि सूर्य के पथ को 12 राशियों में बांटा गया है। भारतीय ज्योतिष में इन 4 स्थितियों को 12 संक्रांतियों में बांटा गया है जिसमें से 4 संक्रांतियां महत्वपूर्ण होती हैं- मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति।

ग्रेगोरियन कैलेंडर

मकर संक्रांति हिंदू चंद्र कैलेंडर के सौर चक्र द्वारा निर्धारित की जाती है, और एक दिन में मनाया जाता है जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के 14 जनवरी को पड़ता है, लेकिन कभी-कभी 15 जनवरी को। कभी-कभी 14 जनवरी से 15 जनवरी तक चलती है सौर कैलेंडर के अनुसार, एक वर्ष के बाद, सूर्य हर साल 20 मिनट देर से उसी स्थान पर आता है, जिसका अर्थ है कि आकाश में प्रत्येक 72 वर्षों के बाद सूर्य को 1 दिन अतिरिक्त चाहिए।

मकर संक्राति का आयुर्वेदिक महत्व

मकर संक्रांति के पावन दिन खिचड़ी, तिल और गुड़ से बनी चीजों का सेवन किया जाता है। तिल और गुड़ से बनी चीजों का सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है। इन चीजों का सेवन करने से इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। मकर संक्रांति के बाद वातावरण में बदलाव आने लगता है मकर संक्रांति के बाद नदियों में वाष्पन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिससे कई सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य के उत्तरायण होने से सूर्य का ताप सर्दी को कम करता है।

ऐतिहासिक तथ्‍य

माना जाता है की इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्याग कर उनके घर गए थे। इसलिए इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है। इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

घर पर कैसे करें मकर संकांति की पूजा

सुबह जल में गंगाजल, सुगंध, तिल, सर्वऔषधि मिलाकर स्नान करें। स्नान करने के दौरान गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरी जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु। इस मंत्र को पढ़े। भगवान विष्णु की पूजा करें, भगवान को तिल, गुड़, नमक, हल्दी, फूल, पीले फूल, हल्दी, चावल भेट करें। घी का दीप जलाएं और पूजन करें। इसके बाद सूर्यदेव को जल में गुड़ तिल मिलाकर अर्घ्य दें। जल में काले तिल, गुड़ डालकर पीपल को जल दें। जरूरतमंदों को तिल, गुड़, चावल, नमक, घी, धन, हल्दी जो भी भगवान को भेट किया वह दान कर दें। सूर्यपुराण, शनि स्तोत्र, आदित्यहृदय स्तोत्र, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना लाभकारी रहेगा। '

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