छत्तीसगढ़ में गण-राज्य और गणतंत्र

Republic and Republic in Chhattisgarh, Ashish Singh's front article, Khabargali, Literature Desk

आशीष सिंह का अग्र लेख

ख़बरगली @ साहित्य डेस्क

हमारे देश में पंचायत प्रथा हजारों वर्ष प्राचीन है। प्राचीन ग्रंथों में जनपदों और गण राज्यों का उल्लेख है। सर्व विदित तथ्य है कि छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम कोसल था। यहां के राजा ‘कौसल्य’ और राज कन्याएं ‘कौसल्या’ कहलाती थीं। यहां के निवासी भी कौसल्य कहे जाते थे और भाषा ‘कोसली’ कहलाती थी। लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व इस कोसल राज्य का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। अत: लोग छत्तीसगढिय़ा और उनकी भाषा छत्तीसगढ़ी कहलाने लगी। प्राचीन काल में यह कोसल महाजनपद था अनेक जनपद इसके अन्तर्गत सम्मिलित थे।

बस्तर में कोसनार नामक स्थान है जो इस बात का द्योतक है कि बस्तर क्षेत्र भी इस कोसल के अंतर्गत था। कोसल के अंतर्गत शबर जनपद भी था जो छत्तीसगढ़ के दक्षिण पूर्व में था। जनपद काल प्रत्येक गांव स्वावलम्बी थे। वे अपनी आमदनी और विकास के लिए शासन पर निर्भर नहीं थे। गांव की व्यवस्था ग्राम पंचायतों के नियंत्रण में थी। शासन या प्रशासन का हस्तक्षेप नहीं के बराबर था। न्याय भी तत्काल और बिना खर्च के लोगों को सुलभ था। पंचायत के सदस्य सत्यनिष्ठ, न्यायशील, निर्भीक और निष्पक्ष थे। गांवों में उनकी बड़ी प्रतिष्ठा और सम्मान था। उनका निर्णय भगवान के आदेश के समान था। स्वराज्य का यह स्वाभाविक और उत्कृष्ठ स्वरूप था। सामंतशाही युग में भी, छत्तीसगढ़ में इस व्यवस्था में राजा का हस्तक्षेप नहीं था। ऐसे ही गणतांत्रिक व्यवस्था का उदाहरण हमें बस्तर में मिलता है।

मासक देवी का शिलालेख

 छिंदक राजवंश की महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार थे। वे शासन के कार्यों में उनकी सलाह ली जाती थी। दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर में नाग युगीन एक शिलालेख है। तिथि विहीन यह शिलालेख तेलगु में है। उसमें मासक देवी के नाम का उल्लेख हुआ है। मासक देवी राज कन्या थीं। वह सन् 1136 ई. में गद्दी पर बैठे राजभूषण देव की छोटी बहन थी। बेखटके शिकायतें लेकर लोग उनके पास जाते थे। वह उन्हें सुनती और समाधान भी करती थीं। प्रशासन पर भी उनका दबदबा था।

राजभूषणदेव के शासनकाल में अधिकारी उद्दण्ड हो गए थे। कृषकों से कर वसूलने में अनावश्यक सख्ती और मनमाना व्यवहार करते थे। राज कर्मचारियों के ऐसे व्यवहार की सूचना जब मासक देवी को मिली तब उन्होंने पूरे राज्य के पांचों सभासदों तथा कृषक प्रतिनिधियों की सभा आयोजित की। इस सभा में ग्रामों के जन प्रतिनिधियों ने जो निर्णय लिए, उसे मासक देवी ने शिला पर उत्कीर्ण करवा कर प्रकाशित किया। जन प्रतिनिधियों द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों के अन्यायपूर्ण और मनमाने व्यवहार पर नियंत्रण रखने संबंधी शिला पर उत्कीर्ण लेख अपने ढंग का एकमात्र उदाहरण है।

रायबहादुर हीरालाल ने इस शिलालेख की उपलब्धि पर लिखा है-This is an interesting inscription recording a notification to the general public by Masakdevi, younger sister of the illustrious Rajbhushan Maharaja of the chhindak family of Naga race.

अर्थात् यह एक दिलचस्प शिलालेख है जो नागवंश के छिंदक शाखा के नरेश राजभूषण महाराज की छोटी बहन मासक देवी द्वारा आम जनता की सूचना के लिये जारी किया गया घोषणा पत्र है। इस शिलालेख का बहुत सा हिस्सा घिस चुका है। फिर भी जितना कुछ पढ़ा जा सक है, उससे लेख के उद्देश्य पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।

इस शिलालेख के अनुसार इस बात को ध्यान में रखते हुए कि कृषक वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति राजकीय अधिकारियों द्वारा निर्धारित समय से पूर्व राजकीय कर वसूले जाने तथा तंग किये जाने से त्रस्त है, पांच महासभा के वरिष्ठ सभासदों तथा कृषक प्रतिनिधियों की सभा आयोजित की गई। इस सभा में निम्नलिखित नियम निर्धारित किए गए- भविष्य में जिन गांवों के लोगों ने किसी भी राजा के राज्याभिषेक के समय अपनी सेवाएं दी थीं, वे ही दीर्घ काल से बसे हुए लोगों से राजकीय कर वसूल करेंगे। अत: मासक देवी विभिन्न वर्गों से संबंधित नियम निर्धारित कर उसके क्रियान्वयन हेतु शिला पर लेखबद्ध कर यह घोषणा पत्र जारी करती है। अत: जो कोई भी इस घोषणा पत्र में प्रकाशित नियमों का उल्लंघन करेगा वह चक्रकोट स्थित नरेश और मासक देवी का विरोधी और विद्रोही माना जायेगा।

तात्पर्य यह कि प्राचीन काल में शासन-तंत्र की बागडोर पंचायतों के माध्यम से ग्रामवासियों के हाथों में थी। यह प्रणाली सम्पूर्ण भारत में प्रचलित थी। सत्ता की बागडोर विदेशियों के हाथों में जाने के बाद इस प्रणाली की उपेक्षा की जाने लगी। छत्तीसगढ़ पर जब अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हुआ, तब उन्होंने छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक इतिहास की जानकारी एकत्र की।

मेजर के अनुसार ‘पंचायत प्रणाली छत्तीसगढ़ में हैहयवंशी शासनकाल में अत्यंत महत्वपूर्ण तथा लोकव्यापी थी। ग्राम पंचायत व्यवस्था भारत में अत्यंत प्राचीन काल से प्रचलित थी। छत्तीसगढ़ में हैहयवंशी शासनकाल इसका अपवाद नहीं था’ बस्तर को बहुत गहराई से समझने वाले विद्वान श्री राजीवरंजन प्रसाद की पंक्तियों को यथावत प्रस्तुत कर रहा हूं- विरथ, सभा-समीति आदि पूर्ववैदिक काल से ही चली आ रही वे लोकतांत्रिक संस्थायें थीं जो विचार-विमर्श, सैनिक तथा धार्मिक कार्यों का सम्पादन आदि करती थी। ऋग्वेद में इस प्रकार की संस्थायें यथा-सभा, समिति, विरथ तथा गण का उल्लेख मिलता है।

अथर्ववेद में उल्लेख है कि ‘सभा च मा समिति-श्वावतां प्रजापतेदुहितरौ संविदाने’ अर्थात् सभा तथा समिति प्रजापति की दो पुत्रियां हैं। इस दृष्टि से मासक देवी के शिलालेख में उल्लेखित पांच-महासभा के मायने व्यापक हो जाते हैं। नाग युगीन शासन प्रबंध पांच-प्रधान की बात करता है। सोनारपाल अभिलेख (1224 ई.) में इनमें से चार प्रधानों के नाम हैं महाप्रधान (मंत्री), पडिवाल (दौरावारिक), चामरकुमार (युवराज) तथा सर्ववादी (पुरोहित)।

समग्रता से देखा जाए तो प्रतीत होता है कि ग्रामीण सभाएं आपस में जुड़ी होती थी जो ‘पंच-प्रधान’ की उपस्थिति के बाद महासभा कही जाती थी। इस सभा को शासन द्वारा नितिगत निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी गई होगी जिस आधार पर मासक देवी नें अपनी अध्यक्षता में ग्रामीणों और किसानों की बातों को सुन कर न केवल समुचित निर्णय लिया अपितु शिलालेख बद्ध भी कर दिया। शिलालेख का अंतिम वाक्य मासक देवीको मिले अधिकारों की व्याख्या करता है जिसमे लिखा है-‘जो इस नियम का पालन नहीं करेंगे वे चक्रकोट के शासक और मासकदेवी के विद्रोही समझे जायेंगे।‘

हरि ठाकुर ने लिखा है कि इन पंचायतों के निर्णयों को लोग ईश्वर के आदेश के समान आदर देते थे। ये पंचायतें लोक परम्पराओं और मान्यताओं के कोश थीं। पंचायती व्यवस्था जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करती थी और जनता को समृद्ध तथा खुशहाल रखने की जिम्मेदारी उन पर थी। पंचायत के निर्णय प्राय: शासन द्वारा मान्य होते थे। उनके निर्णय उसी स्थिति में अमान्य होते थे जब पंचों पर भ्रष्टाचार या पक्षपात के आरोप हों।

पंचायत व्यवस्था छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश शासन की स्थापना सन् 1818 तक प्रचलित थी। मार्च 1795 में अंग्रेजों का एक यात्री दल छत्तीसगढ़ आया था। उनमें से एक ब्लंट ने लिखा-‘छत्तीसगढ़ के लोगों का नैतिक चरित्र देश के अन्य भागों की तुलना में अधिक श्रेष्ठ था। ये ईमानदार और अपराधों से दूर रहने वाले हैं। उनकी जैसी निष्ठा देश में अन्यत्र दिखाई नहीं देती। यहां के लोग अत्यधिक सफाई पसंद हैं। छत्तीसगढ़ के लोग उल्लेखनीय रूप से सभ्य हैं। एक माह चौदह दिनों की छत्तीसगढ़ राज्य की यात्रा में मैंने जो आतिथ्य पाया, वह देश में अन्यत्र कहीं नहीं मिला।’

Republic and Republic in Chhattisgarh, Ashish Singh's front article, Khabargali, Literature Desk
आशीष सिंह

 

Category