यूरोप महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलब्रुस चोटी पर तिरंगा झंडा फहराने वाले चित्रसेन को जानें
रायपुर (khabargali) मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज रायपुर में आयोजित रन फॉर सीजी प्राइड के मंच से दिव्यांग पर्वतारोही श्री चित्रसेन साहू को 12 लाख 60 हजार रूपए प्रदान करने की घोषणा की है। श्री साहू को यह राशि छत्तीसगढ़ सरकार और सीएसआर मद से प्रदान की जाएगी। श्री साहू ने छत्तीसगढ़ में नई सरकार के आगामी 17 दिसम्बर को 3 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित रन फॉर सीजी प्राइड (दौड़ स्वाभिमान और गर्व की) में हिस्सा लिया था। श्री चित्रसेन साहू ने मुख्यमंत्री श्री बघेल को सहयोग के लिए आभार जताते हुए कहा कि अब माउंट अकोंकागुआ की कठिन चढ़ाई कर छत्तीसगढ़ महतारी का नाम फिर से गौरवान्वित करने का पूरा प्रयास करूंगा।
जानें कौन है चित्रसेन साहू
भारतीय ब्लेड रनर छत्तीसगढ़ के दिव्यांग पर्वतारोही चित्रसेन साहू ने 23 अगस्त को यूरोप महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलब्रुस चोटी पर तिरंगा झंडा फहराकर छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित कर इतिहास रचा था। चित्रसेन ने खराब मौसम के बावजूद कृत्रिम पैरों के सहारे यूरोप की सबसे ऊंची चोटी चढऩे की सफलता हासिल की। उसने -25 डिग्री सेल्सियस शरीर जमा देने वाली ठंड और 50-70 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही बर्फीले तूफान का सामना करते हुए 23 अगस्त की सुबह 10.54 बजे 5400 मीटर ऊंची माउंट एलब्रुस चोटी को फतह कर लिया। चित्रसेन ने माउंट एलब्रुस चढ़ाई 17 अगस्त को शुरू की थी। अब वे सात में से चौथे महाद्वीप की चोटी में चढऩे का सफर शुरू करेंगे।
27 साल के चित्रसेन साहू मूलरूप से अम्बिकापुर के रहने वाले हैं। उनकी पढ़ाई-लिखाई बालोद जिले के बेलौदी गांव में हुई। 2014 में उन्होंने बिलासपुर के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। सात साल पहले एक ट्रेन दुर्घटना में अपना दोनों पैर खो चुके चित्रसेन साहू ने जिंदगी के आगे घुटने नहीं टेके। पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा की कहानी पढ़कर उनका हौसला बढ़ा। चित्रसेन छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड में इंजीनियर है। इस युवा इंजीनियर और भारतीय ब्लेड रनर चित्रसेन साहू को ‘हाफ ह्यूमन रोबो’ के नाम से भी जाना जाता है।
चित्रसेन साहू को हाल ही में छत्तीसगढ़ शासन और मोर रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने प्लास्टिक फ्री अभियान का ब्रांड एंबेसडर भी बनाया है। इसलिए जब चित्रसेन किलिमंजारो की चोटी पर पहुंचे तो उन्होंने लोगों को प्लास्टिक फ्री अभियान का संदेश भी दिया। उन्होंने अफ्रीका के तंजानिया किलिमंजारो में जाने के लिए धीरे-धीरे तैयारियां की और छत्तीसगढ़ के आसपास ट्रैक ट्रेनिंग की। दस दिन हिमाचल में रहकर ट्रेनिंग ली और 72 किलो मीटर ट्रैक कंप्लीट किया।’ वे 16 सितंबर को दक्षिण अफ्रीका पहुंचें और उन्होंने 19 सितंबर को चढ़ाई शुरू की और 26 सिंतबर को किलिमंजारों की चोटी पर पहुंचकर देश का तिरंगा लहराया। अपनी इस सफलता पर उन्होंने कहा था कि ‘चढ़ाई के दौरान एक वक्त तो हिम्मत टूटने लगी थी। फिर मन पर काबू पाया और लक्ष्य की तरफ बढ़ चला। मैंने इस मिशन का नाम ‘पैरों पर खड़े हैं’ नाम दिया था।
- Log in to post comments