मित्र सुभाष पांडेय ! यह तुमने क्या किया?

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श्रद्धांजलि: वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज की कलम से

Khabargali (रायपुर)

मेरे परम मित्र डॉक्टर सुभाष पांडेय को भी कोरोनारूपी क्रूर दैत्य ने छीन लिया। यह कितनी बड़ी विसंगति है कि कोरोना के मरीजों के उपचार के लिए दिन रात समर्पित सुभाष कोरोना वायरस से संक्रमित होकर चल बसे। इसके पहले भी वे संक्रमित हुए थे लेकिन बहुत जल्दी उबर गए थे और कोरोना नियंत्रण अभियान के नोडल अधिकारी के रूप में स्वास्थ्य विभाग में अपनी सेवाएं दे रहे थे। दो दिन पहले कोरोना से संक्रमित होने के बाद उन्हें एम्स में भर्ती किया गया था और आज दुखद खबर आई।

डॉक्टर सुभाष पांडेय सिर्फ एक सामान्य डॉक्टर नहीं थे। वे सहज सरल इंसान थे। उनके पिता प्रोफेसर जयनारायण पांडेय महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनके नाम से रायपुर का एक बड़ा शासकीय विद्यालय जाना जाता है। इसी विद्यालय में जयनारायण पांडेय जी ने आजादी के संघर्ष के दौरान देश का तिरंगा झंडा लहराया था। अपने पिता के संस्कार ग्रहण करके सुभाष भी लेखन कार्य से जुड़ गए थे। यहां के अखबारों में इस समय समय पर वे बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक सामग्री प्रकाशित करवाया करते थे। विभिन्न महापुरुषों की जयंती पर लेख भी लिखा करते थे ।

सुभाष पांडेय से तीस साल पहले मेरा परिचय हुआ और उनके पिताजी के योगदान के बारे में मुझे जानकारी मिली तो अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं की पहली बार मैंने ही उनके पिताजी के बारे में विस्तार से लेख लिखा । और यह सिलसिला लगातार चलता रहा । इस साल भी 20 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि पर मैंने अनेक अखबारों में उनके पिताजी के बारे में नये कोण से लेख लिखा था। समाजवादी सोच के कारण हम दोनों की मित्रता निरंतर प्रगाढ़ होती गई। दोनों का एक दूसरे के घर में आना-जाना शुरू हुआ।

सुभाष की एक विशेष प्रतिभा यह थी कि वे फिल्म जगत की अदभुत जानकारी रखते थे। किस फिल्म में किसने संगीत दिया, उसका गीतकार कौन था, फिल्म किस सन में आई थी। इस सब मामले में वे लगभग इनसाइक्लोपीडिया थे। समय-समय पर वे मुझे पुरानी फिल्मों के गीत भेजते थे और उसका इतिहास भी बताया करते थे। सुभाष पांडेय महान अभिनेता देवानंद के भी बड़े भक्त थे। कई बार उनके जन्मदिन पर देवानंद से उनकी बातें भी होती थी। मैं सुभाष पांडेय से कहता था सेवानिवृत्त होने के बाद तुमको विस्तार के साथ फिल्मी इतिहास लिखना है और पहले की तरह लेखन में सक्रिय होना है। अभी कुछ महीने बाद वे सेवानिवृत्त होने वाले थे । मेरी उनसे बात हुई थी कि वे घर पर ही क्लीनिक शुरू करके व्यस्त रहें। निरंतर लिखते रहें। सुभाष शिशु रोग विशेषज्ञ थे इसलिए बाल साहित्य लेखन में भी उनकी गहरी रुचि थी ।

जब वे केवल सात साल के थे, तब पिता जयनारायण जी का स्वर्गवास हो गया था। तब उनकी माता जी ने सुभाष पांडेय और अन्य बच्चों का लालन-पालन किया। जब सुभाष बड़े हुए तब अपने पिता के व्यक्तित्व को समझा। और उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि आज नयापारा की गली प्रोफेसर जय नारायण पांडेय मार्ग के नाम से जानी जाती है। गवर्नमेंट हाई स्कूल का नामकरण भी उनके पिताजी के नाम से हुआ । सुभाष ने अपने पिता की अमर कृति 'प्रमुख राजनीतिक विचारको की चिंतनधारा' का पुनरप्रकाशन कराया । कोरोना काल में उनकी सक्रिय जनसेवा को हम कभी भूल नहीं सकते थे। अपने पिता की तरह सुभाष भी बहुत सिद्धांतवादी थे । दुर्ग का उन्हें सीएमओ बनाकर भेजा गया था लेकिन उनकी ईमानदारी के कारण वहां के अनेक लोग उनसे परेशान हो गए। उनके खिलाफ शिकायतें करने लगे। अंततः सुभाष को वापस रायपुर भेज दिया गया। सुभाष अक्सर कहा करते थे कि सरकारी नौकरी में उन लोगों को बड़ी परेशानी होती है जो ईमानदारी के साथ काम करना चाहते हैं। सुभाष ने अपना पूरा शासकीय जीवन ईमानदारी के साथ निकाल दिया। कैसी विडंबना है कि सेवानिवृत्ति का जब दो महीना बचा था, वे हम सब को छोड़कर परमधाम चले ले गए ।

29 मार्च को होली पर कुछ लोकप्रिय गीतों के वीडियो मुझे भेज कर सुभाष ने लिखा था, "यूं तो खुशियों के रंग नहीं होते, पर हर रंग, किसी भाव, किसी रस, की अभिव्यक्ति होता है. सारे रंगों और रसों को रंगोत्सव की खुशी बना विधाता आप पर बरसाएं, ऐसी रंग बिरंगी कामनाओं सहित. यारों! ६५ बरस की उम्र में, कोरोना काल में, सिर्फ होली देख ही सकते हो, मनाने की हिमाक़त न करना, वरना! जगहंसाई और गृहरुलाई के पात्र बन सकते हो? अपने समय की होली तुमने जिनके संग खेली और देखी, फिर वो ही दौर लाया हूं!"

आज सुभाष पांडेय नहीं है, तो बहुत सी बातें जेहन में उभर रही हैं । फिर कभी विस्तार से उन सबको लिखने की कोशिश करूंगा। अभी तो भारी मन के साथ अपने परम मित्र सुभाष को विनम्र श्रद्धांजलि दे रहा हूं और ईश्वर से प्रार्थना कर रहा हूं कि वह उनके परिवार को इस महान आघात को सहने की क्षमता प्रदान करे। सुभाष के दोनों बच्चे डॉक्टर हैं। एक बेटा, एक बेटी। भाभी भी डॉक्टर हैं । सुभाष की बड़ी बहन भी डॉक्टर हैं रीवा में। बस रह-रहकर एक ही सवाल दिमाग में कौंध रहा है कि मित्र सुभाष पांडेय!! तुमने यह क्या कर दिया? क्यों हम सब को छोड़कर चले गए। तुम्हें तो अभी रहना था। न जाने कितने काम करने थे। लोगों की सेवा करनी थी । कितना लिखना-पढ़ना था। सब कुछ धरा-का- धरा रह गया ।

मित्र को शत शत नमन !!           : गिरीश पंकज

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