एग्जिट पोल को झुठलाया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने, कहा- UPA को मिल रही 300 सीटें

Bhupesh baghel

रायपुर (khabargali)लोकसभा चुनाव के परिणाम आने में अब सिर्फ तीन दिन ही बचे है .23 मई को आने वाले परिणाम पर पूरी दुनिया की नजर टिकी है. उससे पहले देश में दर्जनों एग्जिट पोल चिल्ला चिल्ला कर अपना आंकलन बात रहे है. लगभग हर एग्जिट पोल पर एनडीए की सरकार बनती दिख रही है. इधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज एग्जिट पोल के ठीक उलट बयान दिया है. मुख्यमंत्री भूपेश ने कहा कि यूपीए को 300 सीटें मिल रही है. एनडीए 200 सीटों के अंदर ही सिमट जाएगी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आगे कहा कि एग्जिट पोल के नतीजे बदलेंगे. केंद्र में यूपीए की सरकार बनेगी. यूपीए को 300 से अधिक सीटें मिल रही है. इधर कांग्रेस पार्टी के संचार विभाग के अध्यक्ष व महामंत्री शैलेश नितिन त्रिवेदी का भी कहना है कि 2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की ही तरह लोकसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल फेल होंगे.

यहाँ हम आपको पत्रकार रवीश कुमार जो पूरी तरह इन आंकलन को झुठला रहे है के हालिया वायरल हुई लेख का एक अंश पढ़ा रहे है. -

"आपने साइलेंट वोटर के बारे में काफी कुछ सुना था. साइलेंट वोटर क्या होता है. क्या यह डरा हुआ वोटर होता है या इसकी अपनी रणनीति होती है. अकादमी की दुनिया में कई दशक से इस पर रिसर्च होता रहा है. दुनिया भर में. क्या हम कभी साइलेंट वोटर को जान पाएंगे. यही वो साइलेंट वोटर है जो अचानक सारे आंकलन पलट देता है. बिहार मे लालू यादव इसे बक्से से निकला जिन्न कहते थे. "लोकतंत्र में या तानाशाही में नागरिक कब साइलेंट हो जाता है इसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं. अंग्रेज़ी में इस प्रक्रिया को ‘pluralistic ignorance’ के ज़रिए समझा गया है. मतलब नागरिक का बर्ताव पब्लिक में या भीड़ में उसके जैसा होता है लेकिन अकेले में वह ठीक उसका उल्टा सोचता है. इस बारे में एक किताब है आप पढ़ सकते हैं. Cristina बिक्यरी की The grammar of society. एक और किताब है Timur Kuran की Private Lies, Public Truths जिसमें पूर्वी यूरोप की कम्युनिस्ट सरकारों के पतन का अध्ययन किया गया है. सोवियत संघ का विघटन हुआ तो पूर्वी यूरोप के कई मुल्कों में कम्युनिस्ट सरकारें भरभरा कर गिर गईं. किसी को अंदाज़ा नहीं हुआ. क्योंकि सार्वजनिक रूप से जनता सरकार का समर्थन करती थी मगर अकेले में विरोध करती थी. हमने दोनों किताबें नहीं पढ़ी हैं मगर हमारे मित्र वत्सल ने बताया कि साइलेंट वोटर के बारे में दर्शकों को बताया जाना चाहिए. जब लोगों को पब्लिक में बोलने की आज़ादी नहीं होती, भय होता है तो वे चुप हो जाते हैं. यह दोनों ही अध्ययन तानाशाही सरकारों के हैं. भारत में लोकतंत्र है. लेकिन क्या भारत जैसे आजाद मुल्क में साइलेंट वोटर को अलग से समझा जा सकता है. उसे कैसे समझा जाना चाहिए."

ख़बरगली भी यह प्रश्न उठा रहा है कि न हमारे पास न आपके पास इन सर्वेक्षण करने वालो का फोन आया, न मिल कर पूछा गया कि किसे वोट डाला ? तो फिर किस आधार से ये सर्वे होता है ?? और फिर 3 दिन पहले क्या औचित्य है इसका ??