जसोदाबेन की आँखों में अब सपना है और हाथों में हुनर

Jasodaben ahora tiene sueños en sus ojos y habilidades en sus manos, la iniciativa de la Fundación Adani cambió las vidas de la comunidad de Kotawalia, la comunidad de Kotawalia se instaló en los tranquilos bosques de Netrang en el sur de Gujarat, Khabargali

अदाणी फाउंडेशन क़ी पहल से बदली कोटवालिया समुदाय क़ी जिन्दगी

नई दिल्ली (खबरगली) साउथ गुजरात के नेत्रंग के शांत जंगलों में बसा कोटवालिया समुदाय बरसों से समाज के हाशिए पर रहा है। भौगोलिक रूप से अलग-थलग और सामाजिक रूप से उपेक्षित रहा है। पारंपरिक रूप से बांस से चीजें बनाने वाले इस समुदाय की कला में सांस्कृतिक धरोहर जरूर थी, लेकिन रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इसके बदले उन्हें बहुत कम ही मिला। अदाणी फाउंडेशन ने जब कोटवालिया समुदाय के साथ काम शुरू किया, तो उनका उद्देश्य सिर्फ मदद नहीं था बल्कि आत्मनिर्भरता, सम्मान और पहचान दिलाना था। यह दान नहीं था यह साझेदारी थी ऐसी साझेदारी जो परंपरा और आधुनिकता को एक साथ लेकर चले।

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जसोदाबेन की कहानी: बांस से आत्मनिर्भरता तक

32 साल की जसोदाबेन कोटवालिया, दो बच्चों की मां और अब 'आनंदी सखी मंडल' की प्रमुख हैं। कभी जो महिला गांव से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर पाती थी वह आज अपने हाथों के हुनर से न सिर्फ अपना, बल्कि पूरी बिरादरी का भविष्य बदल रही हैं। जसोदाबेन कहती हैं, "जब अदाणी फाउंडेशन हमारी बस्ती में आया, उन्होंने हमारे काम की कद्र की। पहली बार लगा कि हम भी कुछ कर सकते हैं"। इसके बाद उन्हें और अन्य महिलाओं को आधुनिक डिज़ाइन, फिनिशिंग और बाज़ार की मांग के अनुरूप बांस उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग दी गई।

रोज़गार से मिला आत्म-सम्मान

फाउंडेशन ने मशीनें दीं, जिससे काम आसान हुआ और शारीरिक थकावट भी कम हुई। इससे उत्पादन बढ़ा और अब उनके बनाए उत्पाद सीधे प्रदर्शनियों और सरकारी आउटलेट्स जैसे 'रूरल मॉल' में बिकते हैं। जसोदाबेन गर्व से कहती हैं, "पहले हम मेहनत करते थे और मुनाफा दलालों को मिलता था। अब हमें अपने हाथों की कीमत पता है"। आज वे एक ऐसी महिला समूह का नेतृत्व कर रही हैं, बाजार समझती हैं और दूसरी महिलाओं को प्रेरणा देती हैं।

शिक्षा से बदली पीढ़ी

फाउंडेशन ने ‘उत्थान प्रोजेक्ट’ की शुरु किया जिससे कोटवालिया बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके। जसोदाबेन के बच्चे अब 'केवाड़ी प्राथमिक शाला' में पढ़ते हैं। वह स्कूल जिसे फाउंडेशन ने सहयोग दिया है। वह भावुक होकर कहती हैं, "मैं नौवीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ पाई, लेकिन जब मेरे बच्चे यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल जाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे सपना सच हो गया हो"। सेहत: वह ताकत जो दिखती नहीं पर बहुत जरूरी है स्वास्थ्य सेवाओं के बिना कोई विकास अधूरा है। इसलिए फाउंडेशन ने नेत्र परीक्षण, मेडिकल कैम्प और हाइजीन किट वितरण जैसे कई प्रयास किए। खासकर बांस की बारीक कारीगरी में आंखों की रोशनी बहुत जरूरी होती है, ऐसे में आंखों की जांच उनके रोज़गार को बचाने वाली साबित हुई।

आत्मसम्मान की ओर पहला कदम

जसोदाबेन अकेली नहीं हैं। फाउंडेशन ने दर्जनों महिला स्वयं सहायता समूह बनाए हैं, जहां महिलाएं लोन ले रही हैं, कारोबार समझ रही हैं, बजट बना रही हैं और अब दूसरों की मदद कर रही हैं। जो महिलाएं कभी घर से बाहर नहीं निकली थीं, आज वे आत्मनिर्भर हैं, आवाज़ उठाती हैं, फैसले लेती हैं और बदलाव की अगुआ बनी हैं।

परंपरा से भविष्य की ओर

अदाणी फाउंडेशन ने बांस की इस पारंपरिक कला को खत्म नहीं किया, बल्कि उसे नया रूप, नया बाजार और सम्मान दिया। विकास थोपा नहीं गया बल्कि समुदाय के साथ मिलकर गढ़ा गया। नेत्रंग के जंगलों में अब कोटवालिया समुदाय का अस्तित्व मिटता नहीं, बल्कि चमकता नजर आता है अपनी पहचान के साथ, अपनी कला के साथ। अब वे सिर्फ एक बांस कारीगर नहीं हैं। वे एक लीडर हैं, एक शिक्षक हैं और सबसे बढ़कर उम्मीद की एक जीवंत मिसाल हैं। जब एक महिला उठती है तो वह अकेली नहीं उठती वह अपने साथ पूरे समाज को उठाती है।