पीएफआई पर प्रतिबंध पर मचा घमासान..पीएफआई के पोस्टर में टीएमसी सांसद का नाम

ban on PFI

हाइलाइट्स
विवादित संगठन पीएफआई के पोस्टर में टीएमसी सांसद का नाम आने पर खड़ा हुआ विवाद
यूपी हिंसा में पीएफआई के 20 सदस्य अरेस्ट 
पीएफआई पर सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों में हिंसा फैलाने का आरोप, होम मिनिस्ट्री को भेजी गई रिपोर्ट

लखनऊ/ कोलकाता (khabargali) नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन के दौरान कई जगहों पर जमकर हिंसा हुई थी. इस हिंसा के लिए जिम्मेदार बताए जा रहे कट्टरपंथी संगठन पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर यूपी सरकार बैन की तैयारी कर रही है. अब पीएफआई की रैली से जुड़े एक पोस्टर में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के एक सांसद अबू ताहिर खान का नाम आया है. हालांकि, टीएमसी सांसद ने पीएफआई से किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया है. यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने  मीडिया को दिए अपने बयान में इस बात के स्पष्ट संकेत दिए हैं कि हालिया दिनों में CAA के विरोध के नाम पर जो हिंसा उत्तर प्रदेश में हुई उसका सूत्रधार पीएफआई था. साथ ही डिप्टी सीएम का ये भी मानना है कि बीते दिनों हुई हिंसा में यही लोग शामिल हैं जो बैन किये जाने से पहले सिमी में शामिल थे. मौर्य ने सख्त लहजे में इस बात को भी दोहराया है कि अगर पीएफआई, सिमी की तर्ज पर उभरने की कोशिश करेगा तो उसे कुचल दिया जाएगा. उत्तर प्रदेश सरकार ने हिंसा, आगजनी, उपद्रव आदि में पीएफआई की संलिप्तता के जो सबूत दिए हैं, वे काफी ठोस हैं.  केवल पश्चिम उत्तर प्रदेश ही नहीं, लखनऊ में भी हिंसा के पीछे पुलिस पीएफआई की ही भूमिका के सबूत पेश कर रही है. पूरे प्रदेश में हुई गिरफ्तारियों में पीएफआई के लोगों की संख्या दर्जनभर से ज्यादा है.

संगठन वास्तव में सिमी का ही बदला हुआ नाम- पुलिस

पीएफआई के संदिग्धों के पकड़ में आने के बाद पुलिस की छापेमारी में जिस तरह के दस्तावेज व सामग्रियां बरामद हुई तथा गिरफ्तार सदस्यों ने जो कुछ बताया उससे पुलिस निष्कर्ष पर पहुंची है कि यह संगठन वास्तव में सिमी का ही बदला हुआ नाम है. यह सच है तो फिर सिमी की तरह इस पर प्रतिबंध स्वाभाविक हो जाता है. गौरतलब है कि सिमी पर प्रतिबंध लगाते समय 2001 में तत्कालीन वाजपेई सरकार ने इतने पुख्ता आधार बनाए थे कि उच्चतम न्यायालय ने भी उस पर अपनी मोहर लगा दी.

क्या है पीएफआई? क्या कहते हैं इनके दावे

पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया या पीएफआई एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन है जो अपने को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला सगठन बताता है. बताया ये भी जाता है कि संगठन की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF)के उत्तराधिकारी के रूप में हुई. संगठन की जड़े केरल के कालीकट से हुई और इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में स्थित है.
 एक मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों के इर्द गिर्द ही घूमती हैं और पूर्व में तमाम मौके ऐसे भी आए हैं जब ये मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर आए हैं. संगठन 2006 में उस वक़्त सुर्ख़ियों में आया था जब दिल्ली के राम लीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था. तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी. बात अगर एक संगठन के तौर पर पीएफआई की हो तो इसे सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) का बी विंग कहा जाता है. माना जाता है कि अप्रैल 1977 में निर्मित संगठन सिमी पर जब 2006 में बैन लगा उसके फ़ौरन बाद ही शोषित मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों के अधिकार के नाम पर पीएफआई का निर्माण कर लिया गया था. संगठन की कार्यप्रणाली सिमी से मिलती जुलती थी. बात वर्तमान की हो तो आज देश में 23 राज्य ऐसे हैं जहां पीएफआई पहुंच चुका है और अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है. बात अगर इनकी कार्यप्रणाली के सन्दर्भ में हो तो ये बताना हमारे लिए भी खासा दिलचस्प है कि संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का पैरोकार बताता है और मुस्लिमों के अलावा देश भर के दलितों, आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के लिए समय समय पर मोर्चा खोलता है.

पीएफआई का विवादों से है पुराना नाता

पीएफआई का विवादों से है पुराना नाता है. तमाम विवाद हैं जिन्होंने समय समय पर पीएफआई के दरवाजे पर दस्तक दी है. आज उत्तर प्रदेश में पीएफआई के बैन की मांग तेज है मगर ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब संगठन को बैन करने की बात हुई है. संगठन को बैन किये जाने की मांग 2012 में भी हुई थी. दिलचस्प बात ये है कि तब खुद केरल की सरकार ने पीएफआई का बचाव करते हुए अजीब ओ गरीब दलील दी थी. केरल हाई कोर्ट को बताया था कि ये सिमी से अलग हुए सदस्यों का संगठन है जो कुछ मुद्दों पर सरकार का विरोध करता है. ध्यान रहे कि ये सवाल जवाब केरल की सरकार से तब हुए थे जब उसके पास संगठन द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर आजादी मार्च किये जाने की शिकायतें आई थीं.
हाई कोर्ट ने सरकार के दावों को खारिज कर दिया था मगर बैन को बरक़रार रखा था. बात विवादों की चल रही है तो बता दें कि केरल पुलिस ने पीएफआई कार्यकर्ताओं के पास से बम, हथियार, सीडी और तमाम ऐसे दस्तावेज बरामद किये थे जिनमें पीएफआई अल कायदा और तालिबान का समर्थन करती नजर आ रही थी.
पीएफआई कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लव जिहाद से लेकर दंगा भड़काने, शांति को प्रभावित करने, लूटपाट करने और हत्या में इसके कार्यकर्ताओं का नाम आ चुका है. माना जाता है कि संगठन एक आतंकवादी संगठन है जिसके तार कई अलग अलग संगठनों से जुड़े हैं.

पीएफआई बैन पर राजनीति

पीएफआई बैन भाजपा कांग्रेस समेत लगभग सभी दलों के लिए राजनीति का एक बड़ा मुद्दा बन रहा है. जैसा इस देश में राजनीति पर अलग अलग दलों का रुख है साफ़ हो जाता है आगे आने वाले दिनों में PFI पर बैन राजनीतिक दलों का ध्यान आकर्षित करेगा और इसपर जमकर रोटी सेंकी जाएगी. PFI को बैन किये जाने को लेकर जैसा उत्तर प्रदेश सरकार का रुख है, कह सकते हैं कि इसे लाया ही इसलिए गया है ताकि CAA और NRC से लोगों का ध्यान भटकाया जा सके.

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