सूर्य मिशन: जैसे ही " आदित्य-एल1" ऊपर उठा, 'भारत माता की जय' के नारे गूंज उठे

Surya Mission, Aditya-L1, slogans of Bharat Mata Ki Jai echoed, ISRO's PSLV rocket took off from Sriharikota with Aditya-L1,khabargali

इसरो का पीएसएलवी रॉकेट आदित्य-एल1 लेकर श्रीहरिकोटा से रवाना हुआ

श्रीहरिकोटा (khabargali) आज जब इसरो का पीएसएलवी रॉकेट आदित्य-एल1 लेकर श्रीहरिकोटा से रवाना हुआ तो भारी भीड़ ने "भारत माता की जय" के नारे लगाए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कुछ दिन पहले चंद्रमा पर सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने के बाद एक बार फिर इतिहास रचने के उद्देश्य से शनिवार को देश के पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य एल1’ का यहां स्थित अंतरिक्ष केंद्र से सफल प्रक्षेपण किया।इसरो ने बताया कि आदित्य-एल1 यान पीएसएलवी रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग हो गया है।

सूर्य की गतिविधियों का अध्ययन करने के लिए भारत का महत्वाकांक्षी सौर मिशन आदित्य एल1 अंतरिक्ष में एक और महत्वपूर्ण छलांग है। सूर्य की कुंडली खंगालने शनिवार को अपने मिशन पर निकला आदित्य एल1 ऊर्जा के सबसे बड़े स्त्रोत की गतिविधियों का पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में भी महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा। यह कहना है विशेषज्ञों का।

अंतरिक्ष यान को फिर इसमें लगी प्रणोदन प्रणाली का इस्तेमाल कर ‘एल1’ बिंदु की ओर भेजा जाएगा, ताकि यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव से बाहर निकल सके और एल1 की ओर बढ़ सके। बाद में, इसे सूर्य के पास एल1 बिंदु के ईदगिर्द एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में भेजा जाएगा। इसरो ने कहा कि आदित्य-एल1 को प्रक्षेपण से लेकर एल1 बिंदु तक पहुंचने में लगभग चार महीने लगेंगे।

मिशन को क्यों दिया गया है आदित्य एल-1 नाम?

सूर्य मिशन को आदित्य एल-1 नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यह पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर लैग्रेंजियन बिंदु1 (एल1) क्षेत्र में रहकर अपने अध्ययन कार्य को अंजाम देगा।

सूर्य के रहस्यों से पर्दा हटेगा

भारत का यह मिशन सूर्य से संबंधित रहस्यों से पर्दा हटाने में मदद करेगा। ‘आदित्य एल1’ सूर्य के रहस्य जानने के लिए विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक अध्ययन करने के साथ ही विश्लेषण के वास्ते इसकी तस्वीरें भी धरती पर भेजेगा। सूर्य गैस का एक विशाल गोला है और आदित्य-एल1 इसके बाहरी वातावरण का अध्ययन करेगा। इसरो ने कहा कि आदित्य-एल1 न तो सूर्य पर उतरेगा और न ही इसके करीब जाएगा। इसरो के अनुसार, ‘आदित्य-एल1’ सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला है। यह अंतरिक्ष यान 125 दिन में पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर लंबी यात्रा करने के बाद लैग्रेंजियन बिंदु ‘एल1’ के आसपास एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित होगा, जिसे सूर्य के सबसे करीब माना जाता है। यह वहीं से सूर्य पर होने वाली विभिन्न घटनाओं का अध्ययन करेगा।

पृथ्वी-सूर्य के बीच पांच लैंग्रेंजियन बिंदु हैं

वैज्ञानिकों के मुताबिक, पृथ्वी और सूर्य के बीच पांच ‘लैग्रेंजियन’ बिंदु (या पार्किंग क्षेत्र) हैं, जहां पहुंचने पर कोई वस्तु वहीं रुक जाती है। लैग्रेंज बिंदुओं का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर पुरस्कार प्राप्त करने वाले उनके अनुसंधान पत्र-’एस्से सुर ले प्रोब्लेम डेस ट्रोइस कॉर्प्स, 1772’ के लिए रखा गया है। लैग्रेंज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के बीच गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होता है, जिससे किसी उपग्रह को इस बिंदु पर रोकने में आसानी होती है।

ढेर सारे उपकरण लेकर गया है आदित्य-एल 1

अध्ययन को अंजाम देने के लिए ‘आदित्य-एल1’ उपग्रह अपने साथ सात वैज्ञानिक उपकरण लेकर गया है। इनमें से ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ’ (वीईएलसी) सूर्य के परिमंडल और सीएमई की गतिशीलता का अध्ययन करेगा। वीईएलसी यान का प्राथमिक उपकरण है, जो इच्छित कक्षा तक पहुंचने पर विश्लेषण के लिए प्रति दिन 1,440 तस्वीरें धमती पर स्थित केंद्र को भेजेगा। यह आदित्य-एल1 पर मौजूद ‘सबसे बड़ा और तकनीकी रूप से सबसे चुनौतीपूर्ण’ उपकरण है। ‘द सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप’ सूर्य के प्रकाशमंडल और वर्णमंडल की तस्वीरें लेगा तथा सौर विकिरण विविधताओं को मापेगा।

अभियान की जरूरत इस वजह से

सूर्य का अध्ययन करने का कारण बताते हुए इसरो ने कहा कि यह विभिन्न ऊर्जा कणों और चुंबकीय क्षेत्रों के साथ-साथ लगभग सभी तरंगदैर्ध्य में विकिरण उत्सर्जित करता है। पृथ्वी का वातावरण और उसका चुंबकीय क्षेत्र एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है और हानिकारक तरंगदैर्ध्य विकिरण को रोकता है। ऐसे विकिरण का पता लगाने के लिए अंतरिक्ष से सौर अध्ययन किया जाता है। मिशन के प्रमुख उद्देश्यों में सूर्य के परिमंडल की गर्मी और सौर हवा, सूर्य पर आने वाले भूकंप या ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (सीएमई), पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष मौसम आदि का अध्ययन करना शामिल है।

15 साल पहले की गई थी इस मिशन की परिकल्पना 

कोलकाता स्थित भारतीय अंतरिक्ष भौतिकी केंद्र के निदेशक संदीप चक्रवर्ती ने कहा कि आदित्य की परिकल्पना करीब 15 साल पहले की गई थी। शुरू में यह सौर कोरोना के आधार पर प्लाज्मा वेग का अध्ययन करने के लिए था। बाद में यह आदित्य-एल1 और फिर आदित्य एल1+ के तौर पर विकसित हुआ और अंतत: उपकरणों के साथ इसे आदित्य-एल1 नाम दिया गया। जहां तक मिशन के उपकरणों और क्षमताओं की बात है तो पेलोड थोड़ा निराशाजनक रहा है और उपग्रह निश्चित रूप से खोज श्रेणी एक का नहीं है। लगभग सभी उपकरण लगभग 50 साल पहले नासा द्वारा भेजे गए थे। उदाहरण के लिए 1970 के आसपास पायनियर 10, 11 आदि में। ब्लाकिंग डिस्क का आकार बहुत बड़ा है जो सौर डिस्क से लगभग पांच प्रतिशत ज्यादा है। इसलिए यह सौर सतह से केवल 35,000 किलोमीटर की दूरी पर ही वेग माप सकता है।