छत्तीसगढ़ का वंचित समाज बुद्ध और अंबेडकर को अपनाए, ईसाइयत से बचेंः रुसेन कुमार

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ख़बरगली @ सहित्य डेस्क

हमें इस बात को बहुत गहराई से समझना होगा कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ही हमारे पिता हैं और वे ही हमारे उद्धारकर्ता हैं। छत्तीसगढ़ में सतनामी और आदिवासी समाज के बहुसंख्य लोग भगवान बुद्ध, गुरु घासीदास और बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के बताए हुए मार्ग पर चलने के बजाय, बड़ी संख्या में ईसाई बन रहे हैं। इस तरह की खराब प्रवृत्ति के कारण भविष्य में वंचित समाज के लोगों के समक्ष सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आजादी पाने के प्रयासों पर गंभीर चुनौती खड़ी हो सकती है। यह कहना है प्रसिद्ध समाजसेवी युवा चिंतक और सतनामी समाज के अग्रणी व्यक्तित्व रुसेन कुमार का।

रुसेन कुमार ने कहा कि वे लगातार छत्तीसगढ़ के गांवों में जाकर लोगों से मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में सतनामी और आदिवासी समाज के लोग घोर अंधविश्वास से पीड़ित हो रहे हैं, और भगवान बुद्ध, गुरु घासीदास और बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के बताए हुए मार्ग पर चलने के बजाय बड़ी संख्या में ईसाइयत को अपना रहे हैं। सतनामी समाज के लोग गांवों में चेचक, हैजा, या मानसिक बीमारी आदि होने पर अस्पताल जाने के बजाय बैगा-गुनिया से झाड़-फूंक करवातें हैं। अंधविश्वासी लोगों को ईसाई लोग अपना सॉफ्ट टारगेट बना रहे हैं।

रुसेन कुमार ने कहा हमें इस बात को बहुत गहराई से समझना होगा और आने वाली पीढ़ी को यह समझाना भी होगा कि हमें पढ़ने-लिखने की आजादी, सामर्थ्य और व्यवस्था बाबा साहब डा. भीमराव अंबेडकर ने दी है, न कि ईसाइयों ने। सतनामी समाज के लोग अपने गली-मोहल्लों में चंदा देकर चर्च बनवा रहे हैं। इस प्रवृत्ति के कारण सतनामी समाज का आंतरिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो रहा है और समाज निरंतर कमजोर हो रहा है। हमें अपने लोगों को बिखरने से बचाना होगा। हमारे लोग बुद्ध और अंबेडकर के मार्ग पर चलेंगे, तभी हमारा बौद्धिक उत्थान होगा, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रगति सुनिश्चित होगी।

रुसेन कुमार ने कहा कि हमारी निष्ठा और अनुकरण करने की भावना अगर भगवान बुद्ध, गुरु घासीदास और बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के अतिरिक्त किसी अन्य में होगी तो इससे हमारी सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक आजादी को आने वाले समय में गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आजादी पाने के लिए वंचित समाज के लोगों को संगठित होना होगा। यह हमारी घोर लापरवाही है कि हम लोग संगठित होने के बजाय निरंतर बिखर रहे हैं। जब तक हम बाबा साहब डा. भीमराव अंबेडकर को भीतर और बाहर से अपना आदर्श नहीं मान लेते, स्वीकार नहीं कर लेते तब तक हमें स्वयं को शिक्षित कहलवाने का कोई औचित्य उजागर नहीं होता है।

रुसेन कुमार ने जोर देकर कहा कि ईसाइयत पिछड़ी जातियों में संगठित होने की शक्ति और शिक्षित हो, संगठित रहो और संघर्ष करो जैसे महान सूत्र वाक्य में निहित विचार शक्ति को छिन्न-भिन्न कर सकती है। सतनामी और आदिवासी समाज के पढ़े-लिखे लोग अपनी गाढ़ी कमाई को ईसाई संस्थाओं को आर्थिक चंदा देकर अपने घर, परिवार, समाज के प्रति अन्याय कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे कल्याण के लिए अनेक महापुरुषों ने आजीवन संघर्ष किए, वे ही हमारे आदर्श। हमें किसी भी धर्म के माया जाल में फंसने के बजाय केवल और केवल बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को अपना आदर्श मानना चाहिए और वे ही हमारी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आजादी के पिता हैं।

रुसेन कुमार ने कहा कि धार्मिक गुलामी और मानसिक गुलामी में कोई अंतर नहीं है, बल्कि दोनों एक ही बात है। शिक्षित होकर हमें अपनी शक्ति का सदुपयोग राजनीतिक सत्ता हासिल करने में लगाना है न कि अपने जीवन, श्रम एवं विचार शक्ति तथा समाज को धार्मिक प्रपंचों में लिप्त करके तबाह करना है। बुद्ध, गुरु घासीदास और बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को हर घर तक पहुँचाने के लिए पढ़े-लिखे लोगों को विशेष प्रयास करने ही होंगे।