कीटनाशक मिला पैरा खाने से 6 गायों की मौत, 36 बीमार.. हम-आप भी खतरे में !

cow death

कवर्धा / रायपुर ( khabargali@ Ajay Saxena ) प्रदेश के कवर्धा जिले से खबर आ रही है कि पैरा खाने से 6 मवेशियों की मौत हो गई और तकरीबन 36 गाय बीमार पड गई है। इस खबर से प्रशासन में हड़कंप मच गया है और मौके पर पशु विभाग के अधिकारी पहुंच गए हैं. मामला लोहारा विकासखंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत गगरिया खमरिया का है। सूत्र बता रहे हैं कि एक चरवाहा मवेशियों को चराने ले गया था।  जहां एक खेत में फसल कटने के बाद बचे पैरा को खाने के बाद मवेशियों की तबियत बिगड़ने लगी।मवेशियों की बिगडती तबियत देख पशु चिकित्सक को बुलाया गया। लेकिन गायों की स्थिति बिगड़ते गई और देखते ही देखते मवेशियों की मौतें भी होने लगी। बताया जा रहा है कि मौत का आंकड़ा 6 पहुंच गया है.

मौत की वजह कीटनाशक 

गायों की मौत के पीछे की वजह फसल में इस्तेमाल किये गए कीटनाशक बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि उक्त फसल में कीट-पतंगों से बचाने के अत्याधिक मात्रा में कीटनाशक का इस्तेमाल किया गया था।  इस मामले में फिलहाल अभी तक अधिकारिक रुप से किसी भी अधिकारी का बयान सामने नहीं आया है कि गायों की मौत के पीछे असली वजह क्या है?

आए- दिन हो रही ऐसी घटनाएं

देश में कई हिस्सों से चारा खाने से मवेशियों की मौत की खबर आती रहती है।  पशु चिकित्साधिकारी बताते है कि चारे के साथ जहरीली दवा खाने से पेट में गैस बनती है और सांस रुकने से मवेशियों की मौत हो जाती है। चारे में मिली जहरीली दवा खाने से मवेशियों के पेट में गैस बनती है और सांस रुकने से मौत हो  जाती है।

फसल सूंघने पर अधेड़ बेहोश

ये रासायनिक खाद एवं कीटनाशक मवेशियों के साथ इंसानों को भी निशाना बन रहे है। इसके जहरीले पहलु को दर्शाने के लिए एक घटना को जानिए,
पिछले साल कानपुर के राठ नामक जगह में गांव का एक किसान जहरीली दवा का छिड़काव सही हुआ है कि नहीं यह देखने के लिए उसने मटर की फसल को सूंघा ही था कि उसे चक्कर आने लगे और चकराकर गिर पड़ा। 

कीटनाशक वास्तव में जहर

कीटाणुनाशक वे रासायनिक पदार्थ हैं जिनका उन जीवों को मारने व नियंत्रित करने के लिये विकास किया गया है जो कृषि के लिये हानिकारक सिद्ध होते हैं।
आधुनिक कीटाणुनाशक (Pesticides) खाद्यान्नों की आपूर्ति में वृद्धि करते हैं, कृषकों के मुनाफे की वृद्धि करते हैं और सही प्रयोग करने पर सुरक्षा भी प्रदान करते हैं।यूरिया सर्वाधिक प्रदूषण फैलाता है। इसका एक बड़ा अंश मिट्टी में मौजूद रहता है और यह आसपास के वातावरण में पहुंच जाता है जो पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर डालता है। कीटनाशक वास्तव में जहर होता है। जो प्रकृति, पर्यावरण, जमीन, पानी, हवा पर बहुत बुरा असर डालता है। ज्यादा मुनाफे के लालच में कीटनाशकों का निर्धारित मात्रा के कई गुना ज्यादा छिड़काव करते हैं। हरी सब्जियों ,फलों पर भी रासायनिक कीटनाशकों का काफी इस्तेमाल होता है। यह काम सब गोपनीय ढंग से किया जाता है। इस तरह भोजन की थाली में लालच के कारण अतिरिक्त जहर भी पहुँचाया जा रहा है।

गौरतलब है कि भोपाल में अमेरिकी कम्पनी ‘यूनियन कार्बाइड’ ने भारी पूँजी लगाकर इल्लीमार दवाइयाँ बनाने के लिये ही कारखाना लगाया गया था। उन्हें पता था कि हरित क्रान्ति में इस्तेमाल होने वाले संकर बीज वाली फसलों में रोगों का हमला होगा और ये रोग और इल्लियाँ कमाई का साधन बनेंगे। पूरी दुनिया में चर्चित भोपाल गैस कांड की घटना को भी नजरअंदाज कर फिर भी किसानों को कीटनाशक दवाइयाँ बेचकर मोटा मुनाफा कमाने के लिये कई कम्पनियों ने कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के कारखाने खोले। 

कीटनाशक छिड़काव के बड़े यंत्रों की माँग बढ़ी

हरित क्रान्ति के शुरुआती दौर में पाँच-दस लीटर की क्षमता की टंकी वाले छिड़काव के पम्प थे, जिन्हें किसान पीठ पर बाँधकर हाथ से पम्प चलाकर फसल पर छिड़काव कर लेता था। धीरे-धीरे उनकी जगह स्वचालित प्रणाली और बड़े यंत्रों ने ले लिया। पाँच सौ लीटर की क्षमता की टंकी को ट्रैक्टर के पीछे हाइड्रॉलिक लिफ्ट के ऊपर कसा जाता है, जिसमें दवाई का घोल भरा जाता है। ट्रैक्टर पर ही स्वचालित स्प्रे पम्प फिट किया जाता है। लम्बी लचीली नली के एक सिरे को स्प्रे पम्प से तथा दूसरे सिरे को नोजल से जोड़कर फसल पर दवाई का छिड़काव किया जाता है। इससे समझा जा सकता है कि पहले की तुलना में अब कितना जहर पर्यावरण में उड़ेला जा रहा है। 

स्वीकृत मानक से लगभग 400 गुना अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल 

वैज्ञानिक अनुसन्धान के अनुसार खाद्य पदार्थों में एक निश्चित मात्रा से ज्यादा कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं कर सकते। दुर्भाग्यवश हमारी खाद्यान्न फसलों पर स्वीकृत मानक से लगभग 400 गुना अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल हो रहा है। एक अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में कुएं और बोरवेल के पानी में नाइट्रेट की सघनता विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तय सीमा से अधिक है। कृषि सघनता वाले हरियाणा में यह सबसे बदतर है। यहां कुएं के पानी में नाइट्रेट की औसत मौजूदगी 99.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है जबकि डब्ल्यूएचओ की निर्धारित सीमा 50 मिलीग्राम प्रति लीटर है। दिल्लीवासियों के शरीर के ऊतकों में डीडीटी (क्लोरीन युक्त हाइड्रोकार्बन) का स्तर विश्व में सबसे ऊँचा है।

केंचुए, केकड़े के साथ मधुमक्खी और तितली गायब

अब खेतों के आसपास लगे पेड़ों में ही मधुमक्खी का छत्ता नहीं दिखता क्योंकि यूरिया के कारण अब मधुमक्खी फसलों के फूलों पर बैठती ही नहीं। इसके अलावा खेतों से केंचुए व केकड़े आदि सब गायब हो गए हैं। किसान बताते है कि सालों हो गए हैं हमें अपने खेतों में रंग-बिरंगी तितली को उड़ते हुए देखे। खेतों के पास बहने वाली नदी- तालाब से मछली तक गायब हो गई हैं। क्योंकि मानसून के समय हमारे खेतों से बारिश का पानी बहकर नदी- तालाबों में ही जाता है और अपने साथ यूरिया भी बहा ले जाता है। इसके कारण इस नदी में अब मछलियां कम हो गई हैं। 

महात्मा गाँधी ने रासायनिक खाद के खतरों के प्रति चेताया था

महात्मा गाँधी ने हरिजन के 19 मई 1946 के अंक में रासायनिक खाद के प्रयोग से होने वाले खतरों के प्रति चेताया था आपके लिए प्रस्तुत है उसके कुछ अंश -

“आजकल जमीन का उपजाऊपन अधिक बढ़ाने की लम्बी-लम्बी बातों के नाम पर खेती में रासायनिक खाद दाखिल करने के बड़े प्रयत्न चल रहे हैं। दुनिया भर में इस तरह के रासायनिक खादों का जो अनुभव हुआ है, उससे यह साफ चेतावनी मिलती है कि हमें इन खादों को अपनी खेती में नहीं घुसने देना चाहिए। इन खादों से जमीन का उपजाऊपन किसी भी प्रकार नहीं बढ़ता। अफीम या शराब जैसी चीजें जिस प्रकार आदमी को नशे में झूठी शक्ति का आभास कराती हैं, उसी प्रकार ये सब खाद जमीन को उत्तेजित करके थोड़े समय के लिये काफी फसल पैदा कर देते हैं, लेकिन अन्त में जमीन का सारा रस-कस चूस लेते हैं। खेती के लिये अत्यन्त जरूरी माने जाने वाले जीव जन्तुओं का, जो जमीन में रहते हैं, ये खाद नाश कर देते हैं। ये रासायनिक खाद कुल मिलाकर लम्बे समय के बाद खेती को नुकसान पहुँचाने वाले ही साबित हुए हैं। रासायनिक खादों के बारे में जो बड़ी-बड़ी बातें कही जाती हैं, उनके पीछे उन खादों के कारखानों के मालिकों की अपने माल की बिक्री बढ़ाने की चिन्ता के सिवा और कोई बात नहीं है और जमीन को उनसे लाभ होता है या हानि, इस बात से वे एकदम लापरवाह होते हैं।”


कुछ विचारणीय बिन्दु खबरगली द्वारा प्रस्तुत -

1. पंजाब, हरियाणा की जहरीली खेती से सबक सीखें, अपने प्रदेश को पंजाब न बनने दें।
2. खेती में विष मुक्ति का अभियान चलाएँ। रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों को विदा कराने की तैयारी करें
3. उनकी जगह जैविक खाद और जैविक कीटनाशक इस्तेमाल करें। मित्र कीटों को न मरने दें।
4. रासायनिक खाद और दवाई के घातक अंश भूजल में न रिस पाएँ। जिसकी वजह से जमीन, जल, वायु, प्रकृति, जीवन, सब में जहर फैल चुका है।
5. जमीन की उपजाने की घट रही कुदरती ताकत को बढ़ाकर वापस लाने के तरीके अपनाएँ।

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