नए संसद भवन की राह में खड़ी की गईं थी ये कानूनी चुनौतियां

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नई दिल्ली (khabargali) देश को रविवार को नया संसद भवन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समर्पित किया गया। लेकिन इस महत्वाकांक्षी पुनर्विकास प्रोजेक्ट ‘सेंट्रल विस्टा’ को पिछले कुछ वर्षों में कई कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इस प्रोजेक्ट में नया संसद भवन भी शामिल है. इस प्रोजेक्ट की घोषणा सितंबर 2019 में की गई थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिसंबर, 2020 को नये संसद भवन की आधारशिला रखी थी.

2020 में पहली बार गया कोर्ट में यह मामला-

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार की सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में एक साझा केंद्रीय सचिवालय और राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर लंबे राजपथ का कायाकल्प भी शामिल है. इस प्रोजेक्ट के खिलाफ पहला अदालती मामला 2020 में राजीव सूरी और अनुज श्रीवास्तव और अन्य द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दायर किया गया था. इसमें पर्यावरणीय मंजूरी दिए जाने और डीडीए अधिनियम के अनुसार भूमि उपयोग बदलने और डिजाइन सलाहकार चयन आदि के लिए दिल्ली शहरी कला आयोग (डीयूएसी) और विरासत संरक्षण समिति द्वारा अनुमोदन को चुनौती दी गई थी. 11 फरवरी, 2020 को हाईकोर्ट के जस्टिस राजीव शकधर की एकल न्यायाधीश की पीठ ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को प्रोजेक्ट के साथ आगे बढ़ने के लिए मास्टर प्लान में किसी भी बदलाव को अधिसूचित करने से पहले अदालत का रुख करने का निर्देश दिया. केंद्र ने आदेश को हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी जिसने डीडीए को निर्देश देने वाले अपने एकल न्यायाधीश के 28 फरवरी, 2020 के निर्देश पर रोक लगा दी.

सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट को दे दी हरी झंडी

बाद में, शीर्ष अदालत ने मार्च 2020 में, मामले को ‘व्यापक जनहित’ में दिल्ली हाईकोर्ट से अपने पास स्थानांतरित कर लिया और प्रोजेक्ट को चुनौती देने वाली अन्य नयी याचिकाओं पर भी सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी, 2021 को अपना फैसला सुनाया और 2:1 के बहुमत से 13,500 करोड़ रुपये की सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी. शीर्ष अदालत ने कहा कि पर्यावरण मंजूरी और भूमि उपयोग के परिवर्तन के लिए अनुमति में ”कोई खामी नहीं है.”

कोरोना की दूसरी लहर में निर्माण कार्य रोकने का किया गया अनुरोध

फिर, अप्रैल 2021 में अनुवादक अन्या मल्होत्रा और इतिहासकार एवं वृत्तचित्र निर्माता सोहेल हाशमी ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की जिसमें कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान निर्माण कार्य को स्वास्थ्य एवं अन्य सुरक्षा चिंताओं को उठाते हुए स्थगित करने का अनुरोध किया गया. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 31 मई, 2021 को प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य को यह कहते हुए जारी रखने की अनुमति दी कि यह एक ‘महत्वपूर्ण और आवश्यक’ राष्ट्रीय प्रोजेक्ट है. हाईकोर्ट ने एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए जनहित याचिका खारिज कर दी.

शेर की प्रतिमा के डिजाइन को दी गई चुनौती

शीर्ष अदालत ने नये संसद भवन के ऊपर शेर की प्रतिमा के डिजाइन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी विचार किया. अदालत ने कहा कि शेर की प्रतिमा ने भारतीय चिह्न (अनुचित उपयोग का निषेध) अधिनियम, 2005 का उल्लंघन नहीं किया. याचिकाकर्ताओं, वकील अल्दानीश रीन और अन्य ने दावा किया था कि प्रतीक चिह्न में शेर क्रूर और आक्रामक दिखाई दे रहे हैं तथा उनके मुंह खुले हुए हैं और उनके दांत भी दिखायी दे रहे हैं. जनहित याचिका में कहा गया था कि राष्ट्रीय चिह्न के मूल स्रोत सारनाथ में शेर की प्रतिमाएं ‘शांत’ दिखती हैं.

नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कराने का अनुरोध

आखिरी जनहित याचिका वकील जया सुकिन की जनहित याचिका थी जिसमें नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा कराने के लिए लोकसभा सचिवालय को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा सचिवालय को नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कराने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया और कहा कि इस मामले पर गौर करना अदालत का काम नहीं है.