अंग्रेजी आजीविका की भाषा है और हिंदी आत्मा की- आशुतोष दुबे

Prabha Khaitan Foundation, pen, poet Ashutosh Dubey, Abhikalp Foundation, Dr.  Garima Tiwari, Chhattisgarh, Khabargali

रायपुर (khabadgali) प्रभा खेतान फाउंडेशन के कार्यक्रम 'कलम' में कवि आशुतोष दुबे ने शिरकत की। अभिकल्प फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित कलम की इस कड़ी में कवि आशुतोष दुबे से एहसास वुमन, बिलासपुर, डॉ. गरिमा तिवारी ने बातचीत की। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए गौरव गिरिजा शुक्ला ने बताया की देशभर के प्रसिद्ध साहित्यकारों के सहयोग से अबतक कलम रायपुर के करीब 70 से ज्यादा सफल आयोजन हो चुके हैं।

बातचीत में सवाल जवाब के दौरान कवि आशुतोष ने कलम पर अपनी राय रखते हुए कहा कि मुझे कलम कार्यक्रम की अवधरणा बहुत पसन्द आई। जिस अंतरंग वातावरण में इसका आयोजन होता है मुझे बेहद पसन्द है, इससे लेखक और पाठक के बीच बेहतर संवाद संभव हो पाता है। आशुतोष अंग्रेजी के प्राध्यापक हैं और हिंदी में लेखन करते हैं इस सवाल पर वे कहते हैं कि अंग्रेजी आजीविका की भाषा है और हिंदी आत्मा की भाषा है।उन्होंने कहा कि हमारे यहां विभिन्न रचनाकार बहुभाषी हुए लेकिन हिंदी में रचनाएं लिखी क्योंकि हम अपनी अपनी मातृभाषा में सृजनात्मक अनुभव ज्यादा प्रमाणिक रूप से रच पाते हैं।

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अनुवाद के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि अनुवाद मूल की छाया होता है लेकिन छाया का भी अपना प्रकाश है आलोक है। अनुवाद अलग-अलग भाषाओं के बीच सेतु का काम करता है। अनुवाद में भी एक रचनात्मक अनुभव होता है। अनुवाद बहुत चुनौती भरा प्रयास होता है आप उसमे लेखक के भाव स्वीकार कर चुके होते हैं आपको उसमे अपनी भावनाएं आरोपित करने की आवश्यकता नही होती।

सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि पहले रचनाकार को कवि के रूप में स्वीकृति पाने में पत्र-पत्रिकाओं और सम्पादकों की बड़ी भूमिका होती थी पर आज सोशल मीडिया के आने से साहित्य का जनतंत्रीकरण हुआ है प्रकाशकों पर निर्भरता कम हुई है जिसके चलते सोशल मीडिया में बहुत अच्छी कृतियों के साथ नए कवि भी उभर कर आगे आए हैं।

आशुतोष ने कहा कि कविता साधना मांगने वाली विधा है। कविता का पाठक स्वयं भी कवि ही होता है। जीवन में जो चीजें खत्म हो रही है उन्हें कविता सहेज लेती है। अच्छी कविता, अच्छी कविता होती है चाहे वह छंद में हो या न हो। कविता की अगली पंक्ति के विषय में क्या होगा यह स्वंय आपको भी नही पता होता यही इसका आनंद है।

बातचीत के दौरान उन्होंने अपनी कविता 'जैसे' की पंक्तियां पढ़ी...

"चाहता हूँ कि तुम्हारा काम मेरे बिना वैसे ही न चले जैसे उपमा का काम 'जैसे' के बिना नहीं चलता" - आशुतोष दुबे

सभी अतिथियों के प्रति अभिकल्प फाउंडेशन के संस्थापक गौरव गिरिजा शुक्ला ने आभार व्यक्त किया। कवि आशुतोष दुबे को जया जादवानी ने स्मृति चिह्न भेंट किया। होटल हयात में आयोजित हुए इस कलम कार्यक्रम में शहर के प्रबुद्ध साहित्यप्रेमी शामिल हुए।