क्या 30 अक्टूबर से बंद हो रहा है गढ़ कलेवा..?

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Gadh kalewa main gate

विभाग की ओर से गढ़ कलेवा के संचालक को तीन साल का किराया पटाने का नोटिस भेजा गया है

संचालक मोनिशा महिला स्वसहायता संस्था ने 30 अक्टूबर से बंद करने का लगाया बोर्ड

रायपुर (khabragali) छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में महंत घासीराम स्मारक संग्रहालय में बनाए गए गढ़ कलेवा अब परिचय का मोहताज नहीं हैं, वजह वहां दोपहर से लेकर शाम तक उमड़ी भीड़ इस बात का सबूत देती है। गढ़ कलेवा में गाँव का माहौल ढ़ाला गया है। यहां छत्तीसगढ़ के सारे परंपरागत व्यंजन मिलते हैं। लेकिन कल से लगे एक बोर्ड ने जिसमें लिखा है कि शासकीय आदेशानुसार गढ़ कलेवा 30 अक्टूबर से बंद हो रहा है, यह बोर्ड़ वहां आने वालों को चौंका भी रहा है और दुखी भी, फिर अब कहां ऐसे सुकुन के पल छत्तीसगढ़ी व्यंजन के साथ मिलेंगे। 

अब होश में आई है सरकार 

महंत घासीदास संग्रहालय परिसर में स्थित गढ़ कलेवा से किराया वसूलने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार अब होश में आई है। पिछले 3 सालों से मोनिषा महिला स्व सहायता समूह की ओर से गढ कलेवा का संचालन किया जा रहा था, लेकिन पिछली सरकार के समय से अब तक संस्कृति विभाग के किसी भी अधिकारी ने गढ़ कलेवा से सरकार के राजस्व का हिस्सा नहीं लिया। अब विभाग की ओर से गढ़ कलेवा के संचालक को तीन साल का किराया पटाने का नोटिस भेजा गया है। प्रश्न तो ये उठता है कि आखिर पिछली सरकार के समय भी इस तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया गया। किस आधार पर गढ़ कलेवा का अनुबंध किया गया था और संचालन सौंपते समय संचालक समूह को सारी जानकारी क्यों नहीं दी गई ? 

हर जिला मुख्यालयों में गढ़-कलेवा खुलने की घोषणा की थी मंत्री ने

संस्कृति और पर्यटन मंत्री ताम्रध्वज साहू ने  पिछले दिनों यह घोषणा की थी कि यहां छत्तीसगढ़ की संस्कृति के विस्तार के लिए अब हर जिला मुख्यालयों में गढ़-कलेवा शुरू किया जाएगा। जहां आम नागरिक छत्तीसगढ़ व्यंजन का आनंद ले सकेंगे। संस्कृति के विकास पर चर्चा के लिए कलाकारों को संस्कृति भवन का सभागार भी उपलब्ध कराया जाएगा।

जाने गढ़ कलेवा को

Gadh kalewa thali

26 जनवरी, 2016 में स्थापित गढ़ कलेवा की अपनी खासियत है। गढ़कलेवा का संचालन मोनिशा महिला स्वसहायता समूह नामक एक संस्था द्वारा किया जा रहा है जो मार्च 2016 से इसका संचालन कर रही  है।  यहां काम करने वाली अधिकांश  कर्मचारी महिलाएं हैं| ये एक छत्तीसगढ़ी ठीहा है, जहां सिर्फ छत्तीसगढ़ी व्यंजन ही मिलते हैं और वो भी पारंपरिक। यहां हर एक त्योहार में अलग पकवान बनते हैं।  गढ़कलेवा रोज सुबह 11:00 बजे से खुल जाता है, और रात को 8:00-9:00 बजे तक यहां लोग आते रहते हैं। गढ़कलेवा का संचालन मोनिशा महिला स्वयं सहायता समूह संस्था द्वारा किया जा रहा है और यहां काम करने वाले अधिकतर लोग या कर्मचारी महिलाएं हैं।खाद्य पदार्थों को परोसने के लिए भी छत्तीसगढ़ के पारंपरिक संस्कृति में इस्तेमाल किए जाने वाले कांसे और पीतल के बर्तनों की व्यवस्था की गई है | इस स्थान पर जहां बस्तर के मुरिया जनजाति के कलाकारों ने लकड़ी पर कारीगरी के आधार पर मनमोहक सौन्दर्य का अंकन किया है, वहीं सरगुजा अंचल के कारीगरों ने मिट्टी के रिलीफ वर्क और जाली, तथा अपनी पारंपरिक लिपाई-पुताई के विभिन्न नमूनों को दीवार पर अंकित कर, बहुत ही सुन्दर वातावरण की रचना की है |  युवा वर्ग के बीच इस परिसर का विशेष आकर्षण है, जहाँ पर वे आउटिंग के साथ छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के आस्वादन के लिए अक्सर और काफी तादाद में आते हैं। गढ़ कलेवा के ज्यादातर व्यंजन चावल से ही बनते हैं। खाजा, बीड़िया, पिडीया, देहरौरी, पपची, ठेठरी, खुर्मी सदृश्य दर्जनों तरह के सूखे नाश्ते की वस्तुओं तथा मिठाइयाँ और ननकी या अदौरी बरी, रखिया बरी, कोंहड़ा बरी, मुरई बरी, उड़द दाल, मूंग दाल और साबूदाना के पापड़, मसाला युक्त मिर्ची, बिजौरी, लाइ बरी और कई तरह के अचार सम्मिलित हैं।

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