
स्कूल ने अगर दामिनी एप और तड़ित चालक का उपयोग किया होता तो मासूम की मौत नहीं होती।
रायपुर (खबरगली) रायपुर में 10 सितंबर को स्कूल के खेल मैदान में खेलने के दौरान गाज गिरने से मासूम बालक की मौत की घटना बेहद दुखद है और परिवार को अपूरणीय क्षति हुई है। इसको लेकर रायपुर के नितिन सिंघवी ने प्रश्न पूछा कि इसका जिम्मेदार शासन है या स्कूल प्रशासन या इस मौत को और उसी दिन गाज से हुई अन्य दो मौतों को एक्ट ऑफ गॉड कहकर भुला दिया जाएगा। मासूम बालक या उसके माता-पिता को तो मालूम ही नहीं होगा कि जलवायु परिवर्तन, तापमान और आर्द्रता में वृद्धि और कुछ स्थानीय कारणों के चलते देश में 2019-20 से 2022-23 के बीच बिजली गिरने की घटनाएँ लगभग 53% बढ़ी हैं, कुछ राज्यों में 300% से अधिक। अगर हम लोगों में जलवायु परिवर्तन के संबंध में जागरूकता पैदा करते, स्कूल अगर दामिनी एप का उपयोग करता, वहां तड़ित चालक (लाइटनिंग अर्रेस्टर) लगा होता तो मासूम की मौत नहीं होती। हमारे अधिकतम अधिकारी जलवायु परिवर्तन के डिनायर हैं। जलवायु संकट से निपटने की तैयारी करने की बजाय वे अभी भी लोगों की इलेक्ट्रिक व्हीकल जैसी ग्रीनवॉशिंग करने में लगे हुए हैं।
जलवायु परिवर्तन के संबंध में समय-समय पर आवाज़ उठाने वाले सिंघवी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन अब जलवायु परिवर्तन नहीं रहा है, यह जलवायु संकट बन गया है। मुख्यत: इसके कारण छत्तीसगढ़ सहित भारत के मैदानी इलाकों में गाज गिरने की घटनाएँ बढ़ रही हैं। गाज गिरने से देश में 2022 में पिछले 14 वर्षों की सर्वाधिक 907 मौतें हुईं। 2025 में 10 से 12 अप्रैल (तीन दिन) के दौरान मध्य और पूर्व भारत में 126 मौतें गाज गिरने से हुईं, जिनमें 6 मौतें छत्तीसगढ़ में हुईं। वैज्ञानिक आकलनों के अनुसार भारत के मैदानी क्षेत्रों जैसे छत्तीसगढ़ में तापमान बढ़ने पर भविष्य में गाज गिरने की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है।
क्या करना चाहिए स्कूल प्रशासन को
गाज गिरने से हुई इस मासूम मौत से सबक लेते हुए प्रत्येक स्कूल प्रशासन को यह सीखना चाहिए कि सिर के ऊपर काले, खतरनाक बादल मंडराते दिखने और बिजली चमकते दिखने, कड़कने से पहले ही बच्चों को तत्काल स्कूल के भवन में आने की हिदायत पहले से ही देकर रखी जाए, उन्हें हर हाल में सुरक्षित किया जाए। प्रत्येक स्कूल भवन में तड़ित चालक लगाना अनिवार्य किया जाए। जलवायु परिवर्तन को एडॉप्ट करने के तरीक़े बताए जाएँ और बादलों के समय दामिनी ऐप से बार-बार जानकारी ली जाए।
ग्रामीण इलाकों में क्या करना होगा
केंद्र शासन के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने गाज गिरने की संभावना की जानकारी देने के लिए दामिनी नामक ऐप बना रखा है, परंतु ग्रामीणों को इसे चलाना और समझना कठिन होगा। यह जीपीएस आधारित है, इसलिए जहाँ मोबाइल कनेक्टिविटी और डेटा नहीं है, वहाँ यह काम नहीं करेगा। सभी ग्रामीण स्मार्टफ़ोन भी नहीं रखते। इसलिए अब प्रत्येक गांव स्तर तक हमें अर्ली वार्निंग सिस्टम की व्यवस्था करनी चाहिए, जैसे सायरन बजाना इत्यादि। दामिनी ऐप का भी व्यापक प्रचार-प्रसार होना चाहिए। पंचायत भवन, स्कूलों, आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य केंद्रों पर लाइटनिंग अरेस्टर लगाया जाए। ग्रामीण परिवारों को समझना होगा कि कच्चे मकान, पेड़ के नीचे, खेत और तालाब-नदी किनारे गाज गिरने के समय खड़ा होना घातक हो सकता है। खुले में हों तो दोनों पैर जोड़कर झुककर उकड़ू बन बैठ जाएँ।
अब क्या करना है
पहले गाज गिरने की घटनाएँ ग्रामीण इलाकों में ज़्यादा सुनने में मिलती थीं, परंतु अब शहरी इलाकों में भी गाज ज़्यादा गाज गिरने लगी है। इसलिए उच्च भवनों, स्कूलों, अस्पतालों और सरकारी/निजी कार्यालयों में लाइटनिंग अरेस्टर लगाए जाएँ। बादल जब गरज रहे हों और गाज गिरने की संभावना हो तो पेड़ के नीचे, खुले मैदान, छत पर, बिजली के खंभे या मोबाइल टावर के पास न खड़े हों। बाइक, साइकिल, स्कूटर और खुली गाड़ियाँ रोककर सुरक्षित जगह पर चले जाएँ। कार में काँच बंद रखें। कार में रहते समय धातु के हिस्सों जैसे दरवाज़े के हैंडल को न छुएँ। यदि संभव हो तो कार को खुले मैदान या पेड़ों के पास न रोकें। बिजली कड़कने तक कार में ही रहें और बाहर न निकलें। मोबाइल-लैपटॉप चार्जिंग से डिस्कनेक्ट कर दें और बिजली उपकरण बंद कर दें। गीली वस्तुओं/कपड़ों से दूर रहें।
अर्ली वार्निंग सिस्टम
सरकार को खुद का प्रादेशिक ऐप विकसित करते हुए पंचायत और गांव स्तर तक मोबाइल फोन से चेतावनी देने का अलर्ट सिस्टम भी बनाना होगा। सर्वर में जगह लेकर और एआई का सहयोग लेकर ऑटोमैटिक सामूहिक फोन सिस्टम विकसित किया जा सकता है।
अब चरम मौसमी घटनाओं के लिए के लिए तैयार रहें
सिंघवी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन रोकने की खिड़की बंद हो चुकी है। इससे अब चरम मौसमी घटनाओं और तीव्रता में वृद्धि होंगी— जैसे ज़्यादा दिनों की तीव्र हीट वेव, अचानक बहुत पानी गिरना और कई जगहों पर बरसात ही नहीं होना, अकाल पड़ना, गाज गिरना, अत्यधिक ठण्ड, मानसून फेल होना इत्यादि। हम इससे निपटने की तैयारी करने में अब तक असफल रहे हैं।
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