वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे : आत्महत्या से बचाव एवं समाज की जिम्मेदारी

World Suicide Prevention Day: Prevention of suicide and responsibility of society Article by Dr. Gargi Pandey, Child Psychologist and Counselor, Sahitya Desk, Raipur, Chhattisgarh, Khabargali

डॉ गार्गी पांडेय, चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट एंड काउंसलर का आलेख

साहित्य डेस्क (खबरगली) मानव जीवन अमूल्य है। फिर भी विडंबना यह है कि आज के आधुनिक समाज में मानसिक तनाव, असफलताओं, अकेलेपन और अवसाद जैसी स्थितियों से ग्रसित होकर अनेक लोग आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम उठा लेते हैं। प्रत्येक वर्ष 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day) मनाया जाता है, ताकि लोगों में इस समस्या के प्रति जागरूकता लाई जा सके और जीवन के महत्व को समझाया जा सके। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि आत्महत्या कोई व्यक्तिगत समस्या भर नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का विषय है।

आत्महत्या: एक बढ़ती हुई वैश्विक चुनौती

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर वर्ष लगभग 7 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। यह आंकड़ा बताता है कि हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति अपनी जीवनलीला समाप्त कर देता है। आत्महत्या 15 से 29 वर्ष की आयु वर्ग में मृत्यु का प्रमुख कारणों में से एक है। भारत जैसे विकासशील देश में यह समस्या और गंभीर रूप धारण कर रही है। छात्रों में परीक्षा का दबाव, किसानों में ऋणग्रस्तता, महिलाओं में घरेलू हिंसा और बुजुर्गों में अकेलापन – ये सभी कारण आत्महत्या की बढ़ती दरों के लिए उत्तरदायी हैं।

आत्महत्या के प्रमुख कारण

आत्महत्या कोई आकस्मिक निर्णय नहीं होता, बल्कि यह लंबे समय तक चले मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक संघर्षों का परिणाम है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:

1. मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ – अवसाद (Depression), चिंता (Anxiety), बाइपोलर डिसऑर्डर, नशे की लत।

2. पारिवारिक व सामाजिक दबाव – घरेलू कलह, उपेक्षा, रिश्तों में टूटन, सामाजिक तिरस्कार।

3. आर्थिक असुरक्षा – बेरोजगारी, गरीबी, कर्ज।

4. शैक्षिक दबाव – असफलता, प्रतियोगिता की होड़, कैरियर को लेकर अनिश्चितता।

5. कलंक (Stigma) – मानसिक रोगों और काउंसलिंग को लेकर समाज में फैली नकारात्मक सोच।

6. अकेलापन और अलगाव – तकनीक के युग में भौतिक संपर्क बढ़ने के बावजूद भावनात्मक दूरी।

आत्महत्या के लक्षणों की पहचान

अक्सर आत्महत्या की प्रवृत्ति रखने वाले व्यक्ति कुछ संकेत देते हैं जिन्हें समय रहते पहचानना जरूरी है। जैसे: जीवन समाप्त करने की बार-बार चर्चा करना। अत्यधिक उदासी या निराशा। सामाजिक गतिविधियों से दूरी बनाना। नींद और भूख की अनियमितता। नशे का अधिक सेवन। अचानक चुप्पी या व्यवहार में बड़ा परिवर्तन। इन लक्षणों को हल्के में लेना खतरनाक साबित हो सकता है।

आत्महत्या से बचाव के उपाय

आत्महत्या रोकने के लिए बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता है:

1. मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच – हर स्तर पर काउंसलिंग, थेरेपी और हेल्पलाइन उपलब्ध कराना।

2. परिवार की भूमिका – बच्चों और युवाओं को सुनना, उनसे संवाद करना, भावनात्मक सहारा देना।

3. शैक्षिक संस्थानों की जिम्मेदारी – परीक्षा और करियर को लेकर छात्रों पर अत्यधिक दबाव न डालना, मानसिक स्वास्थ्य कक्षाएँ चलाना।

4. मीडिया की संवेदनशीलता – आत्महत्या की खबरों को सनसनीखेज़ ढंग से न दिखाकर सकारात्मक विकल्प सुझाना।

5. सरकारी प्रयास – आत्महत्या रोकथाम के लिए राष्ट्रीय नीतियाँ बनाना, मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना।

6. समुदाय का सहयोग – जागरूकता अभियान, सपोर्ट ग्रुप, परामर्श शिविर।

समाज की जिम्मेदारी

आत्महत्या केवल व्यक्ति की विफलता नहीं है, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है। हमें संवेदनशीलता और सहानुभूति बढ़ानी होगी। मानसिक बीमारियों को शर्म या कमजोरी मानने की बजाय चिकित्सा योग्य समस्या समझना होगा। युवाओं को यह सिखाना होगा कि असफलता जीवन का अंत नहीं, बल्कि सीखने और आगे बढ़ने का अवसर है। पड़ोस, मित्र और सहकर्मी भी ऐसे लोगों की मदद कर सकते हैं जो अकेलापन महसूस करते हैं। समाज में संवाद, सह-अस्तित्व और सहयोग का वातावरण बनाना अत्यंत आवश्यक है आत्महत्या रोकथाम केवल चिकित्सकों, परामर्शदाताओं या सरकार का कार्य नहीं है, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। यदि हम समय रहते संकेतों को पहचानें, संवाद करें और सहयोग दें तो असंख्य जिंदगियाँ बचाई जा सकती हैं। “जीवन अनमोल है। आत्महत्या कभी समाधान नहीं, बल्कि संवाद, सहारा और संवेदना ही सच्चा रास्ता है।”

- डॉ गार्गी पांडेय, चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट एंड काउंसलर रायपुर छत्तीसगढ़, संपर्क : +91 98271 41311