प्रधानमंत्री ने कहा इतना दिशाहीन विपक्ष कभी नहीं देखा
जागरुक लोग ट्विटर पर आरोपी सांसदों पर निकाल रहे भड़ास
समान नागरिक संहिता, पैसेंजर ट्रेन में एक्सप्रेस किराया , ट्रेनों को सही समय से चलाना जैसे मुद्दे मुंह बाएं खड़े हैं
नई दिल्ली /रायपुर (khabargali) भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा मंदिर हैं। यहां तमाशेबाजी होना नहीं चाहिए। अभी देशकाल समाज शासन प्रशासन लोकसभा लेवल की जन समस्याएं मुंह बाएं खड़ी हैं। वहां हंगामा मचाते हुए विपक्षी सांसदों के द्वारा संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चलने दी जा रही है। जब सरकार किसी मुद्दे पर बहस चर्चा के लिए तैयार है तो हंगामेबाजी क्यों।
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह तमाशा पिछले कई वर्षों से देखने में आ रहा है। शायद ही कोई ऐसा सत्र रहा हो जिसमें रोजाना निर्धारित कार्यवाही सफलतापूर्वक संपादित की जा सकी हो। संसद की गरिमा विहीन होते देख वोटर दुखी हैं। आखिरकार जनसमस्याओं को लेकर बड़ी उम्मीदों के साथ सांसद को छोड़कर दिल्ली भेजा जाता है। वे संसद के कीमती समय को क्यों बर्बाद कर रहे हैं। इसे लेकर आम लोगों में शिकायत बढ़ती जा रही है।
मणिपुर मुद्दे को लेकर विपक्ष के द्वारा सरकार के खिलाफ लाया गया प्रस्ताव भी धराशाई हो गया। साफ है कि विपक्ष से ज्यादातर सांसद सहमत नहीं हैं। सरकार ने विपक्ष को चर्चा के लिए बुलाया लेकिन विपक्षी सांसद इस मुद्दे पर बहस हुए बिना प्रधानमंत्री की ओर से वक्तव्य देने की मांग कर रहे हैं। संसद ठप की जा रही है। इस हठधर्मिता के चलते ना केवल देश की संसद का कीमती समय बर्बाद हो रहा है बल्कि संसदीय क्षेत्रों की जन समस्याएं भी यथावत बनी हुई हैं। जिन पर निर्णय लिए जाने का काम संसद का होता है।
ख़बरगली ने नागरिकों से इस विषय में प्रतिक्रिया जाननी चाही तो फूटा गुस्सा...
शिक्षक संस्कार श्रीवास्तव ने आम आदमी पार्टी के निलंबित सांसद संजय सिंह के आचरण पर आपत्ति जताई है। उनके ट्वीटर पर जमकर भड़ास निकाली। उन्होंने कहा कि जिस तरह से इस सांसद ने हंगामा किया और दूसरी बार निलंबित हुए हैं। इस तरह का आचरण जनता को जनप्रतिनिधियों से अपेक्षित नहीं होता है। यदि सांसद हंगामा कर ऐसे ही संसद को ठप करते रहेंगे तो वोट देने का महत्व नहीं रह जाएगा।
प्राइवेट जॉब करने वाले राजेंद्र सिंह ठाकुर का कहना है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। संसद का सत्र वह मूल्यवान समय होता है जब विभिन्न संसदीय क्षेत्रों की जन समस्याओं का निराकरण सभी पार्टी के सांसद मिलकर करते हैं। हर बार विपक्षी सांसदों के हंगामे के कारण संसद का सत्र महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय लिए बिना ही समाप्त हो जाता है। सभी सांसदों को संसदीय गरिमा को ध्यान में रखते हुए पूरे शालीनता के साथ अपनी बात लोकसभा स्पीकर के सामने रखनी चाहिए। इस तरह के तमाशेबाजी उचित नहीं है।
रिटायर्ड आफिसर एसएम श्रीवास्तव कहते हैं कि संसद के अंदर बहस करते सांसद किसी कोर्ट के प्रति उत्तरदाई नहीं होते। यह ताकत उसे संविधान की आर्टिकल 105 (2) के तहत मिली हुई यानी सांसद में कहीं गई बात को कोर्ट में चले नहीं किया जा सकता लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सांसदों को संसद में कुछ भी करने की छूट मिली हुई है। एक सांसद जो कुछ भी कहता है तो राज्यसभा और लोकसभा के दूर बॉक्स कंट्रोल होता है इस पर सिर्फ लोकसभा स्पीकर राज्यसभा के सभापति ही कार्रवाई कर सकते।
उमाशंकर सोनी का कहना है कि पिछले 3 साल से देश भर की पैसेंजर ट्रेनों में एक्सप्रेस जैसा किराया लिया जा रहा है। माल गाड़ियों को प्राथमिकता देते हुए लंबी दूरी की यात्री ट्रेनों को आधा दिन 1 दिन लेट चलाया जा रहा है। यह ऐसे मुद्दे हैं जिनको सभी सांसदों को उठाना चाहिए आखिर उन्होंने वोट किस बात के लिए लिया है।
राजकरण सिंह कहते हैं कि सांसदों को दूसरे सांसदों के भाषण को बाधित नहीं करना चाहिए। शांति बनाए रखना चाहिए । बहस के दौरान टिप्पणी करके संसद की कार्यवाही में बाधा नहीं डालनी चाहिए । विरोध के नए स्वरूप के कारण 1989 में इन नियमों को इसमें शामिल किया गया था ।अब संसद में नारेबाजी करना , तख्तियां दिखाना , विरोध में दस्तावेजों को फाड़ना और सदन में कैसेट टेप रिकॉर्डर बजाने जैसी मनाही कर दी गई है लेकिन इन संसदीय संहिता गरिमा की अवहेलना करते दिखाई दे रहे हैं जो बड़ा अशोभनीय लगता है।
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