लेख :लोकतंत्र में नेताओं के 'सत्ताग्रह' और 'तथाकथित सत्याग्रह' के बीच पीड़ित " लोक "

Mamta and modi

रायपुर(khabargali) अन्वेषण ब्यूरो (सी.बी.आई) द्वारा शारदा चिट फंड घोटाले और रोज वैली कम्पनी घोटालों की जाँच हेतु बंगाल में छापे की कारवाई के मुद्दे को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार और केन्द्र सरकार के बीच अनावश्यक टकराव की जो स्थिति संसदीय लोकतंत्र को अंगूठा दिखाती प्रतीत हो रही थी, वह लोकसभा चुनाव, 2019 के अंतिम चरण तक आते-आते तो मानो लोकतंत्र की हत्या करने को उतारू हो गई। राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा इस त्रासद घटनाक्रम के ज़िम्मेदार माने जाने वाले दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ने पहले ही आरोप-प्रत्यारोप के दौरों से वातावरण को विस्फोटक बना रखा था। इस सप्ताह में तो वहाँ सभ्य समाज को शर्मसार करने वाली दुर्घटानाओं ने भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी। चुनावी रैलियों के अवसर पर होने वाली हिंसा, आगज़नी, अराजकता और उपद्रव की घटनाएं तो लोकतंत्र का दम घोटने में लगी हैं, मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार भाजपा का कहना है कि - उनके उम्मीदवारों पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार जानलेवा हमले किये जा रहे हैं, भाजपा नेताओं को चुनावी रैलियों की अनुमति नहीं मिल रही और रैलियों की व्यवस्था में बाधाएं उत्पन्न की जा रही हैं, मतदाताओं को वोट करने से रोका जा रहा है, यहाँ तक कि नेताजी सुभाषचन्द्र के प्रपौत्र को भी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने नहीं छोड़ा। भाजपा अध्यक्ष के चुनावी रोड़ शो पर हमला कर उन्हें डराने-धमकाने की भरसक कोशिश की गई आगज़नी और मार-पीट की घृणित, विध्वंसकारी घटनाओं को अंजाम दिया गया, और तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि उसकी आवाज को दबाया जा रहा है। जो उसके लिये असह्म है। ध्यान देने योग्य बात है कि ऐसे विध्वंसकारी घटनाक्रमों में नुकसान तो ‘लोक’ का ही होता है, ‘जनता’ का ही होता हैं। थोड़ी राहत की बात है कि चुनाव आयोग ने संज्ञान लेते हुए इस क्षेत्र में तय सीमा से 19 घंटे पहले ही चुनावी रैलियों ,जनसभाओं पर रोक के आदेश जारी कर दिये ताकि ऐसी अवांछनीय घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोका जा सके । इन पंक्तियों के लिखे जाने तक के घटना क्रम में चुनाव आयोग के इस कदम को कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों ने असंवैधानिक और राजनीतिक विद्वेष से प्रेरित बताया। स्मरणीय है कि शारदा चिट फंड घोटाले और रोज वैली घोटाले से पीड़ित पश्चिम बंगाल और असम सहित कई राज्यों के ठगे गए लाखों लोग जो लगभग आठ वर्षों से अपना पैसा वापस माँग रहे हैं, उन्हें रोने और पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिला। समाचार माध्यमों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इन दोनों घोटाले बाज कम्पनियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही तो दूर की बात है, स्वयं कोलकता पुलिस कमिश्नर ने ही घोटालों में शामिल लोगों को बचाने के लिये सूबूत और सारे दस्तावेज नष्ट कर दिये, यहाँ तक कि सुदीप्तो सेन का मोबाइल फोन भी नष्ट कर दिया बताया जाता है। इस मामले में सी.बी.आई के बहाने केन्द्र सरकार के विरूद्ध पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के धरने से हुई हलचल और बढ़ गई, जब पुलिस सेवा के 1968,1969 के नियमों को ताक पर रखते हुए मुख्यमंत्री का साथ देने के लिए कोलकता पुलिस कमिश्नर भी धरने पर बैठ गये। संसदीय लोकतंत्र में नेताओं के सत्ताग्रह - और सत्याग्रह के बीच जो अन्तर है, उसे देखकर भी अनदेखा किया जाना ‘‘लोकतांत्रिक प्रक्रिया’’ और ‘लोक’ दोनों के लिये अत्यंत घातक है। एक और घटनाक्रम स्मरणीय है जिसमें पश्चिम बंगाल स्थित उत्तर मिदनापुर के टी.एम.सी. उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिये बंगलादेश के फिल्म अभिनेता फिरदौस अहमद को आमंत्रित किया गया, जिसे प्रदेश की मुख्यमंत्री के साथ मंचों पर चुनाव प्रचार करते देखा गया। फिरदौस ‘‘बिजनैस वीजा’’ पर भारत आया, उस उद्देश्य को छोड़कर चुनाव प्रचार में लग गया। जिसके कारण ‘ब्यूरो आॅफ इमिग्रेशन’ की रिपोर्ट पर उसे भारत छोड़ने का आदेश दिया गया। संविधान की रक्षा के नाम पर चर्चा करें, तो आज देश की अधिकांश संस्थाओं पर विश्वास घटा , और सन्देह बढ़ता जा रहा है। धरने पर बैठी मुख्यमंत्री ( पश्चिम बंगाल ) का संघर्ष संविधान की रक्षा के लिये है, और यह उनकी आखिरी साँस तक जारी रहेगा। सारा विपक्ष संविधान की रक्षा के लिये मुख्यमंत्री महोदया के साथ है। केन्द्र सरकार ने अपने महा न्यायवादी (एटोर्नी जनरल) के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय को जानकारी दी कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री संविधान की धज्जियाँ उड़ा रही हैं, तब उसकी रक्षा के लिये सी.बी.आई के दल को सर्वोच्च न्यायलय के आदेशानुसार कोलकत्ता भेजा गया, उसका क्या हश्र हुआ, यह दोहराने की आवश्यकता नहीं। प्रश्न यह है कि संविधान को खतरा किनसे है और संविधान की रक्षा कैसे हो ? अकेली मुख्यमंत्री को दोष देकर कर्तव्य की इतिश्री मान लेना उचित नहीं । समस्याओं की जड़ों तक जाकर समाधान खोजने चाहिए। विचारणीय प्रश्न यह भी हैं कि कभी जनहित के लिये ऐसी सर्वदलीय एकता क्यों नहीं दिखाई देती। पूरे घटनाक्रमों में जनसंचार के अधिकांश माध्यम केन्द्र-राज्य सरकारों और सी.बी.आई के क्रियाकलापों को तो खूब प्रचारित कर रहे है, किन्तु उक्त कम्पनियों से धोखा खाए लोगों की पीड़ा भी तो वैसे ही उजागर होनी चाहिए। शारदा चिटफंड कम्पनी और रोज वैली कम्पनी से ठगे गए लाखों लोगों को उनके जीवन भर की खून-पसीने की कमाई घोटाले बाजों से वापस दिलाने के लिये, उन पीड़ितों की पीड़ा और वेदना कम करने पर कोई काम क्यों नही होता । रैलियों , जनसभाओं इत्यादि के अवसर पर आगज़नी और मारपीट के कारण होने वाले जनमाल के नुकसान से पीड़ित लोगों का रूदन व्यवस्था, को तंत्र को दिखाई क्यों नहीं देता। लोकतंत्र में " लोक " को ही धोखे पर धोखा, धोखे पर धोखा ..।

-उर्मिला देवी उर्मि ,साहित्यकार ,समाज सेवी ,शिक्षाविद् 

(यह लेखक के निजी विचार है)