मजदूरों की ज़िंदगी में उजाला कब..?

 श्रमवीर दिवस

 श्रमवीर दिवस पर -उर्मिला देवी "उर्मि" का विशेष लेख एवं कविता

रायपुर (खबरगली) मजदूरों की बेहतरी के लिये कार्यरत ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना, आम आदमी बीमा योजना कर्मचारी राज्य बीमा निगम, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, आदि योजनाओं के द्वारा अंसंगठित क्षेत्र के गरीबी रेखा के नीचे वाले कामगार, फेरीवाले, बीडी-श्रमिक घरेलू श्रमिक आदि लाभान्वित हो रहे हैं। आम आदमी बीमा योजना के अन्तर्गत ग्रामीण भूमि हीनों को मृत्यु और विकलांगता के मामले में लाभ दिया जा रहा है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने अपने 60 मिलियन लाभार्थियों के विवरण कम्प्यूटरीकृत करने के उपाय किये हैं जिनसे इन सेवाओं की गुणवत्ता में बहुत सुधार आयेगा।
    इतना सब होने के बावजूद मजदूर की दुर्दशा  आज भी जस की तस है। सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के दावे सरकारों  द्वारा समय-समय पर किये जाते है , किन्तु श्रमवीर की पीड़ा को कम करने की दृष्टि से वास्ताविक धरातल पर कोई काम होता दिखाई नहीं देता ऐसा विभिन्न मजदूर संगठनों का मानना है। मजदूर की पीड़ा को सुनकर, देखकर पूँजीपतियों और सरकारों का दिल  पिघलता दिखाई नहीं देता। मजदूरों के अतुल्य योगदान और दर्द को थोड़ा समझने के लिये उन्हीं से हुई बातचीत का कुछ विवरण -
    दीदी  !    ---   मैं मजदूर समाज के निर्माण में नींव र्की ईंट के समान हूँ। जन्म से लेकर मृत्यु तक तक मैं दूसरों की सुख-सुविधा के लिये निरंतर काम में लगा रहता हूँ। संसार की प्रत्येक वस्तु मैंने अपने श्रम से बनाई है। छोटी सी सुई से लेकर बड़े से बड़े जहाज को बनाने में मेरे योगदान को देखिए तो। नदियों की तेज बहती धाराओं को रोककर उन पर मैंने बाँध बनाए। बंजर धरती को मेरे ही श्रम ने तो उपजाऊ भूमि में बदला ह। जब-जब आवश्यकता हुई मैंने वनों को काटकर जोतकर वहाँ हरी-भरी फसल तैयार की, खदानों से बहुमूल्य खनिज निकाल कर दिये, खेतों में सभी प्रकार के खाद्यान्न उपजाए, कारखानों में काम कर तरह-तरह की समाजोपयोगी वस्तुएं तैयार कीं , कारखानों में मैंने हथियारों का निर्माण किया।
 क्या कभी समाज ने इस तरफ ध्यान दिया है कि पूरा संसार जब सोया रहता है, तब भी मैं दूसरों के लिये काम में लगा रहता हूँ। सबके लिये भवन बनाकर देता हूँ किन्तु मेरे पास रहने के लिये कभी घर नहीं हाता, दूसरों के लिये बढ़िया वस्त्र तैयार करता हूँ, किन्तु मेरे पास गरमी, सर्दी, वर्षा से बचने के लिये पर्याप्त कपड़े नहीं होते, सबके लिये मेरी मेहनत स्वादिष्ट खाद्य-सामग्री तैयार करती है, किन्तु मुझे तो कभी भरपेट  भोजन नहीं मिलता है।
       सारे भूमण्डल का भार मुझ मजदूर पर है। चट्टानें काटकर खदानों से सोना, चाँदी, हीरे इत्यादि निकालकर मैंने जिन मालिकों को दिये उनका जीवन सुख-सुविधाओं और रोशनी से भरपूर हुआ, किन्तु उस रोशनी के नीचे देखिए मजदूर की ज़िन्दगी तो गहरी  काली-अधियारी है। मजदूर की ज़िन्दगी में  न जाने कब उजाला आयेगा ।  संसार की सभी छोटी-बड़ी वस्तुओं के उत्पादन में मुझ मजदूर की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है, परन्तु मैं खुद हमेशा अभावग्रस्त जीवन जीने के लिये मजबूर किया जाता हूँ।
 ज़रा सोचिए-मजदूर यदि विद्रोह कर दे तो, यह संसार लड़खड़ा कर गिर पड़ेगा। मैं यदि काम करना बन्द कर दूँ तो संसार के सभी कार्य-व्यापार बन्द हो जायेंगे। मैं मजदूर तो संसार को निस्वार्थ भाव से प्रकाशित करने वाले सूरज की तरह निरंतर अपने सुख-दुख की परवाह किये बिना काम करता रहता हूँ। किन्तु कभी समाज इस तरफ भी ध्यान दे कि जिस मजदूर के परिश्रम के कारण दुनिया मौज करती है, उस मजदूर का अपना जीवन नारकीय है, उसके भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, रहन-सहन के स्तर को थोड़ा भी सुधारने के लिये न तो मिल मालिक और न सरकारें विचार करती हैं। मजदूर के लिये तो उपेक्षापूर्ण भाव होता है....मजदूर ही तो है-- वह  हर हाल में सब काम कर लेगा--  उसे सुविधाओं की क्या आवश्यकता --मजदूर ही तो है..
        मजदूर की इन बातों ने सोचने पर विवश किया  सचमुच यदि मजदूर काम करना बन्द कर दें, तो करोड़ो वर्षों की इस मानव सभ्यता के भव्य भवन को चरमरा कर ध्वस्त होने में समय नहीं लगेगा।  इसलिए मजदूरों   की उपेक्षा का रवैया छोड़ कर उनकी दशा में सुधार के लिये निश्चित ही काम होना चाहिए। हमारे उद्योगों, श्रमिकों और सरकार को सद्भावनापूर्ण वातावरण में और भागीदारी की भावना से काम करना है और ऐसा करके ही हम तेज़ और सर्वसमावेशी आर्थिक प्रगति का लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे। अतः इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये ही सही..  मजदूरों की समस्याओं के समाधान के लिये ईमानदारी पूर्वक  काम करने की आवश्यकता है  ,इसे पूरे समाज को समझ लेना चाहिए और मजदूरों के योगदान का सही आकलन भी करना चाहिए।

 

एक कविता ..   
                       
मजदूर

हे   श्रमवीर.                   
तेरा  श्रम जग  की               
है    तकदीर.                    
बनाता  घर .               
सबके  लिए, पर              
 ख़ुद.बेघर.               


है मजदूर.                  
सदा  भूखा  सोने  को           
ये मजबूर।

मजदूर की दुर्दशा
 सुधारती है    
दूसरों की दशा ।

मजदूर का परिश्रम
किसी हाल में  
नहीं होता कम ।
 
करता काम.           .
बिना   किये   ख़ुद          
थोड़ा आराम ।               

मजदूर का देखो दम
परहित कारण
काम.करे हर दम ।

है  ये  विश्वास.            
मिटेगी     भूख     और.       
मिटेगा  त्रास।    
   
 भूमंडल  का  भार
 उठाता है मजदूर
बिना  किए विचार
          
✍ -उर्मिला देवी "उर्मि"
लेखिका , समाज सेवी, शिक्षिका @ 9424212670
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