ग़ज़ल 1
चेहरा. नहीं बदलते हम....
किसी गली से ये रिश्ता नहीं बदलते हम .
तुम्हारे बाद भी रसता नहीं बदलते हम.
खुली किताब के जैसी है जिंदगी अपनी,
किसी के सामने चहरा नहीं बदलते हम.
जो जैसा है उसे वैसा ही हमने चाहा है,
मुहब्बतों में ये सिक्का नहीं बदलते हम.
वफ़ा की राह के पक्के हैं हम मुसाफ़िर ,
मिलें न मंजिलें ,रसता नहीं बदलते हम.
किसी कनेर के फ़ूलों से सुर्ख होंठ उसके,
गुलों से आज भी रिश्ता नहीं बदलते हम.
हरेक शख्स को यकसाँ नज़र से देखा है,
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