चाह

राधिका मिश्रा 'मनखुश ' की तीन अद्भुत श्रृंगारिक रचनाऐं

ख़बरगली @ सहित्य डेस्क

                     चाह......

नहीं चाहिए ये आसमानी चाँद हमें, तुम बस अपनी मुलाकात का एक छोटा सा सितारा दे दो,

थक से गए जिंदगी के धारों मे बह बह के बस ज़रा सा अपने जज्बातों का किनारा दे दो।

शाम ओ सहर मैं तेरे इन्तजार मे गुजार दूँ, बस किसी रात तुम अपने आगोश का सहारा दे दो।

इस खामोश रात मे ये बरसते अब्र मेरे ही आसूं है, बस तुम मिलन की एक खुशी का कतरा दे दो।

मेरे जिस्म ओ कल्ब बस तेरे लिए ही है, तुम भी खुद पर कुछ हक हमारा दे दो।