*कलाओं की आवाजाही समृद्धि का प्रतीक है : जीवन यदु* *शहादत दिवस पर कविता पोस्टर प्रदर्शनी तथा गोष्ठी का आयोजन*

Arun katote

रायपुर। ( khabargali) कलाओं की एक दूसरे क्षेत्र में आवाजाही से इसका विस्तार होता है। पोस्टर के रूप में कविता न केवल नए अर्थ और फार्म में पाठक तक पहुंचती है, वरन इसमें पाठक अपने अर्थों को भी तलाशता है। साझा सांस्कृतिक मोर्चा के तत्वावधान में शहीद भगत सिंह शहादत दिवस पर कविता पोस्टर प्रदर्शनी तथा विचार गोष्ठी का आयोजन महाकोशल कला विथिका में किया गया। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार ललित सुरजन ने की। वरिष्ठ रंगकर्मी अरूण काठोटे द्वारा निर्मित कविता पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रदेश के चर्चित कवि एवं लोकप्रिय गीतकार जीवन यदु ने किया। उन्होंने कहा कि बिंबों और रंगों के माध्यम से अभिव्यक्त कविताएं व्यापक रूप में आमजन तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम है। पाठक के मन मस्तिष्क पर यह गहरे अर्थों में दस्तक देती है। भगत सिंह के संदर्भ में आनंद की व्याख्या को उन्होंने पौराणिक कथा के माध्यम से परिभाषित करते हुए वर्तमान समय में उनके विचारों को अत्यधिक प्रासंगिक बताया। इसके बाद भगत सिंह और हमारा समय विषय पर गोष्ठी आयोजित की गई। डॉ. विप्लव बंदोपाध्याय ने कहा कि भगत सिंह क्रांतिकारी होने के साथ मानवता से परिपूर्ण थे। सुखदेव के नाम जो उन्होंने पत्र लिखा उसका जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि असेंबली में बम फेंकने की जिम्मेदारी खुद भगत सिंह ने स्वीकार की। वे आजाद भारत में नई व्यवस्था के समर्थक थे, जिसमें सभी वर्ग को इसका लाभ मिले। इस संदर्भ में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के घोषणापत्र का उल्लेख किया। तुहीन देव ने कहा कि भगत सिंह असल में आज के युवाओं के प्रेरणास्त्रोत होने चाहिए। महज 23 बरस की उम्र में उन्होंने क्रांति की जैसी मिसाल पेश की उसकी आज ज्यादा जरूरत है। कारपोरेट तंत्र में अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है। क्या ऐसे समय के लिए ही भगत सिंह ने शहादत दी? उन्होंने जिस व्यवस्था की खिलाफत की, आज हालात क्या बदले हैं? आज जब विचारों को ही दबाया जा रहा है, तब हम कैसे अच्छे दिन की कामना कर रहे हैं। एप्सो के सचिव अरुणकांत शुक्ल ने कहा कि यह कैसा समाज है जहां शहर में भगत सिंह की प्रतिमा से छेड़छाड़ की गई किंतु किसी ने भी इस पर आक्रोश व्यक्त नहीं किया। वर्तमान दौर पतन का स्वर्णयुग है। जबकि भगत सिंह व्यवस्था में समूचा बदलाव चाहते थे। व्यवस्था तब जैसी थी, आज भी वैसी ही है। नव उदारवाद की चंगुल में देश जकड़ता जा रहा है। ऐसे समय विचारों का आदान-प्रदान बेहद जरूरी है। अध्यक्षीय संबोधन में वरिष्ठ पत्रकार और साझा सांस्कृतिक मोर्चा के संयोजक ललित सुरजन ने इसमें शामिल संगठन इप्टा, प्रलेस, एप्सो, कसम, जलेस तथा जनम का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भगत सिंह के शहादत दिवस पर उपस्थित युवाओं से काफी उम्मीदें हैं। देश में न केवल इतिहास को तोड़ा मरोड़ा जा रहा है, वरन जात पात के नाम पर भी लोगों को विभाजित किया जा रहा है। ऐसे समय में प्रगतिशील संगठन एक मंच पर एकत्रित होकर आयोजन कर रहे हैं, यह वक्त की जरूरत है। आयोजन के प्रारंभ में इप्टा, रायपुर के अध्यक्ष मिनहाज असद ने अरूण काठोटे की कविता पोस्टर यात्रा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अरूण विगत चार दशकों से ज्यादा समय से इस विधा में काम कर रहे हैं। 80 के दशक में कविता चौराहे पर शीर्षक से प्रकाशित पोस्टर प्रदेशभर में चर्चित हुए। प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर के अध्यक्ष डॉ आलोक वर्मा ने नई विधा में निर्मित कविता पोस्टर के संदर्भ में अरूण की लगन और समर्पण का जिक्र किया। शेखर नाग और साथियों ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का लिखा जनगीत 'बोल कि लब आजाद हैं तेरे' प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन प्रगतिशील लेखक संघ रायपुर के सचिव संजय शाम ने तथा आभार प्रदर्शन इप्टा रायपुर के सचिव अरूण काठोटे ने किया। आयोजन में बड़ी संख्या में दर्शक एवं श्रोता उपस्थित थे।

 

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वरिष्ठ साहित्यकार और कवि गिरीश पंकज जी की कलम से आयोजन पर लिखित टिप्पणी

*वर्तमान के साथ जीवंत संवाद करते अरुण के कविता पोस्टर* 

आठवें दशक के शुरू में रायपुर के जयस्तंभ चौक पर कविता पोस्टर प्रदर्शनी की शुरुआत हुई थी। उस दौर में जयंत देशमुख और भाई अरुण काठोटे के पोस्टर काफी लोकप्रिय हुए थे। लोक चौराहे पर एकत्र होकर कविताएं पढ़ते थे और आपस में चर्चाएं किया करते थे। कुछ कुछ वर्षों तक यह सिलसिला चला, फिर थम-सा गया। लेकिन तीन दशक बाद अरुण काठोटे ने फिर कुछ महत्वपूर्ण कविताओं के पोस्टर बनाए हैं, जिसकी प्रदर्शनी 23 मार्च को महाकौशल कला वीथिका में उद्घाटित हुई। अरुण ने जितनी भी कविताओं का चयन किया है, वे झकझोरने वाली है। वर्तमान समय के साथ जीवंत संवाद करने वाली। वैसे तो हर महान कविता अपने आप में एक पोस्टर होती है, जो पाठक की आत्मा में शब्द चित्र बन कर उपस्थित हो जाती है । लेकिन अरुण काठोटे जैसा चित्रकार जब कविता की भाव भंगिमा को, उसकी आत्मा को समझ कर उसे रंगों के साथ प्रस्तुत करता है, तो उसकी प्रभविष्णुता यानी प्रभाव और द्विगुणित हो जाती है ।कई बार हम जब सिर्फ कविता पढ़ते हैं तो उसके पाठ को बहुत अच्छे से समझ नहीं पाते, लेकिन जब सामने चित्र होते हैं, तो कविता जैसे अपने अर्थ लोक में खुलती चली जाती है। इन चित्रों का भी बड़ा महत्व है। केवल शब्द चित्र नहीं रंग चित्र भी हमें अनुभव के नवलोक तक पहुंचा देते हैं । इस लिहाज से अरुण काठोटे के कविता पोस्टर बेहद महत्वपूर्ण है । यह प्रदर्शनी न केवल छत्तीसगढ़ में वरन छत्तीसगढ़ के बाहर भी लगाई जानी चाहिए । किसी भी कलाकार की मेहनत किसी एक जगह सिमट कर रह जाए, तो उसके साथ अन्याय होगा। मुझे विश्वास है कला में रुचि रखने वाले छत्तीसगढ़ के बाहर के मेरे मित्र भी इन कविता पोस्टरों को देखना चाहेंगे। पोस्टर देखने वाला हर दर्शक समझेगा कि पोस्टर की कविताएं न केवल पावरफुल है वरन पोस्टरों में आकर और भी विस्फोटक बन गई है । *- गिरीश पंकज*