कोलकाता (khabargali)। इस बार पश्चिम बंगाल में किसी चुनावी लहर से अधिक कोरोना की लहर है। कोरोना के चलते दो उम्मीदवारों और एक विधायक की मौत हो चुकी है। चार उम्मीदवार अभी और संक्रमित हैं। आगे क्या होगा ? पता नहीं। चुनावी घमासन के बीच कोरोना अब काल बन कर छा गया है। 16 अप्रैल को कोरोना ने 24 घंटे में राज्य के 26 लोगों का जीवन छीन लिया। पांच चरण के चुनाव के बाद अभी 22, 26 और 29 अप्रैल को और चुनाव होना है। मीटिंग और मतदान के दौरान जो भीड़ जुट रही है उसमें दो गज दूरी का पालन नहीं हो रहा। किसी- किसी बूथ पर ही सोशल डिस्टेसिंग दिखी। चुनावी रैलियों में या रोड शो में तो रोज नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं।
इस भयावह स्थिति के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अभी छह रैलियां और करनी है। शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी की आसनसोल रैली में लोगों ने मास्क तो लगा रखा था लेकिन एक दूसरे से सट कर बैठे थे या फिर खड़े थे। जब प्रधानमंत्री की रैली में इतनी ढिलायी है तो दूसरी रैलियों का हाल समझा जा सकता है। कोरोना के डर से लाखों बच्चों की परीक्षाएं स्थगित हो सकती हैं तो फिर चुनाव क्यों नहीं ? क्या चुनाव इंसान की जान से अधिक जरूरी है ?
कोरोना से कैसे प्रभावित हो रहा है चुनाव?
मुर्शिदाबाद जिले की जंगीपुर सीट पर 26 अप्रैल को चुनाव था। रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार प्रदीप कुमार नंदी भी यहां से चुनाव लड़ रहे थे। उनकी उम्र 73 साल थी और वे कोरोना से संक्रमित थे। लेकिन 16 अप्रैल को उनका निधन हो गया। इसकी वजह से जंगीपुर का चुनाव रद्द कर दिया गया। मुर्शिदाबाद जिले के ही शमशेरगंज विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के प्रत्याशी रियाजुल हक की कोरोना से मौत हो गयी। उनका निधन भी 16 अप्रैल को ही हुआ। 17 अप्रैल को मुराराई के तृणमूल विधायक अब्दुल रहमान लिटन भी कोरोना का शिकर हो गये। अब्दुल रहमान को तृणमूल ने इस बार भी टिकट दिया था लेकिन इसी बीच वे कोरोना से संक्रमित हो गये। इसके बाद तृणमबल ने उनका टिकट काट कर नये उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया। पांच और उम्मीदवारों के और संक्रमित होने की खबर है। इनमें चार तृणमूल के और एक भाजपा के उम्मीदवार हैं। चुनावी सभाओं को भीड़ ने पश्चिम बंगाल में कोरोना विस्फोट का खतरा बढ़ा दिया है।
जान से अधिक चुनाव जरूरी है ?
कोरोना जांच के मामले में भी पश्चिम बंगाल की स्थिति संतोषजनक नहीं है। फिलहाल यह दसवें स्थान पर है। ऐसे में संक्रमितों की वास्तविक संख्या के बारे में यकीन से कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसी खतरनाक स्थिति के रहने के बावजूद चुनाव आयोग ने बाकी बचे तीन चरणों का चुनाव एक साथ क्यों नहीं कराया ? पश्चिम बंगाल के कुछ गैरराजनीतिक प्रबुद्ध लोगों का कहना है, 'चुनाव आयोग ने इस समस्या का समाधान मानवीय आधार पर नहीं निकाला। लोगों की जान जोखिम में डाल कर चुनाव कराना कहां तक उचित है। एक साथ चुनाव कराने से कुछ प्रत्याशियों को प्रचार के लिए कम समय मिलता। हो सकता है कि इससे हार-जीत का समीकरण भी प्रभावित होता। लेकिन इंसान की जान तो महफूज हो जाती। अफसोस कि इस बात पर गौर नहीं किया गया।' डॉक्टरों के मुताबिक अभी पश्चिम बंगाल में रोजना करीब छह हजार मामलों की पुष्टि हो रही है। इनका मानना है कि चुनावी रैलियों के कारण यह संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि कलकत्ता हाईकोर्ट में कोरोना गाइडलाइंस का कड़ाई से पालन का आदेश दिया है। लेकिन इसके बावजूद ढिलाई जारी है।
करोना पर भी राजनीति
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में कोरोना का संक्रमण बढ़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। उनका कहना, 'इतना- इतना पीएम का मीटिंग होता है। इतना-इतना पैसा खर्चा होता है। मीटिंग का स्टेज बनाने के लिए बाहर से आदमी आते हैं। जब इतनी बड़ी संख्या में बाहर से आये लोग जगह-जगह जाएंगे तो क्या हम उनका टेस्ट कर पाएंगे ? पीएमओ से जुड़े किसी भी आदिमी को राज्य की पुलिस टच नहीं कर पाएगी। अभी तो सारी व्यवस्था इलेक्शन कमिशन के अंडर में है। तो ऐसे में राज्य सरकार क्या कर सकती है?' दरअसल इन्ही राजनीति दांव पेंचों की वजह से पश्चिम बंगाल में कोरोना भयंकर रूप धारण करता जा रहा है। भाजपा और ममता बनर्जी के बीच चुनावी जंग जीतने की ऐसी आपाधापी है कि इन्हें कोरोना की कोई परवाह नहीं।
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