देवाधिपति देव भोलेनाथ ने जब दिया भगवान विष्णु को अपने बराबर का दर्जा

When Devadipati Dev Bholenath gave his status to Lord Vishnu, the tradition of Rudrabhishek started with the war of Brahma and Vishnu, Ketaki flower, Shiva Linga, Lord Shiva, religion,khabargali

ब्रह्मा और विष्णु के युद्ध से शुरू हुई थी रुद्राभिषेक की परंपरा

ख़बरगली (धर्म डेस्क)

" सावन " भगवान शिव प्रिय माह कहलाता है। ग्रंथों के अनुसार इस पावन महीने में भोलेनाथ का जलाभिषेक अधिक लाभदायक होता है। इस दौरान भगवान शंकर का विभिन्न नदियों के पवित्र जल से भी अभिषेक किया जाता है। तो वहीं ज्योतिष शास्त्र में सावन में किए जाने वाले विभिन्न अभिषेकों के बारे में बताया गया है। जिसमें से एक है रुद्राभिषेक। अक्सर देखा जाता है मंदिरों में इस दौरान लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शिवलिंग का रुद्राभिषेक करवाते हैं।

मान्यता है जो भी जातक भगवान शंकर के प्रिय माह श्रावण में उनका रुद्राभिषेक करता है उसके सभी इच्छाएं तो पूर्ण होती ही हैं साथ ही उसकी कुंडली के सभी ग्रह दोष भी दूर होते हैं। ग्रंथों में बताया गया है शिव ही रुद्र हैं और रुद्र ही शिव हैं। रुद्राष्टाध्यायी में एक श्लोक है जिसके अनुसार रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र। अर्थात- रुद्र रूप शिव हमारे सभी दुखों को जल्द ही खत्म कर देते हैं। यानि कि शिवलिंग का रुद्राभिषेक करने पर हमारे दुख खत्म होते हैं।

ब्रह्मा और विष्णु के बीच युद्ध के बाद शुरू हुई रुद्राभिषेक की परंपरा

शिवपुराण की एक कथा के अनुसार एक दिन भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ शेषनाग की शय्या पर विश्राम कर रहे थे।उसी समय सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्मा जी उनके पास पहुंचे।आंखे बंद होने के कारण भगवान विष्णु को ब्रह्मा के आने पता नहीं चला और वो सोये ही रहे।यह देख ब्रह्मा जी क्रोधित हो उठे और विष्णु जी से बोले मेरे आने बाद भी तुम सोये हुए हो जबकि मैं तुम्हारा स्वामी हूँ । उसी समय विष्णु जी की आंखे खुल गई और ब्रह्मा जी के मुख से अपने लिए ऐसी बातें सुन उन्हें भी गुस्सा आ गया ।लेकिन फिर मन को शांत कर उन्होंने ब्रह्मा जी कहा हे प्रिये आपका स्वागत है और किस बात को लेकर क्रोधित हैं । विष्णु जी की बाते सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा हे विष्णु मैं जगत के साथ साथ तुम्हारा भी संरक्षक हूँ।पूरे जगत में मेरा सम्मान किया जाता है फिर तुम मेरा अपमान कैसे कर सकते हो ।

तब विष्णु जी ने कहा -हे ब्रह्मा तुम तो भली भांति जानते हो की मेरे अंदर पूरा ब्रह्माण्ड समाहित है।तुम भी मेरे नाभि कमल से उत्पन्न हुए हो और मैं तुम्हारा पिता हूँ।इसलिए तुम्हारे सारे कथन झूठे हैं। विष्णु जी के इतना कहते ही ब्रह्मा जी और भी क्रोधित हो उठे और खुद को श्रेष्ट बताने लगे।कुछ देर तो दोनों के बीच श्रेष्ठता के लिए बहस हुई लेकिन उसके बाद दोनों ने हथियार निकाल लिए और उसके बाद दोनों के बीच एक भयंकर युद्ध शुरू हो गया।

दिव्यास्त्रों का जब होने लगा उपयोग

युद्ध के शुरू होते ही भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर सवार होकर ब्रह्मा जी पर बाणो की वर्षा करने लगे।इधर ब्रह्मा जी भी विष्णु जी पर तीर बरसाने लगे।इस तरह दोनों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया।ब्रह्मा जी पर अपने बाणो का कोई असर ना होता देख विष्णु जी ने ब्रह्मा जी पर महेश्वर अस्त्र से प्रहार किया जिससे बचने के लिए ब्रह्मा जी ने पशुपास्त्र चला दिया। दोनों अस्त्रों के टकराने से पूरा ब्रह्मांड कांप उठा।लेकिन इसके बाद भी दोनों के बीच युद्ध चलता रहा।

शिव जी की शरण में जब पहुँचे देवगण

युद्ध का कोई भी परिणाम ना निकलता देख सभी देवी देवता डर गए और स्वर्ग से कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से विनती करने पहुंचे। कैलाश पर्वत पहुंच कर देवताओं ने शिव जी को विष्णु और ब्रह्मा जी युद्ध के बारे में बताया और किसी तरह रोकने के लिए कहा।देवताओं की बात सुनकर भगवान् शिव ने कहा मुझे इस युद्ध की जानकारी पहले से है ये दोनों खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए व्यर्थ ही युद्ध कर रहे है।साथ ही ये भी कहा कि मैं स्वंय युद्ध क्षेत्र में जाकर इस युद्ध को रोकूंगा।

जब शिव जी ने विशाल अग्निलिंग का रूप लिया

इसके बाद शिव जी युद्ध के मैदान की और चल दिए।वहां पहुँच कर भगवान शिव ने दोनों के बीच अग्निलिंग के विशाल स्तम्भ का रूप ले लिया।यह देख दोनों ही हैरान हो गए और एक दूसरे से पुछा ये क्या है।हमें इसका पता लगाना होगा।इसके बाद दोनों ने निर्णय लिया की जो इस स्तम्भ के सिरे का पहले पता लगाएगा वही श्रेष्ठ माना जायेगा।और दोनों स्तम्भ के सिरे का पता लगाने निकल पड़े ।

अग्नि स्तम्भ के दोनों सिरे की शुरू हुई खोज

 विष्णु जी ने सूअर का रूप धारण कर स्तंभ का जड़ खोजने निकल पड़े और हंस रूप में ब्रह्मा जी ने ऊपरी सिरे को खोजना शुरू किया।कई साल बीत गए लेकिन ना तो विष्णु जी को उस अग्नि स्तम्भ का जड़ मिला और ना ही ब्रह्मा जी को ऊपरी सिरा। अंत में विष्णु जी युद्ध के मैदान वापस आ गए।विष्णु जी वापस युद्ध के मैदान में वापस आया देख ब्रह्मा जी भी वापस आने लगे तभी रास्ते में उन्हें स्तंभ से केतकी का फूल गिरते दिखाई दिया तो ब्रह्मा जी ने फूल से पुछा हे फूल तुम क्यों गिर रहे हो और इस का ऊपरी सिरा कहाँ है ? तब केतकी के फूल ने जवाब दिया मैं मैं तो इस अग्नि स्तम्भ के बीच से कई वर्षों से नीचे गिर रहा हूँ लेकिन मैं नहीं जानता की इसका शीर्ष कहाँ है।तब ब्रह्मा जी ने उससे कहा हे केतकी अब से मैं जैसा कहूं वैसा ही तुम करना।मेरे साथ नीचे चलो मैं जो भी विष्णु जी को बताऊंगा उसमे तुम मेरी हाँ में हाँ मिलाना ।

विष्णु जी ने जब ब्रम्हा के झूठ को यकीन कर लिया

इतना कहकर ब्रह्मा जी केतकी फूल के साथ युद्ध स्थल पहुंचे जहाँ विष्णु निराश बैठे थे। ब्रह्मा के पहुंचते ही विष्णु जी ने उनसे कहा की मैं इस के जड़ को नहीं खोज पाया।यह सुन ब्रह्मा जी खुश हो गए और उन्होंने विष्णु जी कहा की उन्होंने अग्नि स्तम्भ के ऊपरी सिरा को खोज लिया है और इस झठी बात की गवाही केतकी फूल ने भी दिया।तब विष्णु जी ने ब्रह्मा को खुद से श्रेष्ठ मानते हुए उनकी पूजा की ।

विष्णु जी को वरदान और ब्रह्मा को दिया अभिशाप

 ब्रह्मा जी के झूठ से क्रोधित होकर शिव जी तुरंत अपने असली रूप में आ गए ।शिव को देखकर विष्णु जी खड़े हो गए और उन्हें प्रणाम किया।यह देख शिव जी ने विष्णु जी कहा की मैं आपसे प्रसन्न हूँ।आपने श्रेष्ठ बनाने के लिए झठ का सहारा नहीं लिया इसलिए आप भी मेरे इतना ही पूजनीय रहोगे। और ब्रह्मा जी को अहंकार का दंड देने के लिए तीसरी नेत्र से भैरव अवतार को जन्म दिया। भैरव अवतार ने शिवजी की आज्ञा पाकर अपने बाएं हाथ की छोटी ऊँगली के नाखून से भगवान ब्रह्मा का पांचवां मस्तक जिसने झूठ बोला था, वह काट दिया। तब भगवान शिव का क्रोध भगवान विष्णु ने शांत किया व ब्रह्मा जी को क्षमा करने का आग्रह किया। भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ व उन्होंने विष्णु को अपने समान पूजे जाने व ब्रह्मा को ना पूजे जाने की बात कही। विष्णु की स्तुति पर शिव जी ने ब्रह्मा को तो माफ़ कर दिए लेकिन साथ ही ये भी श्राप दिया की आपको ना तो कोई सम्मानित करेगा और नाही आपकी पूजा होगी।और केतकी फूल पर नाराज होकर उसे शिव जी ने अपने गले से त्याग दिया । ऐसी मान्यता है इसी घटना से रूद्राभिषेक की परंपरा आरंभ हुई थी। तब से भगवान शिव के भैरव अवतार की भी पूजा की जाने लगी।

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