क्रोनिक किडनी डिजीज का सफल "नेचर होम्यो-पद्धति " से निदान : डॉ अजय तिवारी

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जानें क्रोनिक किडनी डिजीज (C.K.D.) के क्या लक्षण होते हैं?

ख़बरगली @ हेल्थ डेस्क

क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) में, दोनों किडनी को खराब होने में महीनों से सालों तक का समय लगता है। इसकी शुरूआत में दोनों किडनी की कार्यक्षमता में अधिक कमी नहीं होने के कारण कोई लक्षण दिखाई नहीं देते है किन्तु जैसे जैसे किडनी ज्यादा खराब होने लगती है, क्रमशः मरीज की तकलीफ बढ़ती जाती है ।

क्रोनिक किडनी डिजीज C.K.D. के क्या लक्षण होते हैं?

क्रोनिक किडनी डिजीज के लक्षण किडनी की क्षति की गंभीरता के आधार पर बदलते है। सी.के.डी. को पाँच चरणों में विभाजित किया गया है। किडनी की कार्यक्षमता के दर या eGFR के स्तर पर यह विभाजन आधारित होते है। eGFR का अनुमान रक्त में क्रीएटिनिन की मात्रा से पता लगाते हैं। सामान्यतः eGFR 90ml/min से ज्यादा होता है।

सी.के.डी. का पहला चरण

 क्रोनिक किडनी डिजीज के पहले चरण में किडनी की कार्यक्षमता 90 - 100 % होती है। इस स्थिति में eGFR 90 मि.लि./मिनिट से ज्यादा रहता है। इस अवस्था में मरीजों में कोई लक्षण दिखने शुरू नहीं होते हैं। पेशाब में परेशानियां हो सकती है जैसे पेशाब में प्रोटीन जाना एस्करे. एम. आर. आई., सी. टी. स्कैन या सोनोग्राफी से किडनी में खराबी दिखाई पड सकती है या सी.के.डी. नामक बीमारी का पता लग जाता है।

C.K.D. का दूसरा चरण

 इसमें eGFR 60 से 89 मि. लि./ मिनिट होता है। इन मरीजों में किसी भी प्रकार का कोई लक्षण नहीं पाया जाता है। किन्तु कुछ मरीज रात में बार-बार पेशाब जाना या उच्च रक्तचाप होना आदि शिकायतें कर सकते हैं। इनकी पेशाब जाँच में कुछ असामान्यताएं एवं रक्त जाँच में सीरम क्रीएटिनिन की थोड़ी बढ़ी मात्रा हो सकती है। क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज में खून का दबाव बहुत ही ज्यादा बढ़ सकता है।

सी.के.डी. का तीसरा चरण

 इसमें eGFR 30 तो 59 मि. लि./ मिनिट होता है। मरीज अक्सर बिना किसी लक्षण के या हल्के लक्षणों के साथ उपस्थित हो सकते हैं। इनकी पेशाब जाँच में कुछ असामान्यताएं एवं रक्त जाँच में सीरम क्रीएटिनिन की मात्रा थोड़ी बढ़ी हो सकती है।

सी.के.डी. का चौथा चरण

 क्रोनिक किडनी डिजीज की चौथी अवस्था में eGFR में अर्थात किडनी की कार्यक्षमता में 15-29 मि. लि./ मिनिट तक की कमी आ सकती है। अब लक्षण हल्के, अस्पष्ट और अनिश्चित हो सकते हैं या बहुत तीव्र भी हो सकते हैं। यह किडनी की विफलता और उससे जुडी बीमारी के मूल कारणों पर निर्भर करता है।

सी.के.डी. का पाँचवा चरण (किडनी की 15% से कम कार्यक्षमता)

सी.के.डी. की पाँचवी अवस्था बहुत गंभीर होती है। इससे eGFR अर्थात किडनी की कार्यक्षमता में 15 % से कम हो सकती है। इसे किडनी डिजीज की अंतिम अवस्था भी कहते हैं। ऐसी अवस्था में मरीज को डायालिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है। मरीज में लक्षण स्पस्ट या तीव्र हो सकते हैं और उनके जीवन के लिए खतरा और जटिलताएां बढ़ सकती है। एन्ड स्टेज किडनी डिजीज के सामान्य लक्षण प्रत्येक मरीज में किडनी खराब होने के लक्षण और उसकी गंभीरता अलग अलग होती है।

रोग की इस अवस्था में पाये जाने वाले लक्षण इस प्रकार हैं

खाने में अरुचि होना, उल्टी, उबकाई आना। कमजोरी महसूस होना, वजन कम हो जाना। पैरों के निचले हिस्से में सूजन आना प्रायः सुबह के समय आँखों के चारों तरफ और चेहरे पर सूजन आना थोड़ा काम करने पर थकावट महसूस होना, साँस फूलना । खून में फीकापन रक्तअल्पता (एनीमिया ) होना। किडनी में बनने वाला एरिथ्रोपोएटिन नामक हार्मोन में कमी होने से शरीर में खून कम बनता है। शरीर में खुजली होना । पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना । विशेष रूप से रात के समय बार-बार पेशाब जाना (nocturia) । याद्दाश्त में कमी होना, नींद में नियमित क्रम में परिवर्तन होना । दवा लेने के बाद भी उच्च रक्तचाप का नियत्रण में नहीं आना । स्त्रियों में मासिक में अनियमितता और पुरुषों में नपुंसकता का होना । किडनी में बनने वाला सक्रिय विटामिन 'डी' का कम बनना, जिससे बच्चो की ऊंचाई कम बढ़ती है और वयस्कों में हड्डियों में दर्द रहता है। भोजन में अरुचि, कमजोरी और जी मिचलाना क्रोनिक किडनी डिजीज के अधिकांश मरीजों के मुख्य लक्षण है।

उच्च रक्तचाप व मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति में सी.के.डी. होने की संभावना प्रबल होती है?

किसी व्यक्ति में उच्च रक्तचाप है तो सी.के.डी. की संभावनाएँ हो सकती हैं यदि 30 से कम या 50 से अधिक उम्र में उच्च रक्तचाप होने का पता चले। निदान के समय में गंभीर उच्च रक्तचाप (200/120 mm of Hg) हो। नियमित रूप से उपचार के बावजूद अनियंत्रण उच्च रक्तचाप हो। दृष्टि में खराबी होना। पेशाब में प्रोटीन जाना। उन लक्षणों की उपस्थिति होना जो सी.के.डी. की संभावनाएं दर्शाता है जैसे शरीर में सूजन का होना, भूख की कमी, कमजोरी लगना आदि।

अंतिम चरण के सी.के.डी. की क्या जटिलताएँ होती है?

सांस लेने में अत्यधिक तकलीफ और फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण सीने में दर्द होना (पलमनरी एडिमा) । गंभीर उच्च रक्तचाप होना । मतली और उलटी होना । अत्यधिक कमजोरी महसूस होना । केन्द्रीय तंत्रिका में जटिलता उत्पन्न होना जैसे, झटका आना, बहुत नींद आना, ऐंठन होना और कोमा में चले जाना आदि। रक्त में अधिक मात्रा में पोटैशियम बढ़ जाना (हाइपरकेलिमिया) । यह ह्रदय के कार्य करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है और यह जीवन के लिए खतरनाक भी हो सकता है। पैरीकाडाइटिस (Pericarditis) होना। थैली की तरह की झिल्ली जो ह्रदय के चारों तरफ रहती है उसमें सूजन आना या पानी भर जाना। यह ह्रदय के कार्य को बाधित करती है एवं छाती में अत्यधिक दर्द हो सकता है। दवा लेने के बावजूद खून के फीकापन में कोई सुधार न होने का कारण किडनी डिजीज भी हो सकता है।

निदान

प्रारंभिक अवस्था में सी. के. डी. में किसी भी प्रकार के लक्षण नहीं दिखते हैं। प्रायः सी. के. डी. का पता तब चलता है जब उच्च रक्तचाप की जाँच होती है, खून की जाँच में सीरम क्रीएटिनिन की बढ़ी मात्रा या पेशाब परीक्षण में एल्बुमिन का होना पाया जाता है। हर उस व्यक्ति की, सी. के. डी. के लिए जाँच होनी चाहिए जिनकी किडनी के क्षतिग्रस्त होने की संभावनाएँ अधिक हो (मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अधिक उम्र, परिवार के अन्य सदस्यों में सी. के. डी. का होना आदि में)। किडनी डिसीज कोरोना काल के बाद एक बहुत तेजी से फैलने वाली बीमारी बन कर हम लोगो के समक्ष आई हैं जिसका सफल व सरल इलाज नेचरोहोमियो पद्धति से बहुत अच्छा व बेहतर इलाज है ।

- डॉ अजय तिवारी, नेचरोहोम्यो विशेषज्ञ

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