
लिट्टे से ट्रेनिंग प्राप्त बसवराजू पर था डेढ़ करोड़ रुपए का इनाम
पिछले 5 महीने में मारे जा चुके हैं 183 हार्डकोर नक्सली
नारायणपुर/ दंतेवाड़ा (खबरगली) छत्तीसगढ़ के नारायणपुर-बीजापुर-दंतेवाड़ा जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में सुरक्षाबलों ने नक्सलवाद को खत्म करने की लड़ाई में यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है. छत्तीसगढ़ में पिछले लगभग तीन दशक से नक्सलियों के खिलाफ जारी अभियान में यह पहली बार है जब सुरक्षाबलों ने महासचिव स्तर के माओवादी नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू समेत 27 नक्सलियों को मार गिराया है. इस अभियान में तीन जिलों के 1000 जवानों ने साहस का परिचय दिया. पुलिस अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी. मुठभेड़ के दौरान डीआरजी टीम का एक जवान शहीद हो गया, जबकि कुछ अन्य जवान घायल हो गए. सभी घायलों को चिकित्सा सहायता दी गई है. उनकी हालत खतरे से बाहर बताई गई है.
उन्होंने बताया कि तीन दिन पहले माओवादियों की केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो के सदस्यों को घेरने के उद्देश्य से अभियान शुरू किया गया था और आज इसी अभियान के दौरान मुठभेड़ हुई. अधिकारियों ने कहा कि नारायणपुर-बीजापुर-दंतेवाड़ा जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित अबूझमाड़ के घने जंगलों में सुरक्षाबलों द्वारा 70 घंटे तक तलाश अभियान चलाया गया जिसके बाद नक्सलियों से आमना-सामना हुआ. बताया जाता है कि नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंडागांव की डीआरजी टीम अभी भी मौके पर मौजूद है.
डेढ़ करोड़ का इनाम था बसवराजु पर
अधिकारियों ने बताया कि कई नक्सली हमलों के आरोपी बसवराजू पर छत्तीसगढ़ में डेढ़ करोड़ रुपये का इनाम था. आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना सहित अन्य राज्यों की सरकारों ने भी उस पर इनाम घोषित कर रखा था। अधिकारियों ने कहा कि मुठभेड़ में बसवराजू के ढेर होने के बाद अब नक्सल आंदोलन की कमर टूटनी तय है. उन्होंने कहा कि यह सरकार और सुरक्षाबलों के प्रयास में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
कौन था नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू ?
प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) का महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू 1970 के दशक में नक्सल आंदोलन से जुड़ा था. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि बसवराजू की लंबे समय से तलाश थी. इस माओवादी नेता को छत्तीसगढ़ समेत देश के कई हिस्सों में हुई माओवादी घटनाओं का प्रमुख साजिशकर्ता माना जाता है. बसवराजू ने 2018 के अंतिम महीनों में प्रतिबंधित संगठन के महासचिव का पद संभाला था. उसने मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति की जगह ली थी, जो उस समय 71 वर्ष का था. गणपति ने अपनी बिगड़ती तबीयत और उम्र संबंधी समस्याओं के कारण अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
वर्ष 2004 में जब भाकपा (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (पीपुल्स वार) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के विलय से भाकपा (माओवादी) का गठन हुआ तब से गणपति ही महासचिव के पद पर था. साल 2018 में बसवराजू के महासचिव नियुक्त होने के बाद माओवादियों ने बस्तर क्षेत्र में कई घातक हमलों को अंजाम दिया. इनमें 2021 में बीजापुर के टेकलगुडेम में हुए हमले में सुरक्षाबलों के 22 जवान मारे गए थे. 2020 में सुकमा के मिनपा में हुए नक्सली हमले में 17 सुरक्षाकर्मी मारे गए तथा अप्रैल 2019 में दंतेवाड़ा के श्यामगिरि में हुए हमले में भाजपा विधायक भीमा मंडावी तथा चार सुरक्षाकर्मी मारे गए थे.
अधिकारियों के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियान्नापेटा गांव के निवासी बसवराजू ने इंजीनियरिंग कॉलेज, वारंगल से बी टेक की डिग्री हासिल की थी.जब वह आरईसी में पढ़ाई कर रहा था तो उसने रेडिकल स्टूडेंट यूनियन के बैनर तले कॉलेज छात्र संघ का चुनाव भी लड़ा था. इस चुनाव में उसे छात्र संघ का अध्यक्ष चुना गया था. कहा जाता है कि वह प्रतिबंधित नक्सल संगठन का एक कट्टर और रहस्यमय नेता था. उन्होंने बताया कि प्रकाश, कृष्णा, विजय, उमेश और कमलू के उपनामों से पहचाने जाने वाला बसवराजू 1970 के दशक में जमीनी स्तर के कार्यकर्ता के रूप में नक्सल आंदोलन में शामिल हुआ था. 1992 में उसे तत्कालीन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्स वार की केंद्रीय समिति का सदस्य चुना गया. तब गणपति इसका महासचिव बना था. अधिकारियों ने बताया कि भाकपा (माओवादी) के महासचिव के रूप में पदोन्नत होने से पहले वह कई वर्षों तक माओवादियों के केंद्रीय सैन्य आयोग का नेतृत्व कर रहा था. सैन्य प्रशिक्षण देने तथा विस्फोटकों और बारूदी सुरंगों में विशेषज्ञता रखने वाले उसकी टीम के कैडर अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे. जंगल में उसके चारों ओर सशस्त्र कैडरों की तीन-स्तरीय सुरक्षा रहती थी. इस सुरक्षा के कारण ही बसवराजू अब तक सुरक्षाबलों की पकड़ से बाहर था. उन्होंने कहा कि बसवराजू की उम्र और शक्ल-सूरत को लेकर अटकलें लगाई जाती रही हैं.
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक बसवराजू की उम्र लगभग 71 वर्ष थी. सुरक्षाबलों के पास उसकी युवावस्था की पुरानी तस्वीरें हैं. पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से सुरक्षाबल लगातार बीजापुर और सुकमा जिले के अंदरूनी इलाकों में माओवादियों की केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो के सदस्यों को निशाना बनाने के लिए खुफिया जानकारी के आधार पर अभियान चला रहे थे और अंतत? वे घने जंगलों एवं दुर्गम इलाकों में बसवराजू को मार गिराने में सफल रहे.
पिछले 5 महीने में मारे गए नक्सलियों का डेथ टोल बढ़कर 183 हुआ
27 नक्सलियों की मौत के बाद साल 2025 में पिछले 5 महीने में मारे गए नक्सलियों का डेथ टोल बढ़कर 183 हो चुका है. इससे पहले, बीजापुर के कर्रेगुट्टा पहाड़ी में सुरक्षाबलों के साथ हुए मुठभेड़ में 31 नक्सली मारे गए थे. ऐसे में इस साल मारे गए नक्सलियों का आंकड़ा बढ़कर 183 पहुंच चुका है.
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