नहीं रहे शायर अमानुल्लाह ख़ान " अता रायपुरी "
रायपुर (khabargali) रायपुर ही नहीं देश की एक अज़ीम अदबी शख़्सियत जिन्हें हम अमानुल्लाह ख़ान अता रायपुरी के नाम से जानते हैं, हमारे बीच अब नहीं है. वे कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे.बुधवार 9 फरवरी की दोपहर तकऱीबन 2बजे उनका इंतेकाल हो गया.उन्हें कल दोपहर 2 बजे मौदहापारा क़ब्रस्तान में सुपुर्दे ख़ाक किया जायेगा.
5 जुलाई 1953 में जन्मे शायर अता रायपुरी की लिखी लाइनें जिनमें - " तन्हाई को करने रुख़्सत, क्या मैं अंदर आ सकता हूं, ले कर कुछ सामने मोहब्बत, क्या मैं अंदर आ सकता हूं..." और " तमाशा मैं बन जाऊं ये नहीं है, मेरा पांव चादर से बाहर नहीं है..., " बड़ी प्रसिद्ध हैं.
अब यादें ही शेष हैं
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