

रायपुर (khabargali)। छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसायटी ने 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर शहर की सात रंग हस्तियों को सम्मानित किया। पूर्व मुख्य सचिव एसके मिश्रा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी सर्वश्री मिर्जा मसूद, जलील रिजवी, राजकमल नायक, मिनहाज असद, अरुण काठोटे, अख्तर अली तथा सुयोग पाठक को रंगकर्म में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। आयोजन स्थल पर वरिष्ठ रंगकर्मी तथा चित्रकार अरुण काठोटे द्वारा संयोजित कविता पोस्टर प्रदर्शनी ने भी दर्शकों को आकर्षित किया।
यहां हम कविता पोस्टर पर लेखक अख्तर अली की समीक्षा प्रकाशित कर रहे हैं-
पोस्टर पर कविता आकाश में सूर्य की भांति चमक रही थी
अरुण के एकांत को इप्टा ने सार्वजनिक कर वर्तमान समय में ज़बरदस्त हस्तक्षेप किया है
कल मैंने पोस्टर पर कविताये पढ़ी , ऐसा लगा जैसे कढाई में खौलता तेल | संग्रह के कैद में कविताये सुरक्षित नहीं है , हर कविता को पोस्टर पर लाना होगा , फिर लाना होगा हर पोस्टर को सड़क पर |
पोस्टर पर कविता को पढ़ा तो महसूस हुआ पोस्टर पर आकर कविता और ज़्यादा मारक हो जाती है , उसका तेवर , उसका आवेग , उसका मकसद , उसका कथ्य , उसका शिल्प , उसका बिम्ब , उसकी पुकार , उसकी तड़प ,उसकी संवेदना , उसका आयतन , उसका क्षेत्रफल , उसका सम्मोहन , उसकी आग , उसकी लहर ,उसकी धार , उसकी नोक , उसकी रफ़्तार , उसकी उड़ान पोस्टर पर आकर कई गुना बढ़ जाती है |
साहित्य के समाज में कविता पोस्टर प्रदर्शनी की पुरानी परम्परा है , लेकिन निरंतरता के अभाव में उसकी उपयोगिता प्रभावित हो जाती है | पोस्टर पर आकर कविता जैसा दृश्य उत्पन्न करती है ऐसा लगता है दो अभिनेता मंच पर आमने सामने संवाद कह रहे हो |
छत्तीसगढ़ में यह अभियान अरूण और जयंत देशमुख ने शुरू किया था और पंकज दीक्षित इस समय देश में इस विधा का एक बड़ा नाम है | हरिओम राजोरिया सोशल मीडिया पर इसे बेहतर तरीके से विस्तार दे रहे है |
अरुण के पास जो सोच का ब्रश है उसमें अनुभव का रंग है | अरुण का काम बताता है पोस्टर पोस्टर में अंतर , और अंतर कविता कविता में | पोस्टर पर लिखना जानना जितना महत्वपूर्ण है उतना ही महत्वपूर्ण यह जानना भी है कि पोस्टर पर क्या लिखना और लिखे को किस दिन किस मंच से प्रदर्शित करना | पोस्टर कविता के लिए सिर्फ तकनीक का ज्ञाता होना पर्याप्त नहीं है , इसके लिए आपको को साहित्य का ज्ञाता होना भी ज़रूरी है | पेंटिंग से लेकर अभिनय तक में अध्ययन काम को निखारता है | अरुण के पोस्टर शंकर शेष के पोस्टर की तरह हलचल पैदा कर देने में सक्षम है | यह कलाकार की कवि के साथ जुगलबंदी थी |
अरुण के पोस्टर , कविता के चयन के लिये याद रखे जायेगे | हर नाज़ुक सी लगने वाली कविता बलशाली थी | अरुण ने कविता को पोस्टर के कंधे पर लटकाया नहीं , इसने कविता को पोस्टर के सीने पर अंकित कर दिया , पोस्टर पर कविता आकाश में सूर्य की भांति चमक रही थी , जहां से कविता का प्रकाश ख्यालो को रौशन कर रहा था |
कविता का प्रत्येक पोस्टर अपने समाज और समय का विश्लेषण करता है , अपने पढने वालो की सोच की सर्विसिंग करता है , उनकी सोच का विस्तार करता है , उन्हें आंतरिक सौंदर्य प्रदान करता है | अरुण के कलेक्शन में सलेक्शन का पुट सराहनीय है , गौहर रज़ा , राजेश जोशी , अरुण कमल , विष्णु खरे , विनोद कुमार शुक्ल , केदारनाथ सिंह , त्रिलोचन , आलोक वर्मा की रचनाये 23 मार्च शहादत दिवस को सार्थक कर रही थी | इस तरह की एक प्रदर्शनी स्थानीय रचनाकारों पर केन्द्रित होनी चाहिये |
- अखतर अली , आमानाका , निकट मेडी हेल्थ हास्पिटल , रायपुर (छ.ग.) मो.9826126781
- Log in to post comments