भ्रामक विज्ञापनों से गुमराह कर रही पतंजलि, सरकार मूकदर्शक : सुप्रीम कोर्ट

Patanjali is misleading with misleading advertisements, government is a mute spectator, Supreme Court, apex court issued contempt notice to the company and MD, ban on advertising or branding, Yogaguru Ramdev Baba, Khabargali (475)

शीर्ष अदालत ने कंपनी और एमडी को जारी किया अवमानना नोटिस, विज्ञापन या ब्रांडिंग पर रोक

नई दिल्ली (khabargali) योगगुरू रामदेव बाबा की पतंजलि कंपनी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पतंजलि आयुर्वेद अपने भ्रामक विज्ञापनों व दावों से देश को गुमराह कर रही है और सरकार मूकदर्शक बनी है। अदालत को दिए आश्वासन के बाद भी औषधीय इलाज के संबंध में भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए शीर्ष अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद को कड़ी फटकार लगाते हुए कंपनी व एमडी को अवमानना नोटिस जारी किया।

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने प्रथम दृष्टया यह देखते हुए कि कंपनी ने शपथ का उल्लंघन किया है पतंजलि आयुर्वेद और आचार्य बालकृष्ण (पतंजलि के प्रबंध निदेशक) को नोटिस जारी कर यह बताने को कहा कि उनके खिलाफ न्यायालय की अवमानना के लिए कार्रवाई क्यों नहीं की जाए। पीठ ने साथ ही इस बीच पतंजलि आयुर्वेद को अपने चिकित्सकीय उत्पादों का विज्ञापन या ब्रांडिंग करने से भी रोक दिया। साथ ही पतंजलि आयुर्वेद को चिकित्सा की किसी भी प्रणाली के प्रतिकूल कोई भी बयान देने से आगाह किया गया है। अब मामले पर दो हफ्ते बाद विचार किया जाएगा। पीठ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें टीकाकरण अभियान और आधुनिक दवाओं के खिलाफ अपमानजनक अभियान और नकारात्मक विज्ञापनों को नियंत्रित करने की मांग की गई है।

केंद्र को घेरते हुए पूछा, आपने क्या कार्रवाई की

 पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि पतंजलि के विज्ञापनों के संबंध में ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954 के तहत उसकी ओर से क्या कार्रवाई की गई है। जस्टिस अमानुल्लाह ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज से कहा, पूरे देश को धोखा दिया जा रहा है। आप दो साल से इंतजार कर रहे हैं, जबकि अधिनियम कहता है कि यह (भ्रामक विज्ञापन) निषिद्ध है।

केंद्र ने जवाब में यह कहा

 एएसजी नटराज ने इस बात पर सहमति जताई कि भ्रामक विज्ञापनों को स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, अधिनियम के तहत कार्रवाई करना संबंधित राज्यों का काम है। जिसके बाद कोर्ट ने केंद्र से एक हलफनामा दाखिल कर यह बताने के लिए कहा है कि उसने क्या कदम उठाए हैं।