कल रथयात्रा, आज नेत्र उत्सव मनाया गया..

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पखवाड़े भर बाद स्वस्थ हुए प्रभु जगन्नाथ

रायपुर (khabargali) राजधानी के जगन्नाथ मंदिरों में गुरुवार को नेत्र उत्सव मनाया गया। ऐसी मान्यता है कि भगवान पिछले 15 दिनों से बीमार थे। अब भगवान को काढ़ा पिलाया गया। जिसके बाद वह ठीक हो गए और उन्होंने अपनी आंखें खोली हैं। मंदिर के महंत, पुजारियों ने जगन्नाथ प्रभु के नेत्र खोलने की परंपरा निभाई। प्रभु का मनोहारी श्रृंगार किया गया। पूजन, हवन के बाद 15 दिनों से बंद मंदिर के पट भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिए गए। लोगों ने भगवान जगन्नाथ के दर्शन भी किए। कल पहली जुलाई को रायपुर सहित पूरे प्रदेश में रथ यात्रा का पर्व मनाया जायेगा।

वैसे पूरे शहर में रथ यात्रा की तैयारी चल रही है,भक्तिभाव का माहौल बना हुआ है । वहीं गायत्रीनगर स्थित जगन्नाथ मंदिर में विशेष रूप से तैयारी हैं,यहां राज्यपाल व मुख्यमंत्री भी रथयात्रा में शामिल होंगे। रथ यात्रा आयोजन समिति से जुड़े पुरंदर मिश्रा ने बताया कि भक्त और भगवान के बीच सीधा संवाद हो सके इस वजह से भगवान रथ पर निकलते हैं। यह ऐतिहासिक पर्व है जो सीधे भगवान को भक्तों से जोड़ता है।

यह पारंपरिक पर्व न केवल छत्तीसगढ़ एवं ओडीशा राज्य की भावनाओं को आपस में जोड़ती है अपितु इन दोनों राज्यों के बीच आपसी भाईचारा एवं प्रेम बन्धुत्व की भावनाओं को आज के इस आधुनिक युग में  भी जीवन्त बनाए हुए हैं, जो हमारी धार्मिक आस्था एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। इस वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया अर्थात 01 जुलाई को अत्यंत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा। समूचे ब्रह्माण्ड में एकमात्र श्री जगन्नाथ महाप्रभु ही ऐसे भगवन् हैं, जो वर्ष में एकबार बाहर आकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं, और प्रसाद के रूप में अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। केवल पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ जी, बलभद्र जी एवं सुभद्रा जी के लिए तीन अलग अलग रथ बनाए जाते हैं, उसके बाद यह गौरव छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी रायपुर को प्राप्त है।

छत्तीसगढ़ में आज भी ऐसे लाखों लोग हैं, जो किसी कारणवश पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मन्दिर के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे भक्तजनों के लिए रथयात्रा एक ऐसा स्वर्णिम अवसर रहता है जब भक्त और भगवान के बीच की दूरियां कम हो जाती हैं। इस यात्रा का शुभारम्भ ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान पूर्णिमा से  हो जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ श्री मन्दिर से बाहर निकलकर भक्तिरस में डूबकर अत्यधिक स्नान कर लेते हैं, और जिसकी वजह से वे बीमार हो जाते हैं। पन्द्रह दिनों तक जगन्नाथ मन्दिर में प्रभु की पूजा अर्चना के स्थान पर दुर्लभ जड़ी बूटियों से बना हुआ काढ़ा तीसरे, पांचवे, सातवें और दसवें दिन पिलाया जाता है।

ऐसी पौराणिक मान्यता है कि  भगवान श्री जगन्नाथ को बीमार अवस्था में दर्शन करने पर भक्तजनों को अतिपुण्य का लाभ प्राप्त होता है। स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होने के पश्चात् भगवान श्री जगन्नाथ जी अपने बड़े भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा जी के साथ तीन अलग अलग रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के घर अर्थात् गुण्डिचा मन्दिर जाते हैं, प्रभु की इस यात्रा को रथ यात्रा कहा जाता है। श्री जगन्नाथ जी के रथ को नन्दी घोष कहते हैं एवं बलराम दाऊ जी के रथ को तालध्वज कहते हैं, दोनों भाइयों के मध्य भक्तों का आकर्षण केन्द्र बिन्दु रहता है, बहन सुभद्रा जी देवदलन रथ पर सवार होकर गुण्डिचा मन्दिर जाती हैं।

उक्त अवसर पर भगवान श्री जगन्नाथ महाप्रभु जी का नेत्र उत्सव हर वर्ष मनाया जाता है। रथयात्रा के दिन श्री जगन्नाथ मन्दिर में 11 पन्डितों द्वारा जगन्नाथ जी का विशेष अभिषेक, पूजा एवं हवन करते हुए रक्त चन्दन, केसर, गोचरण, कस्तूरी एवं कपूर स्नान के पश्चात् भगवान को गजामूंग का भोग लगाया जाता है। श्री जगन्नाथ जी बारह महीने में तेरह यात्रा करते हैं, केवल चार यात्राएं क्रमशः स्नान पूणिमा, नेत्रोत्सव या चन्दन यात्रा, रथयात्रा तथा बाहुड़ा यात्रा में श्री मन्दिर से बाहर निकलकर भक्तों के साथ यात्रा करते हैं। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार इस वर्ष आमंत्रित अतिथिगण हवनकुण्ड में पूर्णाहुति के पश्चात् छेरा पहरा (रथ के आगे सोने की झाड़ू से बुहारना) के पश्चात् विशेष पूजा अर्चना महाप्रसाद वितरण, रथ खींच के भगवान के रथ को रवाना करने की रस्म अदा करेंगे। रथयात्रा गायत्री नगर स्थित श्री जगन्नाथ मन्दिर से प्रारम्भ होकर गुन्डिचा मन्दिर में समाप्त होगी। भक्तजनों की बढ़ती हुई संख्या को ध्यान में रखकर श्री जगन्नाथ मन्दिर सेवा समिति ने बड़े पैमाने पर प्रसाद वितरण की व्यवस्था की गई है।

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