सुदेश कुमार मेहर की गजल

sudesh kumar mehar

ग़ज़ल  1        

चेहरा. नहीं बदलते हम....

किसी गली से ये रिश्ता नहीं बदलते हम .

तुम्हारे बाद भी रसता नहीं बदलते हम.

खुली किताब के जैसी है जिंदगी अपनी,

किसी के सामने चहरा नहीं बदलते हम.

जो जैसा है उसे वैसा ही हमने चाहा है,

मुहब्बतों में ये सिक्का नहीं बदलते हम.

वफ़ा की  राह के पक्के हैं हम मुसाफ़िर  ,

मिलें न मंजिलें ,रसता नहीं बदलते हम.

किसी कनेर के फ़ूलों से सुर्ख होंठ उसके,

गुलों से आज भी रिश्ता नहीं बदलते हम.

हरेक शख्स को यकसाँ नज़र से देखा है,

किसी के वास्ते चश्मा नहीं बदलते

 

ग़ज़ल 2

अपना हुआ कर....

कभी तो समन्दर से कतरा हुआ कर.

यूँ  मिल जुल के लोगों से अपना  हुआ कर.

तुझे देख लूं बस ज़रूरत न कुछ हो,

किसी रोज़ मेरा भी चहरा हुआ कर.

निगाहों से पीछा किया कर हमेशा,

मुझे बाँध ले जो वो पहरा हुआ कर.

ये नींदे,हवा,सर्दियाँ ,बारिशें ,तुमेरे कमरे में एक कमरा हुआ कर.

खुली जो किताबें तो फिर क्या  तवज़जह,

कोई राज़ मुटठी सा गहरा हुआ कर.

बुरा गर कहे कोई तो कान क्यों दें,

कभी अँधा गूंगा या बहरा हुआ कर.

-सुदेश कुमार मेहर
शायर ,रायपुर, छत्तीसगढ़

संपर्क: 9752442906