
सहस्त्रबाहु का मिट्टी से बना नग्न पुतला तैयार किया जाता है...
धमतरी (खबरगली) जहाँ देश भर में दशहरे का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में रावण के दहन के साथ मनाया जाता है, वहीं छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले का सिहावा क्षेत्र एक बिल्कुल ही अलग और अनूठी परंपरा को जीवित रखे हुए है। यहां न तो दशमी को रावण का पुतला जलाया जाता है और न ही आतिशबाजी होती है। इसके बजाय, एकादशी के दिन एक नग्न सहस्त्रबाहु के पुतले का वध किया जाता है। खास बात यह है कि इस अनुष्ठान को देखने की अनुमति महिलाओं को नहीं होती। सदियों पुरानी यह परंपरा सिहावा की पहचान बन गई है और हर साल हजारों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
पौराणिक कथा का रहस्यमयी पहलू
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस अनोखी परंपरा के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है। बताया जाता है कि जब भगवान राम ने रावण का वध किया, तो माता सीता ने उन्हें बताया कि असली युद्ध अभी बाकी है, क्योंकि सहस्त्रबाहु का वध भी आवश्यक है। भगवान राम ने जब सहस्त्रबाहु पर आक्रमण किया, तो ब्रह्मा के वरदान के कारण वे उसे पराजित नहीं कर पाए। यह कहानी, जिसे सिहावा के लोग पीढ़ियों से संजोए हुए हैं, क्षेत्र की अनूठी दशहरा परंपरा का आधार है। यह परंपरा सिर्फ एक कथा का स्मरण नहीं, बल्कि एक विस्तृत सामाजिक और धार्मिक आयोजन है।
उत्सव का अनूठा अनुष्ठान
सिहावा का यह उत्सव सिर्फ एक कथा का नाट्य रूपांतरण नहीं, बल्कि एक विस्तृत और व्यवस्थित अनुष्ठान है।
पुलिस का सम्मान: उत्सव में पुलिस की भूमिका बेहद खास होती है। शीतला मंदिर के पुजारी जब माता का खड्ग लेकर निकलते हैं, तो वे पूरे गांव का भ्रमण करते हैं। इसके बाद, सभी ग्रामीण सिहावा थाने पहुंचते हैं। यहाँ पुलिस अपनी बंदूक से 'चांदमारी' करती है, जो बुराई पर विजय का प्रतीकात्मक संकेत है।
पुतले का वध: पुलिस के प्रतीकात्मक वध के बाद ही पुजारी आगे बढ़कर एक विशेष पुतले का वध करते हैं। इस दौरान हजारों की भीड़ पूरी श्रद्धा से इस अनुष्ठान को देखती है।
सिहावा: एक सांस्कृतिक संगम
ओडिशा सीमा से सटा यह सिहावा क्षेत्र सिर्फ अपने दशहरे के लिए ही नहीं, बल्कि श्रृंगी ऋषि, सप्त ऋषियों के आश्रम और महानदी के उद्गम स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहाँ का दशहरा परंपरा, आस्था और एक अनोखी धार्मिक मान्यता का संगम है, जो इसे पूरे क्षेत्र में एक विशेष पहचान देता है। धमतरी जिले के अलावा, आसपास के राज्यों से भी हजारों लोग इस अद्भुत और अनूठे उत्सव को देखने के लिए पहुंचते हैं। यह खबर सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक जीवंत गाथा है, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है।
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