जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज पंचतत्व में विलीन, समाधि लेकर चंद्रगिरी पर्वत पर त्यागा था शरीर

Jain monk Acharya Vidyasagar Ji Maharaj merges into Panchatatva, wave of mourning in the entire country  After taking Samadhi, his body was left on Chandragiri mountain, one of the major religious gurus of Jain community, Dongargarh, Chhattisgarh, Khabargali

ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित आचार्य हर मौसम में बिना गद्दा-चादर के सोते, 24 घंटे में अंजुल भर पानी पीते थे

डोंगरगढ़ (khabargali) जैन समाज के प्रमुख धर्म गुरुओं में से एक विश्व प्रसिद्ध जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज का शनिवार देर रात हुआ निधन हो गया। जैन आचार्य विद्यासागर जी महाराज कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। डोंगरगढ़ की चंद्रगिरी पर्वत में उन्होंने अंतिम सांस ली। इस खबर के फैलते ही जैन समाज के अलावा अन्य समाज के लोगों में भी शोक की लहर छा गई। वहीं रविवार दोपहर लगभग ढाई बजे जैन धर्म के विधि-विधान के अनुसार चंद्रगिरी समिति के राष्ट्रीय ट्र्ट्रिरयों ने चंद्रगिरी ट्रस्ट परिसर में ही उनका अंतिम संस्कार किया। इस दौरान लाखों की संख्या में उनके अनुयायी व विभिन्न समाज के गणमान्यजन उपस्थित थे।

जैनाचार्य विद्यासागर महाराज के अंतिम दर्शन के लिए रविवार को पालकी निकाली गई, जिसमें उन्हें विराजित किया गया। उनकी एक झलक पाने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा। आचार्यश्री ने समाधि के पूर्व विधिवत संलेखना धारण कर ली थी। पूर्ण जागृत अवस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए तीन दिन का उपवास ग्रहण करते हुए आहार और संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था। उन्होंने प्रायश्चित देना भी बंद कर दिया था तथा अखंड मौन धारण कर लिया था।

पीएम समेत इन्होंने जताया शोक

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के निधन पर शोक व्यक्त किया है। कुछ महीने पूर्व विधानसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डोंगरगढ़ पहुंचकर जैन आचार्य विद्यासागर जी महाराज से मुलाकात की थी, जिसकी फोटो उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी।

आधे दिन का राजकीय शोक घोषित

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने राष्ट्र संत आचार्य विद्यासागर महा मुनिराज जी के ब्रम्हलीन होने पर उन्हें नमन किया है। राज्य शासन की ओर से वर्तमान के वर्धमान कहे जाने वाले विश्व प्रसिद्ध दिगंबर जैन मुनि संत परंपरा के आचार्य विद्यासागर महाराज जी के सम्मान में आज छत्तीसगढ़ में आधे दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है। इस दौरान राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा इसके साथ ही राजकीय समारोह और कार्यक्रम आयोजित नहीं होगी।

कर्नाटक में हुआ था जन्म

 आचार्य विद्यासागर महराज का जन्म कर्नाटक के बेलगांव के सदलगा गांव में 1946 में शरद पूर्णिमा के दिन 10 अक्तूबर को हुआ था। आचार्य विद्यासागर महराज के तीन भाई और दो बहन स्वर्णा और सुवर्णा ने भी उनसे ही ब्रह्मचर्य लिया था। उन्होंने 22 साल की उम्र में घर-परिवार छोड़ दी थी। इसके बाद 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर में अपने गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर जी महाराज से दीक्षा ली थी। दीक्षा के बाद उन्होंने कठोर तपस्या की।आचार्य विद्यासागर महराज अब तक 500 से ज्यादा दिक्षा दे चुके हैं। हाल ही में 11 फरवरी को आचार्य विद्यासागर महराज को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में उन्हें ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित किया गया।

माता-पिता ने भी ली दिक्षा

 विद्यासागर जी महाराज पूरे भारत के संभवत: ऐसे अकेले आचार्य रहे, जिनका पूरा परिवार संन्यास ले चुका है। आचार्य विद्यासागर के पिता का नाम श्री मल्लप्पा था, जो बाद में संन्यास लेकर मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता का नाम श्रीमंती था, जो आगे चलकर संन्यास ले लीं और आर्यिका समयमति बनीं। मुनि उत्कृष्ट सागर जी दिवंगत विद्यासागर जी के बड़े भाई हैं। पूरे बुंदेलखंड में आचार्य विद्यासागर महराज छोटे बाबा के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि उन्होंने मध्य प्रदेश के दमोह जिले में स्थित कुंडलपुर में बड़े बाबा आदिनाथ भगवान की मूर्ति को मंदिर में रखवाया था और कुंडलपुर में अक्षरधआम की तर्ज पर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। मुनि जी ने पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया। उनकी तपस्या को देखते हुए श्रीज्ञानसागर जी महाराज ने 22 नवम्बर 1972 को उन्हें आचार्य पद सौंपा था।

चीनी और नमक का आजीवन त्याग

 मुनि जी दिन भर में सिर्फ एक बार एक अंजुली पानी पीते थे। वे खाने में सीमित मात्रा में सादी दाल और रोटी लेते थे। उन्होंने आजीवन नमक, चीनी, फल, हरी सब्जियाँ, दूध, दही, सूखे मेव, अंग्रेजी दवाई, तेल, चटाई का त्याग किया। इसके अलावा उन्होंने थूकने का भी त्याग रखा। उन्होंने आजीवन सांसारिक एवं भौतिक पदार्थों का त्याग कर दिया। वे हर मौसम में बिना चादर, गद्दे, तकिए के शख्त तख्त पर सिर्फ एक करवट में शयन करते थे।

100 से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य पर PhD किया

आचार्य जी संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में पारंगत थे। उन्होंने जैन धर्म एवं दर्शन का गहन अध्ययन किया। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में कई ग्रंथ लिखे हैं। 100 से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य पर PhD किया है। उनके कार्यों में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूकमाटी की भी रचना की है। इसे कई संस्थानों में स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।

350 से अधिक लोगों को दीक्षा दी

वे कभी भी और कहीं भी यात्रा के लिए निकल पड़ते थे। इसके लिए उन्होंने पहले से योजना नहीं बनाई। वे अक्सर नदी, झील, पहाड़ जैसे प्राकृतिक जगहों पर ठहरते और वहाँ साधना करते थे। यहीं, आचार्य विद्यासागर महाराज अकेले ऐसे मुनि हैं, जिन्होंने संभवत: पूरे भारत में अकेले सबसे अधिक दीक्षा दी है। उन्होंने 350 से अधिक लोगों को दीक्षा दी है।

धन संचय करने के खिलाफ थे

आचार्य विद्यासागर जी धन संचय करने के खिलाफ थे।वे एक ऐसे संत थे, जिन पर अरबों रुपए न्यौछावर होते थे लेकिन उन्होंने कभी धन को स्पर्श नहीं किया। उन्होंने दान-दक्षिणा में भी कभी किसी से पैसे नहीं लिए। उन्होंने आज तक ना ही कोई बैंक अकाउंट खुलवाया और ना ही कोई ट्रस्ट भी नहीं बनाया। उनके नाम पर यदि कोई दान देता भी था तो उसे वे समाज सेवा के लिए दे देते थे।