नलिनी तंवर की लघुकथा "सर्वगुण संपन्न "

nalini  tanwar

सर्वगुण संपन्न

लघुकथा                               

“लड़की पढ़ी लिखी है, दिखने में ठीक-ठाक है, हंसना- बोलना जानती है, हुनरमंद है, नौकरी भी अच्छी है, और चाहिए ही क्या है...?” प्रतीक ने अपने शब्दों के हेर-फेर से, यह जता दिया कि वो निष्ठा से विवाह करने के लिए तैयार है. हर भारतीय परिवार की तरह प्रतीक के परिवार में भी ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी. और बड़े ताउजी ने निष्ठा के पिताजी को फ़ोन लगाकर अपनी ख़ुशी बाँट ली. 

निष्ठा, मिडिल क्लास फॅमिली की बड़े बड़े सपने देखने वाली लड़की. माँ ने बचपन से सिखाया की आसमान उतना हि है जितना तुम्हें घर की खिड़की से दिखाई देता है, पर वो कहा मानने वाली, झट से माँ का हाथ अपनी नन्हें हाथों से भींचा और माँ को ले भागी घर की छत पर और कहा , “ देख की तेरी खिड़की से कहीं बड़ा है आसमान...!”. छोटा मुंह बड़ी बात सुनकर माँ अचंभित हुई, खुश भी और ज़रा दुखी भी, पर माँ उसके बाद माँ ने न आसमान को कम आंका न अपनी बिटिया के सपनों को.

सपनों के पीछे भागती निष्ठा को जीवन में किसी और भटकाव या बंधन की सुध नहीं रही. पर आज माँ और बापू के प्रेम के आगे हार कर विवाह के बारे में सोचने की कोशिश करने लगी. एक छोटी सी शर्त यह थी, की हामी भरने से पहले लड़के से मिलकर बात करना चाहेगी. तो निष्ठा के बापू ने बिना झिझके, प्रतीक के ताउजी से दोनों के मिलने की बात पर मुहर लगवा ली और अगले दिन करीब 11.30 बजे मिलने का प्लान बना.

जो निष्ठा एक दिन दुनिया जीतने के लिए घर से निकल पड़ी थी, वो रात भर घबराया सा मन लिए बिस्तर पर स्तब्ध पड़ी थी. रात गहरी हुई तो ये ठान लिया की कुछ भी हो जाये वो प्रतीक को सब सच सच बता देगी.

अगले दिन, ठीक 11.30 बजे प्रतीक निष्ठा को लेने घर आया, और निष्ठा के लिए कार का दरवाज़ा खोलते हुए प्रतीक की कमीज़ की कलाई बंद का बटन कही अटका और टूट कर गिर गया. इस पर दोनों की आँखें मिली और प्रतीक ने हलकी सी मुस्कान के साथ कहा, “ कोई बात नहीं, कार के टूल-बॉक्स में सुई-धागा भी रख के चलता हूँ.” यह सुनकर निष्ठा की चिंता गहरा गई, अब वो प्रतीक को वो बातें कैसे बताएगी, और पता नहीं प्रतीक उसके बारे में क्या सोचेगा. इसी सोच में कार एक रेस्तरां के सामने जा के रुकी, वहीँ प्रतीक ने टूल बॉक्स निकाला और तभी एकदम से निष्ठा बोल पड़ी,

 “ मैं आपको कुछ बताना है...” 

“...हाँ- हाँ बोलो ”, टूल बॉक्स से सुई-धागा निकालते हुए प्रतीक ने कहा.

एक हाथ में धागे से पिरोई हुई सुई और दुसरे हाथ में टूटा हुआ बटन पकडे हुए प्रतीक निष्ठा की तरफ देखता रहा, पर उसे सहमा सा देख अपनी नज़रें हटा ली और कहा ,  “बोलो...”

निष्ठा ने आँखें मींच ली और एक झटके में कहा, “मुझे शर्ट में एक बटन टांकना भी नहीं आता... मैं घर के सारे काम कैसे करुँगी...?” इतना कहते ही, उसने आँखें खोली और देखा की अपनी वही मुस्कराहट लिए प्रतीक बटन टांकना शुरू कर चूका था. आखरी टांके पर पहुँचते हुए कहा, “देखिये निष्ठा मैडम, अगर लड़का इतना सर्वगुण संपन्न है तो ये सौदा इतना बुरा नहीं है

                                    नलिनी तंवर

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