2020 के राजिम माघी पुन्नी मेला में नरवा, गरवा, घूरवा, बारी पर रेत कलाकृति बनाई पर मेहनताना तक नहीं मिला..आर्थिक तंगी से गुजर रहा छत्तीसगढ़िया कलाकार
रायपुर (khabargali) राजधानी से 40 किमी दूर बसे गांव तामासिवनी के सैंड आर्टिस्ट हेमचंद साहू अपनी कला से काफी प्रसिद्ध होते जा रहे हैं लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि उनका मनोबल टूटता से जा रहा है। गौरतलब है कि ओडिशा के विश्व प्रसिद्ध सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक से प्रेरित होकर लगभग 8 वर्ष से वे रेत पर कलाकारी कर रहे हैं। अब तक 150 से ज्यादा कलाकृति बना चुके हेमचंद समाज को कुछ संदेश देने के प्रयास में रहते हैं। कलाकार हेमचंद ने ख़बरगली को बताया कि उन्होंने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का रेत से कलाकृति छाया चित्र बनाया है जिसे वह स्वयं उन्हें भेंट करना चाहते हैं, इसके लिए उन्होंने अथक प्रयास किया। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री निवास के डायल नंबर मे तीन बार नाम नोट करवाने के बाद भी उन्हें मिलने का समय नहीं मिला।
2020 के राजिम माघी पुन्नी मेला में रेत कलाकृति बनाई पर मेहनताना नहीं मिला
आर्टिस्ट हेमचंद ने शासन की कई योजनाओं को अपनी कला से चित्रण किया है उसके बावजूद उन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिली। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष 2020 के राजिम त्रिवेणी संगम मे माघी पुन्नी मेला में कुलेश्वर मंदिर के समीप शासन के निर्देशानुसार नरवा, गरवा, घूरवा, बारी को रेत से कलाकृति बना कर लोगों को जागरूकता का संदेश दिया जिसे बेेहद सराहा गया, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उन जैसे गरीब कलाकार को उसका मेहनताना अभी तक नहीं मिला। इन दिनों वे और उनका परिवार एक बड़े आर्थिक तंगी से गुजर रहा है।
कई बार हो चुके हैं सम्मानित
हेमचंद साहू अनेक जगहों पर सम्मानित भी हो चुके हैं। कई विशिष्ट लोगों ने उनकी कला को सराहा है , उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए अपनी शुभकामनाएं भी दी हैं लेकिन सिर्फ शुभकामनाओ से पेट नहीं भरता। इतनी आर्थिक तंगी के बावजूद वे हर कलाकृति में आने वाले ख़र्च को वहन करते हैं।
महानदी की रेत पर बनाते हैं सैंड आर्ट
गांव के स्कूल में सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कलाकृति बना कर अपना सफर शुरू करने वाले हेमचंद ने राजिम के त्रिवेणी संगम में अपनी रेत कला का प्रदर्शन शुरू किया। उनकी कला को देखने बड़ी भीड़ भी लगती है।
सैंड आर्ट के लिए पूरी की मिट्टी ज्यादा बेहतर
हेमचंद ने बताया कि महानदी त्रिवेणी संगम राजिम की रेत से अनेक प्रकार की मूर्ति बनाते- बनाते महानदी की रेत और उड़ीसा पूरी की रेत को समझने का प्रयास किया। महानदी की रेत बारीक नहीं होने से कलाकृति बनाने में काफी दिक्क़त होती है। उड़ीसा पूरी में बालू रेत है जो काफी बारीक , चमकीला और नरम होती है साथ ही समुद्र के खारा पानी होने की वजह से चिपचिपापन भी बहुत रहता है। उड़ीसा पूरी की रेत से मूर्ति बनाना सरल होता है।
गरीबी एक साया की तरह चल रही
हेमचंद ने बताया कि बचपन मे ही घर में मिट्टी का छोटे गणेश की मूर्ति बना दो चार नग बनाकर बेचते थे और वही पैसे से हम अपने पढ़ाई के लिए पेन कॉपी लेते थे। परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर होने के कारण पढ़ाई पूरा नहीं कर पाया। मेरे माता पिता हम सब काफी गरीब परिवार से है , आज भी मिट्टी के घर में रहते है हम सब के पास एक रति भी जमीन नही है। मेरे माता पिता दूसरे की जमीन को रेगहा लेकर मजदूरी करते हैं। मेरे घर की स्थिति को देखकर जब मैं 15 वर्ष का था तभी से मजदूरी का काम किया। ताकि मेरे परिवार की स्थिति सम्भल जाये लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ फिर भी हार नहीं मानी। उन्होंने बताया कि मिट्टी के गणेश, माँ दुर्गा की प्रतिमा को अच्छे से बनाने के प्रशिक्षण के लिए मैं माना स्थित निमोरा ग्राम के सुप्रसिद्ध मूर्तिकार गुरुदेव पीलू राम साहू के पास गया। फिर 2009 में अपने गांव तामासिवनी में ही रोजी रोटी के रूप मिट्टी की मूर्ति बनाने की शुरुआत की। अब जब से कोरोना काल चल रहा तब से मूर्ति का काम ठप्प है। कई बार रेत कला को नहीं करने का मन करता क्योंकि रेत मूर्ति बनाने मे बहुत खर्च होता है और शासन प्रशासन कोई सुध नहीं लेता, कोई मदद नहीं मिलती।
हेमचंद साहू से इस दूरभाष नम्बर 9617819659 पर संपर्क किया जा सकता है।
हेमचंद की कुछ कला की झलक
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