जानिए बीते 32 सालों से रामलला की पूजा करते आ रहे हैं आचार्य सत्येंद्र दास की आंखों देखी
अयोध्या (khabargali) राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की तारीख नजदीक है । लेकिन एक वक्त था जब विवादित ढांचा ढहाए जाने वाले दिन करीब आठ घंटे तक ‘रामलला’ नीम के पेड़ के नीचे रहे थे। उसके बाद रामलला ने लगातार करीब 28 साल परेशानी झेली। आचार्य सत्येंद्र दास राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी हैं और बीते करीब 32 सालों से यही रामलला की पूजा करते आ रहे हैं।
साल में एक बार वस्त्र बदलते थे श्री मूर्ति के
आचार्य ने बताया कि 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद कोर्ट के आदेश से रामलला के लिए एक अस्थायी टेंट का निर्माण किया गया था लेकिन वहां धूप-दिया चलाने की मनाही थी। साथ ही बरसात में रामलला के स्थान पर पानी भी भर जाता था। इस दौरान भगवान के भोग आदि की भी परेशानी रही। आचार्य ने बताया कि पहले रामलला के कपड़े भी रामनवमी के समय ही बदले जाते थे, जो एक साल तक चलते थे। करीब 28 सालों तक रामलला ने भी काफी परेशानी झेली। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हालात बदले और पूरे विधि-विधान से भगवान की पूजा हो रही है और अब बस मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का इंतजार है।
1949 को अपने मूल स्थान में प्रकट हुए थे पालनहार
आचार्य सत्येंद्र दास ने मीडिया को 6 दिसंबर के उस दिन का पूरा घटनाक्रम बताया, जब राम जन्मभूमि से विवादित ढांचे को गिराया गया था। आचार्य ने बताया कि 23 मार्च 1949 को रामलला अपने मूल स्थान में प्रकट हुए थे, जिसके बाद कोर्ट के आदेश से उनकी पूजा-अर्चना होती रही। 1 मार्च 1992 को हमें उसी जगह रामलला के मुख्य पुजारी के तौर पर नियुक्त किया गया।
पूरी अयोध्या जब कारसेवकों से भर गई
इसके बाद विश्व हिंदू परिषद ने कारसेवा की घोषणा की। जिसके बाद 6 दिसंबर को अयोध्या में कारसेवा के लिए बहुत से लोग आए। इस दौरान भाजपा और विहिप के बहुत नेता भी वहां पहुंचे। उस समय इतनी भीड़ आ गई थी कि पूरी अयोध्या कारसेवकों से भर गई थी। आचार्य ने बताया कि कारसेवा के दौरान कहा गया कि जितने भी कारसेवक आए हैं, वह सरयू से जल लाकर इस चबूतरे को धोएं। यह सुनकर कारसेवक गुस्सा हो गए। उनका कहना था कि हम लोग कारसेवा में चबूतरा धोने के लिए नहीं आए हैं। इसके बाद गुस्साए लोगों की भीड़ चबूतरे पर चढ़ गई और विवादित ढांचे को तोड़ना शुरू कर दिया।
बीच वाले गुम्बद में विराजे थे राम लला
आचार्य आगे बताते हैं कि तोड़ने का कोई साधन नहीं था तो स्थानीय लोगों ने गैती, हथौड़ा आदि दिए, जिनकी मदद से विवादित ढांचा तोड़ा गया। वहां तीन गुंबद थे, जिनमें से बीच वाले में रामलला विराजमान थे। वहीं अन्य दो में सीआरपीएफ के महिला और पुरुष सैनिक रहते थे। भीड़ देखकर सीआरपीएफ के जवान वहां से हट गए। कारसेवक ने विवादित ढांचे को तोड़ना शुरू किया और सुबह 11 बजे से शाम पांच बजे तक ढांचे को गिरा दिया।
जब हुआ नीम पेड़ का उद्धार
आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि उन्होंने रामलला को वहां से ले जाकर नीम के पेड़ के नीचे रख दिया ताकि उन्हें कोई नुकसान ना पहुंचे। जब विवादित ढांचा गिर गया तो कारसेवकों ने शाम सात बजे तक वहां पर टेंट और मंडप बना दिया, जिसके बाद रामलला को सिंहासन समेत वहां स्थापित कर दिया गया। इस तरह विवादित ढांचा ढहाए जाने वाले दिन करीब आठ घंटे तक रामलला नीम के पेड़ के नीचे रहे थे। आचार्य दास ने याद करते हुए बताया कि अगले दिन सरकार ने कर्फ्यू का ऐलान कर दिया। इस पर प्रशासन से रामलला की पूजा की मांग की गई तो प्रशासन ने पूजा करने वाले सभी पुजारियों का पास बना दिया और फिर रामलला की पूजा शुरू हो गई। तब से उसी जगह रामलला की पूजा हो रही है।
मौजूदा प्रतिमा भी गर्भगृह में होगी स्थापित
आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि रामलला की जो मौजूदा प्रतिमा है, उसे भी नई प्रतिमा के साथ गर्भगृह में ही स्थान दिया जाएगा और उनकी भी पूजा अर्चना होगी। आचार्य ने बताया कि मौजूदा प्रतिमा छोटी है और उसके दूर से दर्शन नहीं हो सकते, इसलिए नई प्रतिमा बनाने का फैसला लिया गया था। बस अंतर ये रहेगा कि मौजूदा प्रतिमा चल होगी और विशेष अवसरों पर उसे गर्भगृह से बाहर निकाला जा सकेगा। वहीं नई प्रतिमा स्थायी होगी और वह गर्भगृह में ही विराजमान रहेगी।
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