साहित्य डेस्क (खबरगली)
डॉ. चित्रा पाण्डेय, मनोविश्लेषक एवं परामर्शदाता की रिपोर्ट आज के और कल के बचपन के बीच के गहरे अंतर को उजागर करती है, जहाँ एक पीढ़ी ने बेपरवाह बचपन जिया, वहीं आज की पीढ़ी सुविधा-संपन्न होने के बावजूद कहीं न कहीं अपने मूल्यों से दूर होती जा रही है।
पहले का बचपन: अनुशासन और सम्मान का पाठ
पहले के समय में, बचपन का अर्थ था सादगी, माता-पिता का अनुशासन मानना और उनके फैसलों का सम्मान करना। उस दौर में, जीवन के संघर्षों ने बच्चों को संयम, कृतज्ञता और संतोष का महत्व सिखाया। बच्चों को पता था कि हर चीज के पीछे मेहनत और मूल्य छिपा है।
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