स्वतंत्र प्रेस : आम जनता की ताकत। ( विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर विशेष )

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- उर्मिला देवी "उर्मि"
 साहित्यकार ,समाज सेवी ,शिक्षाविद
संपर्क: 9424२12670

रायपुर (खबरगली) ‘‘अखबारों की स्वतंत्रता एक बहुमूल्य अधिकार है और कोई भी देश इसे छोड़ नहीं सकता।’’ महात्मा गाँधी के ये शब्द उस प्रेस की स्वतंत्रता की वकालत करते हैं, जिसे लोकतंत्र के ‘चतुर्थ स्तम्भ’ के नाम से सर्वत्र महत्व प्राप्त है। गाँधी जी का मानना था कि कलम की निरंकुशता खतरनाक हो सकती है किन्तु उस पर व्यवस्था का अंकुश अधिक खतरनाक होगा। प्रेस यदि सवाल नहीं पूछेगा तो आखिर करेगा क्या और लोकतांत्रिक व्यवस्था जवाबदारी की बुनियाद पर खड़ी है, इसलिए सरकार या शासन जवाब न देगा तो करेगा क्या।
  लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देशों  के लोगों द्वारा नागरिक, धार्मिक, राजनीतिक अधिकारों के मंच के रुप में प्रेस की स्वतंत्रता का स्वागत किया जाता है। स्वतंत्र एवं निडर प्रेस की व्यवस्था कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की भाँति ही लोकतंत्र का अति महत्वपूर्ण घटक है। लोकतंत्रात्मक प्रणाली वाले देशों में प्रेस निजी स्वामित्व में हैं, इसलिए इसे वहाँ प्रायः सरकारी दबावों से अपेक्षाकृत मुक्त देखा जाता है, जिससे यह अधिक स्वतंत्रता पूर्वक अपने दायित्वों का निष्पादन कर पाता है और नागरिक अधिकारों के उपभोग में अथवा लोकतांत्रिक व्यवस्था के संचालन में कहीं थोड़ी भी रुकावट दिखे, तो उसके विरूद्ध अपनी आवाज़ बुलन्द करता है, तब स्वाभाविक है कि सरकार में बैठे कुछ लोग इसे नियंत्रित करने का प्रयास करें।
        प्रेस पर नियंत्रण और सेंसरशिप आज भी उन देशों में सामान्य सी बात है, जहाँ सरकार चलाने का काम धर्म के ठेकेदार और तानाशाह करते हैं। इन देशों में सूडान, ईराक, लीबिया, पूर्वी सोवियत ब्लाक के देशों को सम्मिलित किया जाता है, जहाँ प्रेस को सरकारी मशीनरी का विस्तार मात्र माना जाता है और सरकार के ‘मुखपत्र’ का नाम दिया जाता है। इसके विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रेस को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है। भारत में भी लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ के रूप में स्वतंत्र प्रेस की व्यवस्था हैं भारतीय प्रेस भी विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार से जन-जागरण का काम करता है - जैसे शिक्षा, रोजगार, बीमारियों के उन्मूलन, सामाजिक बुराइयों के दूरी करण, चुनाव प्रचार इत्यादि। यही प्रेस भ्रष्टाचारियों पर कड़ी नज़र रखता है, समय-समय पर स्टिंग- आॅपरेशन कर इन सफेदपोशों के काले-धन्धों को उजागर करता है। प्रेस के कारण कुछ समय पहले न्यायिक देरी से निराश हताश लोगों को न्याय मिला और उन्होंने राहत की साँस ली। अनेक मामलों में देखा गया  है कि प्रेस की पहल के कारण असली गुनहगार समय पर जेंल में पहुँचाए गये, अन्यथा न्यायिक प्रक्रिया में विलम्ब हो जाता है। जब मामले ‘कमजोर’ नागरिक बनाम - रसूबदार व्यक्ति’ के हों तो आम आदमी को प्रेस से ताकत मिलती है। जब कमजोर व्यक्ति विधायिका, कार्यपालिका,और न्यायपालिका के रवैये से भी निराश हो जाता है, तब वह प्रेस से सहायता लेकर न्याय प्राप्त कर सकता है।
        ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारतीय प्रेस उस प्रकार की सम्पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त नहीं जैसी अमेरिकी प्रेस को प्राप्त है। राजनीतिशास्त्र के विद्वानों के अनुसार अमेरिका में प्रेस को जो सम्पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है, वह लोकतांत्रिक प्रणाली को अधिक सशक्त बनाती है। कनाडा के संविधान की चार्टर राइट्स की धारा-एक और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (2) की तरह अमेरिकी संविधान में प्रेस की आजादी पर विवेकपूर्ण प्रतिबंध का प्रावधान नहीं है, यही कारण है कि अमेरिका में प्रेस की आज़ादी, खबरों के प्रसार और अभिव्यक्ति में किसी तरह के हस्तक्षेप को कानून का उल्लंघन माना जाता है, जबकि भारत में विवेकपूर्ण प्रतिबन्ध के उपबन्ध के द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी को कुछ सीमित किया जा सकता है। इसके लिये यह तर्कसम्मत कारण दिया जाता है कि स्वतंत्रता के नाम पर उच्छृंखलता  का , अनुशासनहीनता का आचरण नहीं होना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार की जवाबदारी के साथ प्रेस की जवाबदारी भी महत्ववूर्ण है।
        प्रेस और लोकतंत्र दोनों के लिये ही अच्छा होगा यदि पत्रकारों की  संस्थाएं ही अपना ऐसा विभाग  बनांए, जो यह सुनिश्चित करे समाज की बुराइयों भ्रष्टाचार आदि के साथ ही सकारात्मक गतिविधियों को समान रुप से प्रचारित प्रसारित किया जाय और कोई पत्रकार अधिक पैसा कमाने के लालच में सनसनी और अफवाहें न फैलाए । पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार और कभी कभी उन पर होने वाले जानलेवा हमले ऐसे ही घटनाक्रमों  की आक्रामक प्रतिक्रिया का रूप होते हैं ।
 प्रेस सच्चे  अर्थों में आम आदमी की ताकत बनी रहे। लोकतंत्र के सजग प्रहरी के रूप् में निष्पक्ष होकर कार्य करे, किन्तु अपनी सीमा का, मर्यादा का उल्लंघन नहीं करे।   प्रेस को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि निष्पक्ष रूप से काम करने के मार्ग में आने वाली चुनौतियों का सामना भी लोकतांत्रिक तरीकों से करें। इस प्रकार काम करने से स्वतंत्र प्रेस और प्रेस की विश्वसनीयता दोनों ही व्यवस्थाएं कायम रह सकती हैं प्रेस के प्रति इन पंक्तियों के साथ कलम को थोड़ा विराम

        नई आस देता चल, नया विश्वास  देता चल।
        लोकतंत्र के सजग प्रहरी, निष्पक्ष करम करता चल।
        जन सामान्य की बन कर सच्ची ताकत,
        नव जागरण हेतु, नये अहसास देता चल।