ब्रह्मांड हमारा पूरी तरह से ख्याल रखता है

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ख़बरगली @ साहित्य डेस्क

भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कोई भी व्यक्ति कर्म किए बगैर नहीं रह सकता। समस्त संसार मेरे एक इशारे पर चलता है, फिर भी मैं कर्म करता हूँ। क्योंकि यदि मैं कर्म करना छोड़ दूँ, तो ब्रह्माण्ड का कर्मचक्र रुक जाएगा और कोई भी कर्म का निर्वाहन नहीं करेगा। यह स्पष्ट है कि तीनों लोकों में परमात्मा के लिए कोई भी कर्तव्य शेष नही है न ही किसी वस्तु का उनको अभाव है न ही किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा है, इसके बावजूद वे कर्तव्य समझ कर कर्म करने में लगे रहते हैं। मनुष्य सब प्रकार से परमात्मा के कर्तव्य कर्म जो वे बरतते हैं। उसी मार्ग का अनुसरण करता है। ऐसा इसलिए है ताकि मनुष्य लोक भ्रष्ट न हो, अवांछित-सृष्टि की उत्पत्ति न करे। ब्रह्माण्ड दूषित न करे। हमें कभी अपने को असहाय नहीं समझना चाहिए। क्योंकि हम परम आत्मा के अंश आत्मा है। इस कारण हमारे भीतर भरपूर शक्तियाँ निहित है। हमें बस इतना करना है कि इस शक्ति से हम ख़ुद को कनेक्ट रखें। हम कभी भी अकेले नहीं होते। लेकिन, हम इस बात से अनभिज्ञ रहते हैं। हमारी परिस्थितियां कभी भी हमारी शक्ति का कारण नहीं होती है। उनका सिर्फ़ हम पर प्रभाव रहता है। तो जो कुछ भी है वह भीतर की स्थिति का एक प्रतिबिंब मात्र है। इस प्रतिबिंब पर ध्यान देकर हम अपनी स्थिति को बदल सकते हैं। हम उदासी को खुशी में बदल सकते हैं। हम अकेलेपन को प्यार में बदल सकते हैं। क्योंकि हमारे पास शक्ति है। यह आंतरिक शक्ति है। ध्यातव्य रहे कि यह भीतर ही होता है बाहर कहीं नहीं। यह शक्ति हमें ब्रह्माण्ड प्रदान करता है।

ब्रह्माण्ड को चलाने वाला परम आत्मा अविभाज्य है, फिर भी वह जीवित प्राणियों के बीच विभाजित प्रतीत होता है। सभी प्राणियों के निर्वाहक, विनाशक और निर्माता होने के कारण वह सर्वोच्च इकाई है। यह इकाई हमारी शक्ति है। परम आत्मा सभी आत्म प्रकाश का स्रोत है, और पूरी तरह से अज्ञान के अंधकार से परे है। वह ज्ञान है, ज्ञान का उद्देश्य है, और ज्ञान का लक्ष्य भी है। वह सभी प्राणियों के हृदय आकाश भीतर बसता है। इसलिए, हमें अपनी वास्तविकता की ओर ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए। होशपूर्वक अपने अनुभवों को चुनना शुरू कर ध्यान की प्रक्रिया में प्रवेश करते रहना चाहिए। सबसे बेहतर है अधिक से अधिक सशक्त विश्वास का अपनी आंतरिक शक्ति में पोषण शुरू करना। तो जैसे ही आप वापस आंतरिक ऊर्जा की ओर पहुँचना शुरू करेंगे। आप, आप नहीं होंगे।

फिलहाल यह जानना भी जरूरी है कि उसकी शक्ति ब्रह्माण्ड के बाहर और सभी जीवित प्राणियों के अंदर मौजूद है, जो मौजूद है उसे ही हम उसका अंश कह रहे हैं। वह सूक्ष्म है, और इसलिए, वह समझ से परे है। वह बहुत दूर है, लेकिन वह बहुत निकट भी है। ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से निकटता हमें परमआत्मा, जो इस कायनात को चलाने में लगे हैं उनके निकट रखता है। मनुष्य को यह जान लेना चाहिए कि समूचा ब्रह्माण्ड हमसे प्यार करता है। ब्रह्माण्ड हमारे जीवन के हर एक पल का ख़्याल रखता है। पंचतत्व से बने हमारे शरीर को पंचतत्व प्रदान करने की पूरी व्यवस्था करता है। हमारे कार्बन डाइऑक्साइड को लेकर हमें ऑक्सीजन देने की पूरी व्यवस्था करता है। प्राण वायु, जल, अग्नि, मिट्टी और आकाश तत्व की मात्रा में बाधा हमने डाला है। हमें हर हाल में पंचतत्व में पड़ने वाली बाधा को दूर करना ही होगा। ताकि हमारी कनेक्टिविटी बनी रहे। अपने कर्म और कर्म व्यवस्था पर सशक्त विश्वास हमें कभी भी असहाय रहने नहीं देगा।

ब्रह्माण्ड की व्यवस्था को बनाए रखने का कर्म हमें परम आत्मा के कर्म की सहभागिता प्रदान करेगा। जो ब्रह्माण्ड इस देह में बसता है, हमारे कर्म की व्यवस्था उसे संयमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। उसे असहाय कभी होने ही नहीं देता। वर्तमान हालात कहते हैं कि लोक भ्रष्ट कर्म की चहुंओर अधिकता के कारण अवांछित-सृष्टि का जन्म होने लगा है। बचाव के लिए हमें हर हाल में ब्रह्माण्डीय व्यवस्था में अपने कर्म को निष्काम होकर सहभाग करते रहना चाहिए।

-प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार लखनऊ, उत्तर प्रदेश सचलभाष/व्हाट्सअप : 8564873029 ईमेल : prafulsingh90@gmail.com